जाति (स्पीशीज़, Species) वर्गीकरण की एक महत्वपूर्ण श्रेणी है। यह वर्गीकरण साधारण जीववैज्ञानिक का भी इसके बिना काम नहीं चलता। साधारण भाषा में 'स्पीशीज़' शब्द का अर्थ है ''प्रकार'' और आधुनिक जैव वैज्ञानिक संकल्पना के पूर्व भी इस शब्द का यही अर्थ माना जाता था। निर्जीव पदार्थो के वर्गीकरण के संबंध में भी इस शब्द का प्रयोग होता है, जैसे खनिज पदार्थो की जातियाँ (species of minerals)। ग्रीसवासी, विशेषकर प्लेटो तथा उनके साथी, स्पीशीज के लिये शब्द आइडोस (eidos) का प्रयोग करते थे।

जाति संकल्पना (species concept) को जन्म देने का श्रेय जे. रे (J. Ray) इन्होंने अपनी पुस्तक (Historia Plantarum) में स्पीशीज शब्द का प्रयोग उसी अभिप्राय से किया था जिससे लिनीयस (Linnaeus) तथा १९ वीं सदी के अन्य वर्गीकरण वैज्ञानिकों ने किया था। जातिसंकल्पना किसी भी स्पीशीज के प्राकृतिक अध्ययन पर आधारित है। किसी भी स्थान के जंतुओं अथवा वनस्पतियों का विद्यार्थी अनेक 'प्रकार' के प्राणी एवं पौधे देखता है। उदाहरण के लिये प्रयाग के आस पास लगभग १२५ 'प्रकार' की चिड़ियाँ पाई जाती हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यहाँ चिड़ियों की १२५ जातियाँ हैं। एक जाति के प्राणियों की यह विशेषता होती है कि वे आपस में प्रजनन कर सकते हैं, परंतु अन्य जातियों के सदस्यों के सहयोग से वे प्रजनन नहीं कर सकते।

्थ्राश (Thrush) नामक चिड़ियों की प्राय: पाँच या छ: जातियाँ एक ही स्थान पर पाई जाती हैं। देखने में ये सब एक जैसी होती हैं। आपस मे रचनात्मक एकरूपता होते हुए भी एक जाति की मादा दूसरी जाति के नर के सहयोग से प्रजनन नहीं कर सकती। प्रजनन हेतु ये विच्छिन्न हैं।

किंतु इसके अनंतर वर्गीकरण में वैज्ञानिकों के सम्मुख यह विशेष कठिनाई उत्पन्न हुई क जाति के प्राकृतिक रूप को किस प्रकार व्यावहारिक रूप दिया जाय। प्रत्येक जाति को उपयुक्त मान्यता देने के लिये उसका प्राकृतिक अध्ययन साधारण रूप से संभव नहीं, इसलिये लोगों ने उसे आकारिकीय (morphological) रूप दिया और एक जाति को दूसरी जाति से स्पष्ट आकारिकीय लक्षण, जाति लक्षण, से पृथक् कर दिया। परंतु शीघ्र ही देखा गया कि आयुभेद, लैंगिक द्विरूपता तथा बहुरूपता (polymorphism) के प्रभाव से अनेक जातियाँ आकारिकीय मित्रता उत्पन्न कर लेती हैं। इससे कुशल वैज्ञानिक भी उन्हें पृथक् पृथक् स्पीशीज मान बैठते हैं। इनके अंत: प्रजनन से इनका एक ही स्पीशीज का होना सिद्ध होता है। ऐसे स्पीशीज को 'कॉनस्पेसीफिक' (conspecific) स्पीशीज़ नाम दिया गया है।

ऐसे भी उदाहरण प्राप्त हैं जिसमें कई जातियों के पशु देखने में एक प्रतीत होते हैं और अवारिकी के आधार पर उन्हें एक ही स्पीशीज़ माना जा सकता है, परंतु वे आपस मे अंत: प्रजनन नहीं करते। इसलिये आकारिकीय एकरूपता होते हुए भी इनको अलग अलग स्पीशीज माना जाता है। अत: केवल आकारिकीय अभिलक्षणों पर आधारित स्पीशीज़ की परिभाषा का महत्वपूर्ण लक्षण है, यद्यपि क्रियात्मक वर्गीकरण में इसका व्यवहार साधारणत: संभव नहीं। स्पीशीज की इस परिभाशा को जैव वैज्ञानिक (biological) परिभाषा कहते हैं। इस परिभाषा के आधार पर स्पीशीज़ यथार्थरूप से (अर्थात् कार्यक्षमता) आपस में अंत: प्रजनन करनेवाली जीवसंख्या को कहते हैं। (प्रभा ग्रोवर)