जाट भारत और पाकिस्तान में बसनेवाली एक जाति जिसके लोग मुख्य रूप से पंजाब, सिंध, राजस्थान, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे पाए जाते हैं। 'जाट' शब्द की व्युत्पत्ति उत्तर संस्कृत काल में प्रयुक्त जट्ट शब्द से ज्ञात होती है। मुहम्मद ताहिर अल पटनी ने इसका अरबी रूप जुट्अ (Zutta) दिया है। लंबे चौड़े तथा सुगठित डील डौल और श्यामवर्ण जाटों की जाति के संबंध में अभी तक विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है। साधारणतया इन्हें आर्य जाति का माना जाता है, किंतु अन्य प्राचीन जातियों के रक्त का भी मिश्रण इनमें हुआ है पंजाब में यह जाति हिंदू, मुसलमान और सिख तीन धर्मो में बँटी हुई है। हिंदू और सिख जाट भारत-पाक विभाजन के बाद भारत आ गए। उत्तर प्रदेश के उत्तरी पश्चिमी जिलों में इनकी बस्ती अधिक है।

हिंदू विवाह कानून, १९५५ के बाद इनमें बहुविवाद की प्रथा समाप्त हो गई। विधवा विवाह जैसी प्रथाएँ प्रचलित हैं।

मुहम्मद-अल-कासिम ने जब भारत पर आक्रमण किया (७१२ ई.) तो उसने बड़ी संख्या में जाटों को युद्धबंदी के रूप में ईराक भेद दिया। जो शेष बचे, वे सिध तथा पास के प्रदेशों में शांतिपूर्वक बस गए। महमूद गजनवी के आक्रमण के विरुद्ध ये वीरता से लड़े। मुगल काल में सदैव ये राजसत्ता के प्रति विद्रोही रहे। औरंगजेब इनके दमन के अनेक असफल प्रयत्न किए। उसकी मृत्यु के बाद जब मुगल साम्राज्य छिन्न भिन्न होने लगा तो सूरजमल के नेतृत्व में जाटों ने आगरा और दिल्ली के बीच बहुत आतंक फैलाया। दिल्ली में उनके अत्याचारों की कथा शाह बलीअल्लाह देहलवी और शाह अब्दुल अजीज अल देहलवी के पत्रों में मिलती है। अहमदशाह अब्दाली अपने कई आक्रमणों (१८ वीं शती) के बाद भी इनका दमन नहीं कर पाया। १७६१ में मराठों के विरुद्ध दुर्रानी की विजय ने (पानीपत का तीसरा युद्ध) इन्हें शक्तिहीन बना दिया। फिर भी रणजीतसिंह ने पंजाब में एक छोटे से सिक्ख राज्य की स्थापना की। १८५७ की सशस्त्र क्रांति में जाटों की हिंसक प्रवृत्तियाँ उभरीं, किंतु अंग्रेजी सेना ने इनका दम कर दिया। १९४७ में भारतविभाजन के समय इन्होंने पुन: अलवर और भरतपुर में लूट और हत्या के कांड किए।

सिंध में मुसलमानों का आधिपत्य होने के बाद कुछ जाटों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। यह मुख्यत: जलालुद्दीन हुसेन बुखारी और फरीद-अल-दीन गंजी शकूर के प्रयत्नों से हुआ। औरंगजेब के समय में भी कुछ जाट मुसलमान हो गए थे।

अपेक्षाकृत कम शिक्षित और कम संस्कृत जाट जाति ने अनेक प्रतिभाशाली व्यक्तियों को जन्म दिया है। आबूहनीफ, इमाम अवजाई और शिबली नूमानी आदि प्रसिद्ध व्यक्ति इसी जाति में उत्पन्न हुए। पाकिस्तानी जाटों में सर मुहम्मद जफरुल्ला खाँ, जो संयुक्तराष्ट्र संघ की साधारण सभा के अध्यक्ष रह चुके हैं, इसके उदाहरण हैं।