जहाँगीर अकबर का पुत्र और भारत का चौथा मुगल सम्राट्। फतहपुर सीकरी में एक हिन्दू रानी के गर्भ से ३१ अगस्त, १५६९ को इसका जन्म हुआ। 'शेख सलीम चिश्ती' की कुटिया में उत्पन्न होने के कारण राजकुमार का नाम सलीम रखा गया। अकबर ने इसके पालन और उच्चशिक्षा की समुचित व्यवस्था की किंतु राजकुमार अपने को राजनीतिक वातावरण से मुक्त नहीं रख सका, फलत: पिता-पुत्र में वैमनस्य हो गया। १५९९ में इलाहाबाद में विद्रोह करके उसने अपने स्वतंत्र राज्य की घोषणा की।
अकबर ने सलीम के साथ संधि के अनेक असफल प्रयत्न किए। एक बार राजकुमार अपनी सेना लेकर अकबर पर आक्रमण के मंतव्य से आगरे की ओर चला, किंतु अकबर के शक्तिशाली प्रतिरोध के कारण वह इलाहाबाद लौट गया। वहाँ पहुँचकर उसने अपने को सम्राट् घोषित किया। बैरमखाँ की विधवा पत्नी सलीमा सुलतान बेगम की मध्यस्थता से सलीम और अकबर के बीच केवल अस्थायी संधि हो सकी। लेकिन सलीम को अपने पिता पर अविश्वास था, इसलिये उसने दरबार के एक विश्वासपात्र मंत्री अबुलफजल को षड्यंत्र का मूल समझ कर उसकी हत्या कर दी।
१६०५ में अकबर की मृत्यु के बाद यह 'अबुल मुजफ्फर नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाह-ए-गाजी के नाम से राज्यसिंहासन पर बैठा। यह नाम उसके सिक्कों से प्रकट होता है। जहाँगीर के सत्तारूढ़ होने के एक वर्ष पश्चात् उसका पुत्र खुसरा विद्रोही हो गया। किंतु १६२३ में बुहारनपुर में उसकी मृत्यु होने पर जहाँगीर निश्चित हो गया। उसने सिखों के धर्मगुरु अर्जुनसिंह पर खुसरो के विद्रोह के सहायक होने का आरोप लगाकर उसकी हत्या करवा दी जिसके फलस्वरूप मुगलों और सिखों में स्थायी वैमनस्य उत्पन्न हो गया, जिसके चिंह्न आगे बहुत बार स्पष्ट हुए।
जहाँगीर न १६११ में गयासबेग की पुत्री नूरजहाँ से विवाह किया। तत्कालीन सूत्रों से उसके और नूरजहाँ के प्रणय संबंध तथा शेर अफगन की हत्या के पुष्ट प्रमाण नहीं मिलते। विवाह के बाद राज्य की सारी शक्ति जहाँगीर ने नूरजहाँ को समर्पित कर दी। इस रूप में वह बहुत प्रभावशाली सिद्ध हुई।
१६२३ में राजकुमार खुर्रम ने विद्रोह किया। नूरजहाँ ने 'शहरयार' को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की चेष्टा की। गृहयुद्ध छिड़ा जिसमें राज्यकोष का बहुत धन नष्ट हुआ। किंतु विद्रोह के तीन वर्षों के पश्चात् कुशल सेनानायक महावत खाँ ने खुर्रम को आत्मसमर्पण के लिये बाध्य कर दिया।
१६२६ में महावत खाँ ने जहाँगीर को नूरजहाँ और उसके भाई आसफ खाँ के प्रभाव से मुक्त करने का प्रयत्न किया, किंतु असफल हुआ। इस बार उसने राजकुमार खुर्रम से मिलकर षड्यंत्र की योजना बनाई। नूरजहाँ ने खाँनजहाँ लोदी को सेनानायक नियुक्त किया और उसे विद्रोहियों के दमन का आदेश दिया किंतु संयोगवश उसी समय जहाँगीर की मृत्यु हो गई (२८ अक्टूबर, १६२७) और नूरजहाँ की योजनाएँ सफल न हो सकीं।
जहाँगीर एक शिक्षित और संस्कृत व्यक्ति था। उसे कला और साहित्य में रुचि थी। वह शोषण और दमन को मानवता के विरुद्ध समझता था। उसकी न्यायप्रियता की अनेक कहानियाँ कही जाती हैं। उसने महल के सिंहद्वार से अंदर तक एक सोने की जंजीर बँधवाई थी, जिसमें बहुत सी घंटियाँ बँधी हुई थीं। कोई भी व्यक्ति किसी समय उस जंजीर को हिला कर न्याय की माँग कर सकता था। जहाँगीर प्रकृति-प्रेमी लेखक और कवि भी था। इसके राज्य में उद्योग और व्यापार के साथ साथ कला और साहित्य की भी उन्नति हुई। मेवाड़, दक्षिण और बंगाल की कुछ हलचलों के अतिरिक्त राजनीतिक स्थिरता भी बनी रही।