जानोजी जसवंत बिनालकर, महाराज यह राव रंभा के लड़के थे। राव रंभा, ऊँचे मंसब के साथ दक्षिण का कार्यभार औरंगजेब के आज्ञानुसार संभाले थे, किंतु कुछ षड्यंत्रों के कारण वे कैद कर लिये गए, बाद में कैद से छूट गए। कुछ लड़ाइयों में शौर्य प्रदर्शित करने के कारण उनका मंसब सात हजार सवार का हो गया। उनके मरने पर सारी जागीर, महल आदि उनके बेटे जानोजी को मिले। जानोजी जागीरदारी के कार्य में दक्ष, युद्धवीर और नीतिमर्मज्ञ थे। बादशाह का जब कोई मामला दक्षिण में मरहठों से उझलता था तब यही मध्यस्थता करते थे। नासिरजंग निजामुद्दौलाके समय जानोजी को जसवंत की उपाधि मिली। फूलझरी के युद्ध में नासिरजंग शहीद के साथ इन्होंने खूब वीरता दिखाई। सन् १७६२ ई. में ये चल बसे।