जापान स्थिति : ३६० ०' उ. अ. त्थ्रार १३६० ०' पू.दे.। जापानी द्वीपसमूह एशिया महाद्वीप के पूर्वी तट से सटा हुआ; प्रशांत महासागर में स्थिति है। इन द्वीपों में मुख्य चार हैं : हाकीइडो (Hokkaido, ३०, ३१२ वर्ग मील), हॉनशू (Honshu, ८८, ९७६ वर्ग मील), शिकोकू (Shikok, ७, २४२ वर्ग मील) और क्यूशू (Kyushu, १६, १९६ वर्ग मील) हैं। यों छोटे छोटे द्वीप हजारों की संख्या में समुद्र में बिखरे हुए हैं, जो जापानी संप्रभुता के अंतर्गत है। देश की राजधानी टोकियो है।
भौमिकीय ¾ जापान के धनुषाकार द्वीपसमूहों की सबसे बड़ी विशेषता भूकंपों तथा ज्वालामुखी पर्वतों की सक्रियता है। जापान के ऊपर कहे गये मुख्य चार बड़े द्वीप मिलकर बड़ा जापानी बनाते हैं, जिसका निर्माण क्रमिक बलनिक उच्चावचन (orogenies) द्वारा मध्य पुराजीवकल्प (Mid Palaeozoic) में तलछट के संचयन से हुआ था। कूरील, बेनिन तथा रिअक्यू के नवीन चापों के जापानी चाप से बाहर प्रशांत की ओर विकसित होने से जापानी चाप से बाहर प्रशांत बेसिन की ओर विकसित होने से जापानी चाप की निरंतरता भग्न हो गई है। जापानी चाप तथा नवीन चापों संगम बिंदु ज्वालामुखी सक्रियता के बड़े केंद्र हैं। सिल्यूरिएन (Silurian) काल से परमोकार्बोनीफेरस (Permocarboniferous) युग तक के समुद्री तलछटीकरण तथा ज्वालामुखी क्रियाओं के संपूर्ण अनुक्रम को जीवाश्म प्रमाणों ने सिद्ध कर दिया है। जुरासिक (Jurassic) तथा अध: क्रिटेशस (Lower Cretaceous) सापेक्ष उत्थापन का काल है, जिसमें निक्षेप एस्चुअरी (esturay), डेल्टा तथा अनूपों (lagoons) में हुआ है। इस काल के फर्न (fern) और साइकैड (Cycade) की वनस्पतियाँ तथा एमोनाइटीज (ammonities) के जीवाश्म मिले हैं। उर्ध्वं क्रिटेशस काल में जापान में पुन: अवतलन हुआ है और इस काल के निक्षेप समुद्री बलुआ पत्थर, शेल (shale), चूना पत्थर तथा ऐमोनाइटीज और फलकक्लोम (Lamellibranchia) के जीवाश्म हैं। तृतीय काल की वनस्पतियाँ तथा कोयला केमहाद्वीपीय निक्षेप और फोरेमिनीफेरा (foraminifeta) समुद्री निक्षेप हैं। चतुर्थ युग के निक्षेप में हाथी के पूर्वज तथा मैमथ (mammoth) के महाद्वीपीय जीवाश्म प्राप्त हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि जापान एशिया से जुड़ा हुआ था।
प्राकृतिक स्वरूप ¾ जापान का मुख्य द्वीप हॉनशू (Honshu) जिसे जापानी प्राय: गृहद्वीप (home island) कहते हैं, हॉनश के दक्षिण शिकोकू एवं क्यूशू नामक दो द्वीप हैं तथा उत्तर में चौथा द्वीप हाकाइडो है। इनके अतिरिक्त अन्य द्वीप रिऊक्यू (Ryukyu) तथा बोन्नीस नामे दो द्वीपसमूहों में विभाजित हैं। जापान का कुल क्षेत्रफल १,४१,७२.५ वर्ग मील है। जापान के द्वीपसमूह उस विशाल ध्वस्त पर्वत शृंखला के अवशेष हैं जिनके प्रतीक आलैस्का पर्वत, अल्यूशैन (Aleustian) पठार, कुरील तथा फिलिपीन द्वीपसमूह हैं।
जापान के धरातल में पर्वतों द्वारा घिरा हुआ भाग लगभग ५८% है। प्रत्येक सात वर्ग मील में से छह वर्ग मील क्षेत्र पर पर्वत विद्यमान हैं। यहाँ १९२ ज्वालामुखी पर्वत हैं, जिनमें से ५८ सक्रिय हैं। माउंट फूजी (१२,३८५ फुट) सबसे ऊँचा पहाड़ है। यह भी सुषुप्त ज्वालामुखी में आसामायामा (Asamayama), साकुराजीमा (Sakurajima), कोमागेटेक (Komagatake) तथा असोसान (Asosan) उल्लेखनीय हैं।
किसी भी द्वीप में विस्तृत मैदान इने गिने ही हैं। सबसे बड़ा मैदान क्वांटो (Kwanto) टोकियो की खाड़ी से हॉनशू के मध्य भाग तक फैला है। पश्चिमी मध्य हॉनूश में कानसाई का मैदान है, जिसमें ओसाका, कोबे, क्योटो आदि नगर बसे हैं। नोबी छोटा मैदान है, जिसमें नगोया नगर स्थित है।
जापान का धरातल अत्यधिक ढालवाँ है। हर जगह चोटी, पहाड़, पठार और समुद्रतट की क्रमबद्ध शृंखला मिलती है। अत्यधिक ढाल, पर्याप्त वर्षा (४०'' से १००'') तथा समुद्रतट से निकट ही जलविभाजकों की स्थिति के कारण यहाँ छोटी, पतली तथा वेगवती नदियाँ मिलती हैं। जब नदियाँ पहाड़ी भाग से तटीय मैदान में उतरती हैं, अथवा अंतर्पर्वतीय बेसिन से होकर बहती हैं, तब धाराएँ अचानक मंद होने से बहुत अधिक मिट्टी जमा करती हैं और इस प्रकार उपजाऊ मैदानों का निर्माण करती हैं। यह उनकी सबसे बड़ी देन है। यहाँ की नदियाँ की धाराएँ प्राय: किनारों की अपेक्षा ऊँचाई पर बहती हैं, जिससे सिंचाई की सुगमता होती है, पर बाढ़ का खतरा अधिक हो जाता है। सीनावो (२३० वर्ग मील सबसे बड़ी नदी है। जापान में झीलें भी बहुत हैं। बीवा (२६० वर्ग मील) सबसे बड़ी झील है। जापान का समुद्रतट १७,००० मील लंबा तथा अत्यंत कटा फटा है।
जलवायु ¾ जापान का जलवायु समशीतोष्ण है। चारों ऋतुएँ होती हैं। गर्मियों में पर्याप्त गर्मी पड़ती है। जापान के जलवायु पर क्यूरोशियो गरम जलधारा, कूरील ठंढी जलधारा तथा एशिया की मौसमी हवाओं का बहुत प्रभाव पड़ता है। जनवरी में उत्तर में औसत ताप - ७० सें. तथा दक्षिण में ४० सें. रहता है। जुलाई में उत्तर में औसत ताप १५.५ सें. एवं दक्षिण मे २७० सें. रहता है। उत्तरी भाग में औसत वार्षिक वर्षा ४०'' से ६०'' तक तथा दक्षिण में १००'' तक होती है। यहाँ प्राय: बवंडर (typhoon) आते हैं।
वनस्पति एवं जंतु ¾ जापान के वन कुल भूक्षेत्र के २/३ भाग में फैले हुए हैं। इस वन क्षेत्र से इमारती लकड़ी, कागज बनाने की लकड़ी तथा घरेलू ईधंन के लिये लकड़ी उपब्ध होती है। पहाड़ियों के जंगलों में बंजु, भुर्ज, द्विफल (maple), अखरोट आदि के वृक्ष पाए जाते हैं। ऊँचे पहाड़ों पर चीड़, लार्च, स्प्रूस (Spruce), फर आदि मिलते हैं।
जापान में पाए जानेवाले जंतुओं में से अधिकांश कोरिया तथा चीन में पाए जानेवाले जंतुओं के सदृश हैं। यहाँ चमगादड़ों की १८ किस्में उपलब्ध हैं। हॉनशू से लेकर उत्तरी सिरे तक गुलाबी चेहरेवाला लघुपुच्छ बानर पाया जाता है और यह यहाँ का एकमात्र बानर गण (primate) है। यहाँ भालू, कुत्ते, भेड़िए, लोमड़ी, बिज्जू, रैकन कुत्ते (raccoon dog) पाए जाते हैं। आर्टिक रोवर (artic rover) नामक हरिण भी यहाँ पाया जाता है, जो शरद ऋतु में श्वेत हो जाता है। उरग की ३० जातियाँ यहाँ मिलती हैं, जिनमें प्रशांत महासागर का हरा कच्छप भी है, जो बहुत कम दृष्टिगत होता है। यहाँ के समुद्र में विभिन्न प्रकार की मछलियाँ प्रचुर परिमाण में हैं। समुद्री सर्प भी यहाँ मिलते हैं। स्थलगामी सर्पो में ऐग्किस्ट्रोडॉन हेल्यस ब्लूम्होफाइ (Agkistrodon halys blomhoffi) संपूर्ण जापान में मिलते हैं।
कृषि ¾ जापान मे अब लगभग ३७ प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं। लगभग १४० लाख एकड़ पृथ्वी खेती के योग्य है। पहाड़ी जमीन होने से खेत छोटे छोटे तथा बिखरे होते हैं। धान प्रमुख उपज है, जिससे देश की आवश्यकता के ४/५ भाग की ही पूर्ति होती है। अन्य मुख्य उपज गेहूँ, जौ तथा सोयाबीन हैं। आलू तथा मूली की भी खेती होती है। १/ २ प्रतिशत जमीन पर चाय की खेती होती है। रेशम के कीड़े पालने का भी काम होता है। फलों की बहुत सी किस्मों का उत्पादन होता है जिनमें संतरा तथा आड़ू प्रमुख हैं। मछली के व्यवसाय मे जापान संसार में सर्वप्रथम है। यहाँ साइन, हेरिंग, माकेरल, यलो टेल, ह्वेल आदि मछलियाँ मिलती हैं।
खनिज ¾ जापान में कच्चा लोहा मिलता है। लेकिन देश की पूरी माँग का १/१६ भाग ही देश के उत्पादन से मिलता है। केवल कुछ घटिया किस्म के कोयले को छोड़कर प्राय: सब कोयला बाहर से आता है। ताँबा, चाँदी, जस्ता, गंधक, चूना, बेराइटिस तथा पाइराइट (Pyrite) भी कुछ अंशों में यहाँ प्राप्त होता है। पेट्रोलियम अत्यधिक न्यून मात्रा में मिलता है।
उद्योग ¾ जापान के विशाल कारखाने चार औद्योगिक क्षेत्रों में केंद्रित हैं। सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र ओसका, कोबे तथा क्योटो का है। यहाँ सूती वस्त्र के कारखाने हैं। ओसाका तथा कोबे में जलपोत भी बनते हैं। क्यूशू के उत्तरी समुद्र तट पर इस्पात, सीमेंट, जलपोत तथा काँच बनाने के कारखाने हैं। देश की ढलवाँ लोहे (pig iron) का ३/४ भाग यहाँ तैयार होता है। यावाता इस्पात का मुख्य केंद्र है। टोकियो तथा याकोहामा क्षेत्र में मशीन तथा औजार विकसित हैं। नागोया क्षेत्र वस्त्र उद्योग, अन्य हल्के उद्योग तथा घरेलू उद्योगों का केंद्र है।
यातायात ¾ जापान में सड़कें अपेक्षाकृत कम तथा ऊबड़ खाबड़ हैं। मोटर यात्रा सुरक्षित न होने से ट्रकें या बसें कम हैं। छोटी रेलवे लाइनों का विस्तृत जाल है। रेल मार्गो की कुल लंबाई लगभग २०,००० मील है। सभी नगर रेल मार्गो द्वारा संबद्ध हैं। जल यातायात, यहाँ अधिक प्रचलित है। सामानों का यातायात प्राय: जलपोतों द्वारा होता है, पर सवारियॉ रेलों पर चलती हैं। सन् १९५८ में हॉनशू तथा क्यूशू समुद्र के भीतर खुदी एक सुरंग द्वारा संबद्ध कर दिए गए हैं।
शक्ति ¾ जापान के ३६ प्रति शत घरों को छोड़कर सर्वत्र विद्युत्-सुविधा उपलब्ध है। देश की लगभग ७० प्रति शत विद्युच्छक्ति जल-विद्युदुत्पादन द्वारा प्राप्त की जाती है। १९६१ ई. में जापान की विद्युत उत्पादन क्षमता २,५६,५४,०० किलोवाट थी। तोकुई मुरा नामक स्थान में अणुशक्ति केंद्र है। यहाँ कृषि, चिकित्सा आदि विभिन्न क्षेत्रों में अणुशक्ति के उपयोग के संबंध में अनुसंधान कार्य हो रहा है।
जापान जनसंख्या ९,५०,८०,००० (१९६२) थी। यहाँ के निवासी मंगोल, मलाया तथा ऐनू जातियों के हैं, जिनके रंग-रूप चीनियों से मिलते हैं। जापानियों ने यद्यपि पश्चिमी रहनसहन का अनुसरण किया है, तथापि अपने परंपरागत रीतिरिवाजों को अक्षुण्ण बनाए रखा है। जापानी नम्र, सौंदर्योपासक, मेहनती तथा साहसी होते हैं। चावल तथा मछली उनका मुख्य आहार है।
टोकियो जापान की राजधानी है। अन्य प्रमुख शहर ओसाका कोबे, क्योटो, नागासाकी इत्यादि हैं। टोकियो की जनसंख्या १,०१,९६,००० (१९६१) है।
ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक ¾ १८६८ में मीजियों (Meiji) के पुनरुत्थान पर राष्ट्र के उद्योगीकरण से जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ी है। १८७२ में ३ करोड़ ५० लाख और १९३६ में ७ करोड़ से बढ़कर १९६२ में ९ करोड़ ५२ लाख हो गई। आबादी के घनत्व में (६.६ प्रति वर्ग मील) जापान का विश्व में तीसरा स्थान है। सात नगरों की आबादी १० लाख से अधिक है। राजधानी टोकियो की जनसंख्या १ करोड़ से अधिक है। औद्योगिकरण के कारण ६३.५% लोग (१९६०) नगरों में बसते हैं। एशिया में केवल यही एक ऐसा देश है, जिसमें जन्मदर संसार के अन्य औद्योगिक स्थानों की जन्मदर के स्तर तक घटा दी गई है।
जापानी एशिया के कई भागों से आए हुए प्रतीत होते हैं। शारीरिक रचना से वे मंगोलिया से संबंधित जान पड़ते हैं। यह अनुमान है कि प्राचीन प्रस्तर काल में अनेक जातियाँ एशिया के भीतरी भागों से भिन्न भिन्न भाषाओं, सांस्कृतिक और शारीरिक विशेषताओं के साथ आकर यहाँ बसीं। यह स्थानांतरण विशेष रूप से दूसरी और तीसरी शताब्दियों में हुआ। चौथी शताब्दी तक टेनो (Teno) नामक जाति ने वर्तमान नारा (Nara) में अपना राज्य स्थापित किया। ज्ञात होता है कि जापान में बसे लोग संभवत: इंडोनेशिया, चीन और उत्तरी एशिया, साइबेरिया और अलास्का से आए थे। होकाइडो (Hokkaido) में बसी आइनू (Ainu) नामक आदिम जाति अपने समकालीन जापानियों से शारीरिक विशेषताओं में भिन्न रही है। ये लोग आर्यो के निकट मालूम होते हैं। धीरे धीरे इस जाति की शारीरिक, भाषागत और सांस्कृतिक विशिष्टताएँ अंतरसंबंधों के कारण लुप्तप्राय हो रही हैं।
विदेशी भाषाओं में मुख्यतया अंग्रेजी का अध्ययन होता है। सर्वसाधारण में जापानी का प्रयोग होता है। तीन प्रधान धर्म शिंतो, बौद्ध और ईसाई हैं। शिंतो धर्म का जन्म जापान की धरती पर ही हुआ। बौद्ध धर्म, जो भारत से छठी शताब्दी में वहाँ पहुँचा, बहुत प्रभावशाली है। ईसाई धर्म का विकास १६ वीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ। कन्फ्यूशियस का दर्शन कुछ काल के लिये शिंतो का सैद्धांमिक आधार रहा, किंतु अब उसका प्रभाव नहीं है।
जापान के प्राचीन इतिहास के संबंध में कोई निश्चयात्मक जानकारी नहीं प्राप्त है। पौराणिक मतानुसार जिम्मू नामक एक सम्राट् ९६० ई. पू. राज्यसिंहासन पर बैठा, और वहीं से जापान की व्यवस्थित कहानी आरंभ हुई। अनुमानत: तीसरी या चौथी शताब्दी में ययातों नामक जाति ने दक्षिणी जापान में अपना आधिपत्य स्थापित किया ५ वीं शताब्दी में चीन और कोरिया से संपर्क बढ़ने पर चीनी लिपि, चकित्साविज्ञान और बौद्धधर्म जापान को प्राप्त हुए। जापानी नेताओं शासननीति चीन से सीखी किंतु सत्ता का हस्तांतरण परिवारों तक ही सीमित रहा। ८ वीं शताब्दी में कुछ काल तक राजधानी नारा में रखने के बाद क्योटो में स्थापित की गई जो १८६८ तक रही।
मिनामोतो जाति के एक नेता योरितोमें ने ११९२ में कामाकुरा में सैनिक शासन स्थापित किया। इससे सामंतशाही का उदय हुआ, जो लगभग ६०० वर्ष चली। इसमें शासन सैनिक शक्ति के हाथ रहता था, राजा नाममात्र को ही होता था।
१२७४ और १२८१ में मंगोल आक्रमणों से जापान के तात्कालिक संगठन को धक्का लगा, इससे धीरे धीरे गृहयुद्ध पनपा। १५४३ में कुछ पुर्तगाली और उसके बाद स्पेनिश व्यापारी जापान पहुँचे। इसी समय सेंट फ्रांसिस जैवियर ने यहॉ ईसाई धर्म का प्रचार आरंभ किया।
१५९० तक हिदेयोशी तोयोतोमी के नेतृत्व में जापान में शांति और एकता स्थापित हुई। १६०३ में तोगुकावा वंश का आधिपत्य आरंभ हुआ, जो १८६८ तक स्थापित रहा। इस वंश ने अपनी राजधानी इदो (वर्तमान टोक्यो) में बनाई, बाह्य संसार से संबंध बढ़ाए, और ईसाई धर्म की मान्यता समाप्त कर दी। १६३९ तक चीनी और डच व्यापारियों की संख्या जापान में अत्यंत कम हो गई। अगले २५० वर्षो तक वहाँ आंतरिक सुव्यवस्था रही। गृह उद्योगों में उन्नति हुई।
१८५ में अमरीका के कमोडोर मैथ्यू पेरो के आगमन से जापान बाह्य देशों यथा अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और नीदरलैंडस् की शांतिसंधि में समिलित हुआ। लगभग १० वर्षो के बाद दक्षिणी जातियों ने सफल विद्रोह करके सम्राटतंत्र स्थापित किया, १८६८ में सम्राट मीजी ने अपनी संप्रभुता स्थापित की।
१८९४-९५ में कोरिया के प्रश्न पर चीन से और १९०४-५ में रूस द्वारा मंचूरिया और कोरिया में हस्तक्षेप किए जाने से रूस के विरुद्ध जापान को युद्ध करना पड़ा। दोनों युद्धों में जापान के अधिकार में आ गए। मंचूरिया और कोरिया में उसका प्रभाव भी बढ़ गया।
प्रथम विश्वयुद्ध में सम्राट् ताइशो ने बहुत सीमित रूप से भाग लिया। इसके बाद जापान की अर्थव्यवस्था द्रुतगति से परिवर्तित हुई। उद्योगीकरण का विस्तार किया गया।
१९३६ तक देश की राजनीति सैनिक अधिकारियों के हाथ में आ गई और दलगत सत्ता का अस्तित्व समाप्त हो गया। जापान राष्ट्रसंघ से पृथक् हो गया। जर्मनी और इटली से संधि करके उसने चीन पर आक्रमण शुरू कर दिया। १९४१ में जापान ने रूस से शांतिसंधि को। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अगस्त, १९४५ में जापान ने मित्र राष्ट्रो के सामने विना शर्त आत्मसमर्पण किया। इस घटना से सम्राट जो अब तक राजनीति में महत्वहीन थे, पुन: सक्रिय हुए। मित्र राष्ट्रों के सर्वोच्च सैनिक कमांडर डगलस मैकआर्थर के निर्देश में जापान में अनेक सुधार हुए। संसदीय सरकार का गठन, भूमिसुधार, ओर स्थानीय स्वायत्त शासन निकाय नई शासन निकाय नई शासनव्यवस्था के रूप थे। १९४७ में नया संविधान लागू रहा। १९५१ में सेनफ्रांसिस्को में अन्य ५५ राष्ट्रों के साथ शांतिसंधि में जापान ने भी भाग लिया। जापान ने संयुक्त राज्य अमरीका के साथ सुरक्षात्मक संधि की जिसमें जापान को केवल प्रतिरक्षा के हेतु सेना रखने की शर्त थी। १९५६ में रूस के साथ हुई संधि से परस्पर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई। उसी वर्ष जापान राष्ट्रसंघ का सदस्य हुआ।