जलसेतु (Aqueducts) किसी नदी, नाले अथवा घाटी पर पुल बनाकर उसपर से यदि कोई कृत्रिम जलधारा ले जाई जाती है, तो उस पुल को जलसेतु कहते हैं (इसके विपरीत यदि कृत्रिम जलधारा नदी नाले आदि के नीचे से गुजरती है, तो पुल ऊर्ध्वलंघिका कहलाता है)।
इंजीनियरी, विज्ञान और उद्योग का विकास हो जाने से आजकल बड़े बड़े व्यास के नल कंक्रीट या लोहे के बनाए जाते हैं। अत: जल बहुधा बड़े बड़े नलों में ले जाया जाता है, जो भूमि के तल के अनुसार ऊँचे नीचे हो सकते हैं, और वर्चस् का दबाव सह सकते हैं। किंतु प्राचीन काल में बहुधा खुली नालियाँ ही होती थीं, या नालियों चिनाई आदि करके बनाई जाती थीं, जो भीतर की ओर से जल का दबाव सहन नहीं कर पाती थीं। अत: उन्हें उद्गम से लेकर अंतिम सिरे तक एक नियमित ढाल में ले जाना अनिवार्य था। इसलिये नदी, नाले या घाटियाँ पार करते समय जलसेतु बनाने पड़ते थे। बहुत बड़ी नहरों के लिये, जिनका निस्सरण बड़े बड़े नलों की समाई से भी कहीं अधिक होता है, जलसेतु आज भी अनिवार्य हैं।
संसारे के सबसे पुराने जलसेतु इटली, फ्रांस और स्पेन में मिलते हैं। इटली में दूसरी सदी ई.पू. से ही जलवाहिनी एवं जलसेतु बनने लगे थे। रोमन लोगों द्वारा बनाया हुआ 'पॉट ड्यू गार्ड' नामक जलसेतु नीम (Nimes) (फ्रांस) में आज भी खड़ी है, जिसकी रूपाकृति की भव्यता अतुलनीय है। इसमें डाटों के तीन स्तर हैं: पहिले स्तर में ६०-७० फुट पाटवाली छ:, दूसरे से ३५ फुट पाटवाली ११, और तीसरे स्तर में छोटी छोटी ३५ डाटें हैं, जिनके ऊपर नहर बनाई गई थी। एक जलसेतु सेगोइरा (स्पेन) में, २,७८० फुट लंबा और १०२ फुट ऊँचा है, जिसमें दो मंजिलों में चिनाई की १०९ डाटें हैं। यह अभी तक प्रयोग में आता है।
जिशालेम में बहुत पहले से, सद्दा नरेश के जमाने से ही, नलों द्वारा पानी आता था। इस प्रकार की एक २० मील लंबी जलवाहिनी हिनम की घाटी को डाटों के ऊपर से पार करती है। कुस्तुंतुनिया में मध्ययुगीन जलसेतुओं के कई उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं। इनमें से जुस्लीनियन का जलसेतु विशेष उल्लेखनीय है। ७२० फुट लंबे और १०८ फुट ऊँचे इस जलसेतु में दो स्तर हैं। एक ५५ फुटी डाटों का और दूसरा ४० फुटी डाटों का।
कृषिप्रधान देश भारत में सिंचाई के लिये नहरें प्राचीन काल से ही थीं। हिमालय की तलहटी के इलाकों में जंगलों में ऐसी अनेक नहरों के छिपे अवशेष मिले हैं, जो कहीं कहीं, जैसे रुहेलखंड में, नई सिंचाई व्यवस्था के आधार बन गए हैं। मुस्लिम काल में भी अनेक नहरें बनी थीं। इन सबमें जलसेतु भी रहे होंगे; किंतु आज किसी का पता नहीं है। आजकल की भारतीय नहरों में, जिनमें से अनेक विश्व में बेजोड़ हैं अनेक जलसेतु हैं, जो इंजीनियरी कौशल के उत्कृष्टतम उदाहरण हैं।
ऊपरी गंगा नहर
में रुड़की के पास
सोलानी जलसेतु
१९वीं शती के मध्य
में बना। इसमें ५०
फुट पाट की १५ डाटें
हैं, जिनके ऊपर
से होकर १६४ फुट
चौड़ी और १० फुट
गहरी नहर सोलानी
नदी को पार
करती है। सोलानी
की घाटी में लगभग
मील लंबे
और ३६ फुट ऊँचे
बाँध पर यह नहर
बहती है, जिसका
तीन मील से अधिक
भाग पक्की चिनाई
का है।
निचली गंगा नहर के ३४वें मील पर काली नदी पर नदरई जलसेतु की अपनी ऐतिहासिक विशेषता है। १८७८ ई. में प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, जिसका कोई पक्का आधार नहीं था, निकटस्थ रेलवे पुल और एक सदी पुराने सड़क पुल को देखते हुए १८,००० घन फुट प्रति सेकंड निस्सरण के लिये ३५ फुट पाटवाली ५ डाटों का एक जलसेतु बनाया गया। यहाँ काली नदी की बाढ़कालीन गहराई १३ फुट अनुमान की गई थी। किंतु छह वर्ष बाद ही १८८४ ई. में ऐसी भीषण बाढ़ आई कि पानी २२ फुट तक चढ़ गया और निस्सरण ४०,००० घन फुट प्रति सेकंड हो गया। फलत: जलसेतु टूट गया। उसके स्थान पर बड़ा जलसेतु बनाने की योजना अभी बन ही रही थी और टूटे हुए भाग की अस्थायी मरम्मत हुई ही थी कि अगले वर्ष और भी भीषण बाढ़ आई जिसका १,४०,००० घन फुट प्रति सेकंड निस्सरण अपने मार्ग के सभी पुल बहा ले गया। इस जलसेतु के भी दो पक्षों के कुल अवशेषमात्र स्मारक स्वरूप रह गए। तदनंतर वर्तमान जलसेतु, जो भारत में सर्वश्रेष्ठ और शायद विश्व में अपने जैसा विशालतम है, १८८९ ई. में बना। इसमें ६० फुट पाटवाली १५ डाटें हैं, और पुल की चौड़ाई १४९ फुट है। अंत्याधार और पायों की नींव के लिये २६८ कुँए गलाए गए थे, जिनका कुल गलान १५,०१९ फुट अर्थात् तीन मील से कुछ कम था। इसी नहर में आगे चलकर फतेहपुर जिले में दो और जलसेतु, एक बरेंडा और दूसरा सिलमी के पास है।
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में धसान नहर पर कोहनिया जलसेतु है। इसमें ३० फुट पाटवाले ११ दर हैं और नहर का तल नाले के तल से ३३ फुट ऊपर है। इस जलसेतु की कुल लंबाई १,३०० फुट है।
दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी से निकलनेवाली कुर्मूल-कड़ापा नहर पर हिंदरी जलसेतु (मद्रास) और निचली मसवाद नहर पर का जलसेतु (बंबई) उल्लेखनीय हैं। मध्य प्रदेश के मझगवाँ जलसेतु और मावापुरा जलसेतु भी उल्लेखनीय हैं। पहले में ३० फुटे पाटवाले १५ दर हैं, जलसेतु की लंबाई १,००० फुट और नाले के तल से ऊँचाई ६४ फुट है। दूसरा भी इसी आकृति का है, जिसमें ३० फुटे पाटवाले १२ दर हैं।
चित्र. जलसेतु
१. ऊपरी नहर गंग में, रुड़की के पास सोलानी जलसेतु, २. निचली नहर गंग में काली नदी पर नदरई जलसेतु, ३. ऊपरी स्वात नहर (पश्चिमी पाकिस्तान) की मचाई शाखा में एक जलसेतु तथा ४. मांडले नहर (बर्मा) में ओमिनक्यांग नदी पर थापनगैंग जलसेतु।
गोदावरी नदी के दाएँ बाएँ दोनों तटों पर से निकलनेवाली दोनों नहरों पर, जिसकी लंबाई क्रमश: ६९ और ४८ मील है, शताधिक पुलियों के अतिरिक्त लगभग २० जलसेतु हैं। बिहार में गंडक नदी के उत्तरी आवाह क्षेत्र को सींचनेवाली केवल ६१ मील लंबी त्रिवेणी नहर में भी १८ जलसेतु हैं। इन नहरों में इतने अधिक जलसेतु होने का कारण यह है कि ये ढालू प्रदेश में नदी के समांतर बहती हैं, जहाँ इन्हें नदी की सभी सहायक नदियों और नालों को लाँघना पड़ता है। इसके विपरीत समतल पंजाब की १३४ मील लंबी निचली बारी द्वाबा नहर में केवल एक जलसेतु (हुधियारा नाला पर, १२वें मील पर) हैं।
पाकिस्तान की ऊपरी स्वात नहर (पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश) भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय है, कि यह पहाड़ों में बड़ी कठिन परिस्थितियों में बनाई गई हैं। इसमें छोटी बड़ी आठ सुरंगें और कई जलसेतु हैं।
बर्मा में माँडले नहर का थापनगैंग जलसेतु अभिकल्प को दृष्टि से महत्वपूर्ण है। ओमिनक्यांग पहाड़ी नदी है, जो बाढ़ के समय इतनी तेजी से बढ़ती है कि पाँच घंटे में ही २० फुट ऊँचा पानी चढ़ जाना मामूली बात है। नहर के तल के नीचे इतनी गुंजाइश न होने से डाटों के ऊपर मुंडेर न बनाकर दोनों ओर लकड़ी के सात फुट ऊँचे तख्ते लगाए गए हैं, जिनके बीच में नहर बहती है। नदी का बाढ़कालीन निस्सरण अधिकतम ६०,००० घन फुट प्रति सेकंड कूता जाता है, जब कि २२ फुट पाटवाली १२ दरों से केवल २४,००० घन फुट पानी प्रति सेकंड निकल सकता है। बाढ़ के समय तख्ते एक एक करके गिराए जा सकते हैं जिससे नदी का अतिरिक्त पानी डाटों के ऊपर से होकर निकल जाय।
जलसेतु के अभिकल्प के सिद्धांत वे ही हैं, जो पुलों के हैं। नहर के दोनों ओर की दीवारें पुश्ते की दीवारों की तरह बनाई जाती हैं। (विशुद्धानंद पाठक)