जादू (Conjuring) बाजीगरी, हस्तकौशल या इंद्रजाल सादृश खेलों को कहते हैं जिनमें असंभव समझे जानेवाले काम करके दिखाए जाते हैं। जादूगर या बाजीगर इन असंभव कार्यो को करके दिखाने में हस्तकौशल, मानसिक प्रभाव तथा बहुधा यांत्रिक उपकरणों का उपयोग करता है। खेल दिखानेवाले का प्रभाव तभी तक पड़ता है जब तक उसके कार्यो पर रहस्य का पर्दा पड़ा रहे। इसलिये वह अपनी रीतियों को गुप्त रखता है और दर्शकों को उल्टा सीधा कारण सोचने देता है। बाजीगरी के खेलों का प्रभाव विस्मयकारी होने के सिवाय इनकी विशेषता यह है कि प्रत्येक देश और जाति के लोग इनको समझ सकते हैं और इनका आनंद ले सकते है।
इतिहास� प्राचीन काल में मिस्र, ग्रीस और रोम में पुरोहितों द्वारा धर्म पर आस्था उत्पन्न करने के उद्देश्य से किए जानेवाले करतबों से अपनाई गई रीतियों का वर्णन कुछ विद्वानों ने किया है। यह ज्ञात है कि देवताओं को उपस्थित तथा अंतर्धान करने के लिए प्रकाशिकी पर आधारित इंद्रजाल का, मूर्तियों से बातें कराने के लिये उनके मुँह से जुड़ी नलियों द्वारा छिपे हुए मनुष्यों की वाणी का तथा अन्य अलौकिक और विलक्षण घटनाओं को दिखाने के लिये विविध यांत्रिक उपकरणों का उपयोग किया जाता था। भारत में धार्मिक प्रभावों के लिये इस प्रकार की बाजीगरी के उपयोग के कोई पक्के प्रमाण नहीं मिलते, किंतु अन्य प्रसंगों में ऐंद्रजालिक, मायिक, कापालिक, मांत्रिक, तांत्रिक, हस्तकौशली आदि व्यक्तियों का वर्णन अनेक प्राचीन ग्रंथों में आया है। पिछले जमाने के नट, मदारी, जादूगर इत्यादि की कथाओं से तो सभी परिचित हैं। मंदिरों के पुरोहितों के करतब इस प्रकार के होते थे कि वे मंदिरों के बाहर नहीं दिखाए जा सकते थे, किंतु साधारण बाजीगर अपने खेल चाहे जहाँ दिखा सकते है।
जादू के खेल � भारत ने इस दिशा में भी प्राचीन काल में बड़ा नाम कमाया था। जादू के अनेक खेलों का अविष्कार भारत में हुआ और यहाँ से इनका ज्ञान अन्य देशों में फैला; जैसे, एक खेल में एक मनुष्य को अधर में बैठा हुआ दिखाया जाता है। इस मनुष्य का एक हाथ मंच पर रखी एक चौकी या तिपाई पर खड़ा जड़े एक बाँस से छूता रहता है। इस भारतीय खेल को फ्रांसीसी जादूगर, जहाँ यूजीन रॉबर्ट ऊर्दै (सन १८०५-१८७१) ने सन् १८४९ में यूरोप में दिखाकर दर्शकों को आश्चर्यचकित कर दिया था। यह लाग का खेल है, जिसमें बाँस के भीतर समकोण पर मुड़ा एक लोहे का डंडा छिपा रहता है और मनुष्य को अधर में सभाँलने के लिये इसी डंडे से एक उपकरण जुड़ा होता है। मनुष्य के कपड़ों और आस्तीन से डंडे का बाहरी भाग और उपकरण ढक जाते हैं। इसी प्रकार के अन्य भारतीय खेलों का देशांतरगमन हुआ है, अथवा अन्य देशों के जादूगरों ने इनका वर्णन सुन इन खेलों के करने की रीतियों का स्वतंत्र आविष्कार किया है। खेलों में रस्सी का भारतीय खेल भी है, जो 'इंडियन रोप ट्रिक' के नाम से यूरोप में बहुप्रसिद्ध है। इस खेल में मदारी, या नट, घरी की हुई लंबी रस्सी के एक सिरे को आकाश की तरफ फेंक देता है और रस्सी आकाश में सीधी चढ़ती चली जाती है। यहाँ तक कि केवल उसका निचला सिरा पृथ्वी के पास स्थिर रह जाता है और ऊपर वाला दिखाई नहीं देता। तब पुकारने पर नट का लड़का, या सहायक, रस्सी के निचले छोर को पकड़कर उसपर चढ़ता हुआ अदृश्य हो जाता है। थोड़ी देर बाद आकाश में घोर युद्ध की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं और रस्सी द्वारा चढ़े हुए लड़के के हाथ, पाँव तथा अन्य अंग कट कटकर पृथ्वी पर गिर पड़ते हैं। लड़के की माँ विलाप करने लगती है, जिसे सुन मदारी उसे ढाढ़स देता है और मंत्र पढ़कर, आकाश की तरफ फूँक, लड़के को नीचे उतरने का आदेश देता है। लड़का सही सलामत नीचे आ खड़ा होता है। इस खेल का ऑखों देखा वर्णन अत्युच्च अंग्रेज पदाधिकारियों ने लंदन ने टाम्स ऐसे सम्मानित पत्रों में लगभग ८० वर्ष पहले छपवाया था। अब इस खेल को दिखानेवाले नहीं मिलते।
गेंद और प्यालेवाला खेल, जिसमें प्याले में रखी गेंद गायब हो जाती है, या खाली प्याले में एक से अधिक गेंदें निकल आती हैं, एक रस्सी जो बारबार काट देने पर साबूत हो जाती है तथा शरीर में चाकू या सूओं को घोप लेने के खेल भी सर्वत्र, भारत तथा अन्य देशों में, दिखाए जाते हैं। सबसे पहलेवाले खेल में प्याले की गेंद कुशलता से निकाल ली जाती है तथा अन्य ���ֻ��� ���� ����� �'����‡� अन्य गेंदें वैसी ही कुशलता से रख दी जाती हैं, द्वितीय खेल में जैसा दिखाया जाता है वैसे रस्सी काटी ही नहीं जाती और इसलिए समूची बनी रहती है तथा तीसरे खेल में जो कोई हानि नहीं पहुँचाते।
प्रदर्शन की रीतियाँ � प्राचीन काल से जादू के खेल दिखानेवालों में एक स्थान से दूसरे स्थान में घूमकर घूमकर खेलों के दिखाने की परिपाटी चली आती है। इनमें राजाओं के दरबारों में खेल दिखानेवाले अधिक कुशल तथा उनके खेल भी संख्या में अधिक और विस्मयकारी प्रभाव में असाधारण होते थे। कम योग्यता के नट अमीरों के घरों पर या बाजारों में साधारण जनता को, अपने खेल आज भी दिखाते हैं। जैसे जैसे इस क्षेत्र में उन्नति होती गई, इसके उपकरणों में भी वृद्धि होती गई, यहाँ तक कि विशेष प्रकार के जटिल यंत्रों का भी उपयोग होने लगा। इस अवस्था में स्थायी, या अर्धस्थायी आवास तथा एक मंच आवश्यक हो गया। उपकरणों और यंत्रों को मंच के नीचे स्थापित कर, ढकी हुई बड़ी मेज के नीचे बने प्रच्छन्न द्वारों से, छिपे हुए कार्यकर्ताओं की सहायता द्वारा, विचित्र और विस्तृत खेल दिखाना संभव हो गया। इस रीति से मेज पर रखी हुई किसी वस्तु को दर्शकों के सामने एक क्षण के लिये ढककर जादूगर के आदेश पर अदृश्य कर देना, या संपूर्णत: भिन्न प्रकार की वस्तु में बदल देना, सरल हो गया।
प्रसिद्ध जादूगर � अन्य देशों में प्रचलित जादू के खेलों का संग्रह कर, यांत्रिकी और विज्ञान की खोजों से लाभ उठा तथा नए खेलों का आविष्कार कर यूरोप और अमरीका के जादूगरों ने खेलों में बड़ी उन्नति की। इस उन्नति में जॉन नेविल मैसकेलिन (सन् १८३९-१९१७) का बड़ा हाथ रहा है। तालाबंद और रस्सी के बाँधे हुए संदूक में से निकल जाना, अधर में बेसहारा लटके हुए मनुष्य को ऊपर और नीचे उठाना तथा लटकी हुई अवस्था में उसके शरीर को एक वलय में से निकालकर सिद्ध करना कि उसे किसी तार या रस्सी से नहीं लटकाया है, ये सब खेल उन्हीं के आविष्कार हैं। अन्य यूरोपीय जादूगरों में जे.ए. क्लार्क, डेविड डेवांट (सन् १८६८-१९४१), जोसेफ वूएटियर (सन् १८४५-१९०३) तथा मैक्स ओजिंगर (सन् १८६९-१९३६) केवल ताश के तथा टा.एन. डाउन्स (सन् १८६७-१९३८) केवल मुद्राओं (सिक्कों) से जादू के खेल दिखाते थे। हैरी हाउडिनि (१८४७-१९३६) रस्सियों के बंधनों से, हथकड़ियों और बेड़ियों से निकलने के खेल दिखाने के लिये प्रसिद्ध हुए हैं। चीनी जादूगरों में चिंग लिंग पू (सन् १८५४-१९१८) का नाम अति प्रसिद्ध है। आधुनिक भारत में श्री पी.सी. सरकार (बंगाल) ने इस क्षेत्र में खूब नाम कमाया और देश-वदेश में दर्शकों को विमुग्ध और चकित किया है।
बाजीगर के गुण � जादूगर के व्यक्तित्व का तथा उसके खेल के समयानुकूल और स्वाभाविक होने का दर्शकों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। असंभव को संभव कर दिखानेवाले जादूगर के लिये यह परमावश्यक है कि उसका प्रत्येक बोल और कार्य विकल्प और दुविधाहीन हो। इस बात को निश्चय तभी हो सकता है जब निरंतर अभ्यास से ऐसी निपुणता आ जाए कि प्रत्येक कार्य बिना विचारे, स्वयमेव होता जाए। वास्तविक योग्यता अनुभव से ही आती है। जादूगर में आमोदजनक, मुग्धकारी तथा विश्वासोत्पादक रीति से बात करने की तथा बिना बोले अभिनय से विचारों को जानने की योग्यता होनी चाहिए। ललित भाषा तथा यथेष्ट ऊँची वाणी भी आवश्चक गुण है। (भगवान दास)