जादोराव कानसटिया निजाम राज्य के सरदारों में से थे। जहाँगीर के राज्य के १६वें वर्ष जब शाहजहाँ दक्षिण के विद्रोहियों का दमन करने गए तब वह भी उसके साथ हो गए। फलत: पाँचहजारी मंसब देकर उनका सम्मान किया गया। इनके और बहुत से रिश्तेदारों को भी मंसब दिए गए थे जिनका योग चौबीसहजारी १५,००० सवारों, तक पहुँच गया था। इन्हें दक्षिण में एक जागीर भी दी गई।

शाहजहाँ के शासन के तीसरे वर्ष जादोराव अपने संबंधियों को लेकर निजामशाही राज्य को वापस लौट गए। शहाजहाँ ने इसे देशद्रोह माना और जादोराव को गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया। जादोराव ने अपने संबंधियों के साथ गिरफ्तार करनेवाली सेना के विरुद्ध डटकर युद्ध किया और उसी युद्ध में मारे गए। इसके बाद इनके रिश्तेदारों के सारे दोष क्षमा कर दिए गए और उन्हें सदैव उच्च पद दिए जाते रहे।