जाकोबें जाकोबं फ्रांस के क्रांतिकाल का सर्वाधिक प्रसिद्ध राजनीतिक दल था। इसके प्रारंभिक सदस्य सन् १७८९ ई. में स्टेटस जनरल में सम्मिलित होने के लिये ब्रिटेन के संसदसदस्य थे जो वरसाई के एक कैफे में विचार विनिमय के लिये गोष्ठियाँ आयोजित किया करते थे। इन गोष्ठियों का नाम ब्रिटेन क्लब पड़ा और कालांतर में फ्रांस के अन्य भागों के संसदसदस्य भी इनमें भाग लेने लगे। जब अक्टूबर के विप्लव के अनंतर संसद को पेरिस ले जाया गया तब ब्रिटेन क्लब भंग हो गया। परंतु इसके सदस्य गोष्ठियों की आवश्यकता अनुभव करते रहे। फलत: उन्होंने डोमिनिकन पादरियों (जिन्हें फ्रांस में जाकोबें कहते हैं) के मठ में एक कमरा किराए पर लिया तथा ''पेरिस सोसाइटी'' की स्थापना की। इस नए क्लब को राजतंत्र के अनुयायी व्यंग्य में जाकोबें क्लब कहते थे, परंतु इसके सदस्यों ने सगर्व यह नाम अपना लिया। अति शीघ्र ही इस क्लब की शाखाएँ प्रांतों में स्थापित हो गई।
जाकोबें ने प्रभावकारी संस्था के रूप में कार्यारंभ किया। उसके प्रचार के ढंग अत्याधिक आधुनिक थे। सन् १७९२-९३ में इसका उद्देश्य गणतंत्रात्मक सरकार की स्थापना, पुरुष मताधिकार, विधान के सम्मुख समता, वैयक्ति प्रतिद्वंद्विता के स्वतंत्र क्षेत्र से उद्भूत आर्थिक समता, सार्वभौम शिक्षा आदि की प्राप्ति तथा राज्य एवं चर्च को विलग करने के लिये जनता पर दबाव डालना था। प्रारंभ में जोकोबें क्लब के प्रमुख उद्देश्य थे ¾ संसद द्वारा तय की जानेवाली समस्याओं पर उसके पूर्व ही विचार करना तथा संविधान को स्थापित एवं सशक्त रखने के लिये कार्य करना। क्लब के पदाधिकारियों में एक अध्यक्ष (जिसका निर्वाचन प्रति मास होता था), चार मंत्री तथा एक कोषाध्यक्ष होते थे। इनके अतिरिक्त क्लब के प्रबंध तथा पत्रव्यवहार के लिये कुछ समितियाँ होती थीं।
परंतु जाकोबें क्लब केवल एक राजनीतिक दल नहीं था वरन् अपने सिद्धांतों को धार्मिक आवरण प्रदान कर उसने धार्मिक पंथ का भी रूप धारण किया। इस रूप में इसकी गोष्ठियों में क्रांतिकारी स्तोत्र गाए जाते तथा नैतिक प्रवचन दिय जाते थे। इन गोष्ठियों की क्रियापद्धति रूसोवादी भावुकता, १८ वीं शताब्दी की बुद्धिवादी कैथेलिक प्रथाओं तथा जनरीतियों का अद्भुत सम्मिश्रण थी। विधिसंगत पद्धति में अंतर या परिवर्तन के प्रति घोर असहिष्णुता, सदस्यों में धर्मदंड का भय, व्यवहार मे पूर्ण रसहीनता, तथा विरोधी को महापापी मानने का विश्वास आदि इन गोष्ठियों के प्रमुख लक्षण थे जो धार्मिक निष्ठा तथा कट्टरता के परिचायक थे।
''आतंक'' के काल में जाकोबें क्लब क्रांति के पूजास्थल मात्र बनकर रह गए तथा यथेष्ट संख्चा में इनके सदस्य नई सरकार के कर्मचारी बन गए। अतएव स्वभावत: दबाव के गुट के रूप में क्लब की पुरानी क्रियाएँ समाप्त हो गईं। थर्मीडार के बाद तो ये क्लब तीव्र गति से नष्ट होने लगे और सन् १७९५ ई. तक सभी जाकोबें क्लब समाप्त हो गए। (राधे श्याम अंवष्ट)