जातक बुद्ध भगवान् के पूर्वजन्म संबंधी कथानक को पालि साहित्य में 'जातक' कहा गया है। बुद्धत्वप्राप्ति के पूर्व के जन्मों में दानशील आदि पारमिताओं द्वारा 'बोधि' की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील प्राणी बोधिसत्व कहलाता है और उसी के जीवन की किसी महत्वपूर्ण उपदेशप्रद घटना का आख्यान जातक में किया जाता है। पालि त्रिपिटक में जातकों का स्थान सुत्त पिटक के पंचम विभाग खुद्दक निकाय के अंतर्गत है और इस विभाग का नाम भी जातक है। 'चुल्लनिद्देस' के अनुसार जातकों की संख्या ५०० है। और इसी संख्या का समर्थन चीनी यात्री फाहियान (६ वीं शती) के इस कथन से होता है कि उसने लंका में ५०० जातकों के चित्र देखे थे। संप्रति उपलब्ध जातकों की संख्या ५४७ या ५४८ है। इस संख्याभेद का एक कारण यह भी है कि कहीं कहीं एक के दो या दो के एक जातक भी बना दिए गए हैं। वस्तुत: जातकों की रचना सुत्तपिटक और विनयपिटक के आधार पर ही की गई है और उनमें अवांतर कथानक भी जोड़े गए हैं। इन सब कथाओं को यदि पृथक् पृथक् लिया जाय तो पालि साहित्य के जातक खंड में लगभग ३००० कहानियाँ प्राप्त होती हैं।

प्रत्येक जातक के पाँच भाग होते हैं -- १. पच्चुपन्नवत्थु; २. अतीतवत्थु; ३. गाथा, ४. वेइयाकरण और ५. समोधान। इनमें क्रमश: तात्कालिक बुद्धजीवन की घटना, उस घटना से संबद्ध पूर्वजन्म का वृत्त, तद्विषयक पद्यात्मक एक या अनेक गाथाएँ, उन गाथाओं का अर्थविस्तार और अतीत के पात्रों का बुद्ध जीवनकालीन व्यक्तियों से समन्वय दिखलाया जाता है। जातक साहित्य का सूक्ष्म अध्ययन करके राइस डेविड्स ने जातकों के संबंध में निम्नलिखित तथ्य स्थापित किए हैं -- (१) मूलत: जातक केवल गाथात्मक थे और उनकी रचना अशोक से पूर्व मध्यप्रदेश में हुई थी। (२) इनके आधार पर विस्तारपूर्वक कथा कहने की मौखिक परंपरा चलती थी, (३) तीसरी शती के ऐसे पाषाणखचित चित्र साँची, भरहुत आदि स्थानों में पाए गए हैं, जिनमें अनेक जातक कथाओं का चित्रण गया है। इनमें एक स्थान पर जातक की आधी गाथा भी उद्धृत की गई है। (४) पालि त्रिपिटक के अन्य ग्रंथों में ऐसी जातक कथाएँ मिलती हैं। जो उनके जातक खंड में संगृहीत रूप की अपेक्षा अधिक प्राचीन हैं। (५) इन प्राचीनतम जातकों का स्वरूप कोई उपमा, रूपक या उपाख्यान मात्र है। उनमें न गाथाएँ हैं और न कथा की पूरी रूपरेखा। उनमें बुद्ध अपने पूर्वजन्म में कियर पशुयोनि में अथवा साधारण मनुष्य के रूप में नहीं पाए जाते। वे केवल किसी प्राचीन महापुरुष के रूप में प्रकट होते हैं। (६) वर्तमान में प्रचलित जातक वस्तुत: त्रिपिटकांतर्गत जातक नहीं हैं। वे उसकी अट्ठकथाएँ नामक टीकाएँ हैं जो लंका में संभवत: पाँचवीं शती में किसी अज्ञात लेखक द्वारा लिखी गईं। (६) वर्तमान में प्रचलित जातक वस्तुत: त्रिपिटकांतर्गत जातक नहीं हैं। वे उसकी अट्ठकथाएँ नामे टीकाएँ हैं जो लंका में संभवत: पॉचवीं शती में किसी अज्ञात लेखक द्वारा लिखी गईं। (७) जातक के जो पाँच अंग ऊपर बतलाए जा चुके हैं वे यथार्थत: इन अट्ठकथाओं के ही हैं। (८) यह अट्ठकथा मूलत: सिंहली भाषा में लिखी गई थी जो अब नहीं मिलती। उसी का पालि अनुवाद अब प्रचलित है। वैसे गाथाएँ अवश्य पहले से ही पालि में रहीं (९) जातक जिस रूप में अब मिलते हैं उनमें बहुतायत से ई. पू. तीसरी शती की परंपरा सुरक्षित है। इसके अपवाद क्वचित् ही मिलते हैं। (१०) जातकों में उल्लिखित राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ प्रधानत: वे हैं जो बुद्धकाल से पर्व उत्तर भारत में वर्तमान थीं। (११) मूल जातकों के निर्माणकाल मे उनके अधिकांश कथानक सीधे उत्तर भारत की लोककथाओं से लिए गए हैं। (१२) जातकों के सूक्ष्म अध्ययन से उनकी परस्पर आपेक्षिक प्राचीनता का कुछ कुछ पता चलता है। बहूधा छोटे जातक अपेक्षाकृत प्राचीन सिद्ध होते हैं। (१३) सभी जातकों में गाथाएँ अनुबद्ध हैं। जिन जातकों में ये गाथाएँ कथानक के प्रसंग से बँधी हुई नहीं हैं वे संभवत: मौलिक भारतीय लोककथाएँ हैं। (१४) कुछ गाथाएँ ऐसी भी हैं जिनमें कथा के बीच आई हुई गाथाएँ गीति मात्र हैं, आख्यान का अंग नहीं। इन्हें भी मूल भारतीय लोकथाएँ माना जाता है। (१५) ये जातक संसार भर के उपलभ्य साहित्य में सबसे अधिक प्रामाणिक, अत्याधिक सुसंपूर्ण और प्राचीनतम लोककथाओं के संग्रह हैं।

विषय की दृष्टि से विंटरनित्स ने जातकों के सात विभाग किए हैं : व्यावहारिक चातुरी, पशुपक्षी कल्पना, विनोद, रोमांचक उपन्यास, नीति, कहावत और धार्मिक वृत्तांत (इनमें से प्रथम चार विषयक जातकों में बौद्ध धर्म की गंध भी नहीं है, और शेष में नाम मात्र की।)

मूल में जातकों का विभाजन २२ निपातों में किया जाता है और उनमें उन्हें गाथाओं की संख्या तथा विस्तार के क्रम में रखा गया है; जैसे प्रथम निपात के १५० जातकों में एक एक ही गाथा है, और वे छोटे छोटे भी हैं। दूसरे निपात में दो दो और तीसरे में तीन तीन गाथाओं का प्रत्येक जातक मे समावेश है और वे परिमाण में भी क्रमश: बढ़ते हुए अंतिम २२ वें निपात के कुल दस जातकों में गाथाओं की संख्या सौ -सौ भी अधिक हो गई है।

जातकों में जंबुद्वीप, मध्यप्रदेश, अंग, मगध, काशी, कोशल, कुरु, गंधार, आदि जनपदों, कपिलवस्तु, मिथिला, वैशाली, राजगृह, श्रावस्ती, तक्षशिला आदि नगरों; पांडव, वैभार, गयासीस आदि पर्वतों तथा नेरंजना, अनोमा आदि नदियों के संबंध में ऐसी उपयोगी सूचनाएँ पाई जाती हैं कि उनके आधार पर विमलचरण ला ने बुद्धकालीन भूगोल का निर्माण किया है। जातकों में विभिन्न राष्ट्रों, राजवंशों बिंबसार आदि राजाओं, जनता के रोजगार धंधों तथा विचित्र मानव वृत्तियों संबंधी इतने प्रचुर उल्लेख आए हैं कि उनसे समग्री लेकर फिक़ ने तत्कालीन सामाजिक अवस्था का, राइस डेविड्स ने जनजीवन का, श्रीमती राइस डेविड्स ने आर्थिक दशा का एवं राधाकुमुद मुकर्जी ने भारतीय नौकायन एवं भारतीय व्यापार का बड़ा सजीव चित्रण उपस्थित किया है।

सद्दालक, सेतकेतु, महाजनक आदि जातकों में वैदिक आख्यान; दशरथ और देवधम्म जातकों में रामायण की तथा कुनाल, घट, महाकण्ह आदि जातकों में महाभारत की कथाएँ विद्यमान हैं। अन्य जातकों में सर्वत्र पंचतंत्र, हितोपदेश बृहत्कथा कथासरित्सागर के पूर्वावादि की कथाओं के पूर्वरूप मिलते ही हैं, किंतु यूरोपीय ईसप की कहानियाँ, बाइबिल के संतों, अरबी अलिफलैला तथा सामान्यत: यूनान, इटली, स्पेन फ्रांस आदि देशों की नाना लोककथाओं के बीज भी यहाँ बिखरे हुए हैं। इसीलिये जर्मन विद्वान् बेनफ़ी ने जातक को विश्व-कथा-साहित्य का आदिस्त्रोत माना है। इस प्रकार केवल भारत को नहीं प्रत्युक्त समस्त संसार की प्राचीन सभ्यता एवं साहित्य के इतिहास के लिये जातक अति महत्वपूर्ण और अनुपम सामाग्री से भरे हुए हैं।

सं.ग्रं. ¾ इंसाइक्लोपीडिया आव रेलिजन ऐंड एथिक्स; राइस डेविड्स : बुद्धिस्ट इंडिया; विंटरनित्स : हिस्ट्री ओवरइंडियन लिटरेचर, भा. २। (हीरालाल जैन)