जलचालित मशीनें पिस्टनयुक्त अथवा बेलनदार इतस्ततोगामी और धुरे पर लगी पंखुड़ीयुक्त घूमनेवाली उन सब मशीनों को कहते हैं जो उच्च दाब के जल के माध्यम से बड़ी ही मंद गति से चलती हैं। मंद गति से चलने के कारण इनकी चाल पर बड़ी सरलता से सही सही नियंत्रण रखा जा सकता है।
जलचालित यंत्रों का सिद्धांत - सभी जलचालित यंत्रों का सिद्धांत एक है और ठीक वही जो ब्रामा प्रेस का है। (देखें ब्रामा प्रेस)।
ह. पंप का सिलिंडर; प. पंप का मज्जक (द्रथ्द्वदढ़ड्ढद्ध) बेलन; द. पंप के मज्जक बेलन पर दाब रूपी भार; स. प्रेस का सिलिंडर; र. प्रेस के सिलिंडर का बेलन; भ. प्रेस द्वारा दबाई जानेवाली वस्तु अथवा परिणामी भार तथा न. दोनों सिलिंडरों को संबंधित करनेवाला नल।
संक्षेप में उसे चित्र १. की सहायता से समझा जा सकता है। चित्र में ह और स दो सिलिंडर हैं जिनमें पूरा पूरा पानी भरा है और उनका संबंध नल न द्वारा कर दिया गया है। इनमें क्रमश: प और र मज्जक और बेलन लगे हैं जिनपर द और भ भार रखे हैं। पानी व्यवहारत: असंपीड्य होने के कारण यदि मज्जक प भार द के कारण जरा सा भी नीचे उतरता है तो उसके द्वारा हटाए पानी के लिये जगह करने के लिये बेलन र को ऊपर चढ़ना पड़ता है, अर्थात् बेलन प पर किया हुआ कार्य द जलदाब के कारण नल न द्वारा बड़े सिलिंडर स में पारेषित होकर बेलन र पर भ मात्रा में कार्य करता है। इस युक्ति में नल न की लंबाई चाहे कितनी भी हो सकती है।
इस चित्र के अनुसार व (d) और वा (D) यदि क्रमश: प और र के व्यास इंचों में हो और मज्जक प द्वारा दिया हुआ पानी पर दाब द (p) पाउंड प्रति वर्ग इंच हो, और इस पंप द्वारा पहुँचाया जानेवाला समग्र बल दा (P) और बेलन द्वारा उठाया जानेवाला भार भ (W) भी यदि पाउंडों में ही नापा जाए तो घर्षण को नगण्य मानकर
दा= द
और भ=
द
दाब तीव्रक (Intensifier) - यदि जलशक्ति पारेषक पंप और संग्राहक से आनेवाली जलदाब किसी जलचालित यंत्र की आवश्यकता से कम होती है तो उस यंत्र के साथ एक तीव्रक यंत्र भी लगा देते हैं। दाबयुक्त जल मुख्य यंत्र में प्रविष्ट होने के पहले उस तीव्रक
चित्र २. द्रवचालित शक्ति तीव्रक (Hydraulic Intensifier)
क. प्रधान सिलिंडर; ख. इतस्तोगामी पोला बेलन; ग. स्थिर, पोला बेलन; घ. हलकी दाब के पानी का नल तथा च. उच्च दाब के पानी का नल।
में प्रविष्ट होता है और तीव्रक उसी जल की दाब से चलकर मुख्य यंत्र में प्रविष्ट होनेवाले पानी की दाब को कई गुना बढ़ा देता है। चित्र २. में इसी प्रकार का तीव्रक दिखाया है, जिसके स्थिर सिलिंडर कर के दाहिने सिरे में से एक इतस्ततोगामी पोला बेलन ख चलता है। इस पोले बेलन के भीतर एक और पोला बेलन ग लगा हुआ है जो यंत्र के ढाँचे में स्थिर
चित्र
३. द्रवचालित लिफ्ट
(Hydraulic lift)
क. लिफ्ट का पिंजरा; ख. पिंजरे का लंबा बेलन (प्रधान बेलन); ग. प्रधान सिलिंडर; घ. छोटा संतोलक सिलिंडर; च. बड़ा संतोलक सिलिंडर; छ. पिस्टन ज और झ को संयुक्त करनेवाला दंड; ज. छोटे संतोलक सिलिंडर का पिस्टन; झ्. बड़े संतोलक सिलिंडर का पिस्टन; ट. प्रधान जलसंपीडक यंत्र से आनेवाले मुख्य नल की शाखा; ठ. प्रधान सिलिंडर ग को तीव्र दाब के पानी का नल; ङ. प्रधान जलसंपीडक यंत्र से आनेवाले मुख्य नल की निचली शाखा; ण. बड़े संतोलक सिलिंडर के निचले भाग को आवश्यकता के समय संपीडित जल से भरने का नल; त. छोटे संतोलक सिलिंडर का ऊपरवाला भाग, जिसमें मुख्य नल की शाखा ट से संपीडित जल आता है; थ. छोटे संतोलक सिलिंडर के निचले भाग में भरा हुआ तीव्र दाब का जल; द. बड़े संतोलक सिलिंडर का ऊपरवाला भाग जिसमें मुख्य नल की शाखा ड से संपीडित जल आता है तथा न. बड़े संतोलक सिलिंडर का निचला भाग।
रहता है। हलकी दाब का पानी नल घ से प्रविष्ट होकर सिलिंडर क में लगे पोले बेलन ख को ढकेलता है जिससे बेलन ख और ग में पहिले से भरा हुआ पानी दब कर नल च में से होकर मुख्य यंत्र में जाता है।
यदि अल्पदाब पानी द (p) पाउंड प्रति वर्ग इंच और उच्चदाब का पानी दा (P) पाउंड प्रति वर्ग इंच, तथा बेलन ख और ग का बाहरी व्यास क्रमश: व (d) और वा (D) इंच मान लिया जाए तो घर्षण को नगण्य मानकरहविस तथा लिफ्ट (Hoists and lifts) - ऐलिंग्टन द्वारा निर्मित संतुलित हविस चित्र ३. में दिखाया गया है, जिसका लंबा बेलन ख सिलिंडर ग में ऊपर नीचे चलता है, जिसके सिरे पर लगा पिंजरा क भी पाँच मंजिल तक चढ़ सकता है। इस बेलन पर तीन प्रकार के भार आते हैं : १. पिंजरा, २. आदमी अथवा माल तथा ३. बेलन का भार। दूसरे और तीसरे भारों में हेरफेर सदैव होता रहता हे, जिन्हें सँभालने के लिये अलग से एक बेलन क और दो सिलिंडर घ और च लगाए जाते हैं, जिनमें मुख्य नल से दाबयुक्त पानी लिया जाता है। सिलिंडर घ के पिस्टन ज पर पानी की दाब सदैव एक सी रहती है। यह पानी मुख्य नल की शाख ट से आता हे। इसी की शक्ति से पिंजरे क और बेलन ख के भारों को सँभाला जाता है, जब कि वे नीची स्थिति में रहते हैं। बड़े सिलिंडर च में लगे बेलन के पिस्टन झ के ऊपर भी मुख्य नल की शाखा ड से ही दाबयुक्त जल आता है, जिसके द्वारा माल और आदमियों का बोझा सँभाल लिया जाता है। जिसके द्वारा माल और आदमियों का बोझा सँभाल लिया जाता है। पिस्टन ज और झ, एक ही बेलनदंड छ से संबंधित होने के कारण्, मुख्य नल में से आए उपर्युक्त पानी की दाब से जब एक साथ नीचे उतरने की चेष्टा करते हैं तब सिलिंडर घ के निचले थ भाग में जो पानी भरा रहता है उसकी दाब अत्यधिक तीव्र हो जाती है। यह तीव्र दाबयुक्त जल सिलिंडर ग में जाकर बेलन ख के संपूर्ण भार को उठाने में समर्थ होता है। सिलिंडर घ के थ भाग में इतना ही पानी भरा होता है जिससे बेलन ख पिंजरे आदि को पूरी ऊँचाई तक उठा सके। अत: जब पिंजरा सर्वोच्च स्थिति पर चढ़ जाता है तब थ भाग खाली हो जाने से पिस्टन ज और झ अपने सिलिंडरों के पेंदों में बैठ जाते हैं। उस समय इन पिस्टनों पर मुख्य नल के पानी की दाब ही नहीं रहती, बल्कि इन बड़े बड़े सिलिंडरों में भरे पानी का भार भी रहता है, जिस कारण संपूर्ण बेलन ख और भरे हुए पिंजरे के थार को सँभालने में पूर्णतया समर्थ रहता है। जब पिंजरा सबसे नीची स्थिति में रहता है उस समय इन पिस्टनों पर पानी का भार बिल्कुल नहीं रहता, केवल मुख्य नल की दाब ही रहती है। इस प्रकार बेलन ख का भार सारी परिस्थितियों में संतुलित ही रहता है। पिंजरे को उतारते समय सिलिंडर च में से द भाग के पानी को खाली कर दिया जात है, जिससे पिंजरा अपने ही भार के कारण धीरे धीरे नीचे उतर आता है और पिस्टन ज और झ ऊपर चढ़ते हैं, क्योंकि ट नल में से आनेवाला दाबयुक्त पानी अपने दबाव के कारण उन्हें एकदम चढ़ने से रोकता है, और वह पानी स्वयं संग्राहक यंत्र को जाने लगता है। उपर्युक्त द्रवचालित लिफ्ट में ऐलिंगटन ने अधिकतर पैकिंग भीतर की ओर से लगाए थे, लेकिन आधुनिक यंत्रों में सब बाहर की ओर से लगाए जाते हैं। इससे मरम्मत करने में बड़ी आसानी होती है।
क्रेन और जैक (Cranes and Jacks) - क्रेन यंत्र वाष्प, विद्युत्, तेल इंजन और हस्तचालित भी होते हैं, लेकिन बंदरगाहों और ढलाईखानों आदि स्थानों पर जल-शक्ति-चालित यंत्रों का ही अधिक प्रयोग होता है, जिसके अनेक लाभ हैं। प्रथम तो इन्हें शक्ति प्रदान करने के लिये एक छोटा सा पंप इंजन ही काफी होता है, दूसरे इनके द्वारा कार्य तत्क्षण आरंभ किया जा सकता है, तीसरे इनके प्रयोग के समय आवाज नहीं होती और उठाए जानेवाले सामान पर जरा सा भी झटका नहीं लगता, जो बड़े महत्व की बात है, और सर्वोपरि इनकी बनावट भी अत्यंत सरल होती है।
क्रेन चित्र ४. में दिखाया गया है, जिसमें सिलिंडर क स्थिर रहता है और उसके निचले सिरे पर ग, गा, गि आदि घिरनियाँ (pulleys) लगी रहती हैं। उधर बेलन ख के ऊपरी सिरे पर भी घ१ घा२ धि आदि उतनी ही संख्या में घिरनियाँ लगी हैं जितनी नीचे की तरफ हैं। पानी की दाब से आगे बढ़ते समय यह बेलन कहीं घूम न जाय, इसलिये इसका शीर्ष च, छ-छ चिन्हित दो मार्गदर्शिकाओं के बीच में चलता है और
चित्र ४. द्रवचालित क्रेन
क. प्रधान सिलिंडर; ख. प्रधान बेलन; ग, गा, गि. नीचे की घिरनियाँ घ, घा, घि. ऊपर की घिरनियाँ; च. बेलन के ऊँचा उठने की उच्चतम सीमा की रोक; छ. बेलन के शीर्ष की मार्गदर्शिकाएँ (a); ज. क्रेन के मुख्य ढाँचे की तलरेखा; जिसपर सिलिंडर आदि मजबूती से कसे हैं; झ. घिरनियों के रस्से को बाँधने का आँखयुक्त बोल्ट; ट. चालक हैंडिल की मध्य स्थिति तथा भ. उठाए जानेवाले भार से संबंधित रस्से का छोर।
यह सारा उपकरण क्रेन यंत्र के मुख्य ढाँचे ज-ज के साथ दृढ़ता से बँधा रहता है। लोहे के तारों के एक रस्से अथवा जंजीर का एक सिरा आँखयुक्त एक बोल्ट झ से बँधा रहता है और वह रस्सा क्रमश: ग घ, गा घा, और गि घिरनियों पर लिफ्ट कर धि पुली के ऊपर होकर उठाए जानेवाले भार भ (W) से सबंधित हो जाता है। अनेक घिरनियों की सहायता से बोझा उठाते समय जो यांत्रिक लाभ ला (h ) होता है, वह घिरनियों के चौगिदं लपेटने के बाद ट चिन्हित स्थान पर रस्सी की लड़ों की संख्या का अनुक्रमानुपाती होता है।
सब प्रकार के घर्षणों का विचार रखते हुए यदि बेलन द्वारा पहुँचाई हुई समग्र दाब दा (P) हो तो
घिरनियों की संख्या के अनुसार ही क्रेन की क्षमता भी परिवर्तित हो जाती है, जिसका अनुमान अनुभव द्वारा प्राप्त निम्नलिखित सारणी के अंकों से लगाया जा सकता है:
घिरनियों की संख्या ० २ ४ ६ ८ १० १२ १४ १६
ला (h ) .८७ .८० .७६ .७२ .६७ .६३ .५९ .५४ .५०
जैक (Jack) - कारखानों में भारी वजन उठाने के लिये जब क्रेन यंत्र उपलब्ध नहीं हो सकता, अथवा भार उसकी पहुँच के बाहर होता हे, तब जलीय जैक बड़ा उपयोगी सिद्ध होता है। इसका सिद्धांत ब्रामा प्रेस अथवा क्रेन के समान है। अंतर इतना ही है कि उठाऊ बेलन तो जमीन में टिका दिया जाता है और टोपी के समान उसपर पहनाया हुआ सिलिंडर पानी की दाब से ऊपर नीचे सरकता है। पानी की यह दाब इसी यंत्र में हाथ से एक लीवर चलाकर उत्पन्न की जाती है। चित्र ५. में सिलिंडर के मत्थे पर तो एक घूमनेवाला टोपीनुमा आलंब और नीचे की तरफ पंजेनुमा स्थिर आलंब बना दिया गया है।
चित्र ५. द्रवचालित जैक
ऊपर के आलंब से ऊँचाई पर स्थित बोझों को और नीचेवाले से जमीन के पास तक धँसे हुए बोझों को सरलता स उठाया जा सकता है। सिलिंडर के मत्थे पर एक टंकी कसी है, जिसमें तेल, ग्लिसरीन या पानी दाब पैदा करने के लिये भर देते हैं और आलंब के सहारे हैंडिल को ऊपर नीचे चलाने से मज्जक ऊपर उठते समय द्रव को दाहिनी बगल में बने वाल्ब में से खींचकर तथा नीचे जाते समय अपने नीचेवाले वाल्व में से ढकेलकर सिलिंडर और बेलन के बीच के स्थान में दबा कर भर देता है। ज्यों ज्यों उसमें द्रव भरता जाता है सिलिंडर बोझ सहित ऊपर को उठता है। नीचे उतारने के लिये बाई तरफ लगे पेंच को थोड़ा थोड़ा खोला जाता है, जिससे द्रव ऊपर की टंकी में लौट जाता है।
गढ़ाई का दाब यंत्र, गढ़ाई प्रेस (Forging Press) - जलशक्तिचालित प्रेस द्वारा भारी गढ़ाई क्रियाएँ करने की परिकल्पना सर्वप्रथम चार्ल्स फौक्स ने सन् १८४७ ई. में की और उसका व्यवहार हैस्वेल ने सन् १८६१ में किया। इसका श्रेय ग्लेडहिल को भी दिया जाता है, जो सन विटवर्थ के कारखाने का मैनेजर था। इस प्रेस द्वारा गरम लौह पिंड को दबाने से स्थिरतापूर्वक दाब पड़ती है, जिसका प्रभाव उसके आंतरिक पदार्थ पर होने के कारण गढ़ी गई वस्तु बड़ी ठोस
चित्र ६. द्रवचालित गढ़ाई
क. प्रधान सिलिंडर; ख. बेलन को ऊँचा उठानेवाले सहायक सिलिंडर; ग. सहायक सिलिंडरों के बेलन दंड; ध. प्रधान बेलन (खोखला); च. प्रधान बेलन के सिरे पर कसा हुआ संधान पंच (सुम्मा); छ. डाइ के भीतर बैठा हुआ संधनित अदद; झ. संचालक वाल्व बक्स तथा ट. प्रधान सिलिंडर आदि के स्तंभ और बेलन की चाल की सीमित करनेवाली रोकें।
और मजबूत बन जाती है। इसके विपरीत वाष्पचालित अथवा पात घन द्वारा गरम लौहपिंड पर जो क्षणिक चोट पड़ती है, वह केवल उसके बाहरी पदार्थ पर ही असर कर पाती है और भीतरी पदार्थ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, और यदि पड़ता भी है तो बहुत कम। अत: उसमें आंतरिक खिंचाव और दरारें पड़ जाती हैं, जिससे वह वस्तु कमजोर हो जाती है। दूसरा लाभ यह होता है कि इसके द्वारा वाष्पधन जैसा भारी धमाका और इमारतों में कंपन नहीं होता।
इन प्रेसों के साथ एक तीव्रक भी लगाना आवश्यक होता है, क्योंकि भारी वस्तुओं की गढ़ाई करते समय ३,००० पाउंड प्रति वर्गं इंच की दाब की आवश्यकता होती है। चित्र ६. में क मुख्य सिलिंडर है, जिसके निचले सिरे पर लगा च, पंच फ्रेम में लगी छ डाइ (die) में लौहपिंड को दबाकर गढ़ाई की क्रिया करता है। मुख्य सिलिंडर को चार मजबूत खंभों ट पर लगाया गया है, जो मार्गदर्शिका का भी काम करते हैं। क्योंकि बेलन घ बहुत भारी होता है, अत: इसे उठाने के लिये नीचे के फ्रेम में लगे ख सिलिंडरों से सहायता ली जाती है, जिनमें ग बेलन शक्तिसंग्राहक द्वारा प्राप्त दाबयुक्त पानी से चलते हैं।
रिबेट (Rivet) प्रेस - बड़े आकार के ढोल, टंकियाँ, बायलर और जलपोत बनानेवाले कारखानों के लिये रिवेट प्रेसों का होना बड़ा आवश्यक है। इनका आविष्कार ट्वेडेल (Tweddell) ने सन् १८६५ में किया था। चित्र ७. में ऊपर की तरफ प्रदर्शित, स्थायी प्रेस उपर्युक्त आविष्कार का १८९० ई. में निर्मित तथा परिष्कृत रूप है। इसमें फ्रेम के क और ख्ा दो भाग हैं, जो ग चटखनियों (bolts) द्वारा दृढ़तापूर्वक बाँध दिए गए हैं। क भाग के ऊपर ज सिलिंडर और झ बेलन है, जिसके साथ रिवेट के मत्थे का डाइ लगी है। ख भाग के ऊपर रिवेट की निहाई थ लगी है। ट, ठ और ड बेलन को चलानेवाले हैंडिल हैं। ज सिलिंडर के साथ ही एक सहायक सिलिंडर और बना है, जिसमें २० फुट ऊँचाई पर स्थित टंकी घ से पानी भर लिया जाता है। इसकी दाब से दोनों प्लेटें सटकर बैठ जाती हैं। फिर मुख्य सिलिंडर में भी वही पानी भरकर उसमें उच्च दाब का पान प्रविष्ट किया जाता है, जिससे कुछ १०० टन तक दाब दृढ़ जाती है। इसमें से ४० टन तो प्लेटों को सटाकर बैठाने में खर्च हो जाती है और शेष ६० टन से रिवेट का मत्था दबा दिया जाता है।
सुवाह्य रिवेट प्रेस - ट्वेडेल ने सन् १८७१ में रिवेट लगाने की सुवाह्य मशीन का आविष्कार किया। ये सुवाह्य यंत्र दो प्रकार के होते हैं, एक तो प्रत्यक्ष क्रियात्मक और दूसरा लीवर (lever) युक्त। इन्हें चित्र ७. में क्रमश: दाईं और बाईं ओर नीचे की तरफ दिखाया गया है। प्रत्यक्ष क्रियात्मक यंत्र का फ्रेम U आकार का होता हे, जिसकी एक शाखा के छोर पर सिलिंडर और बेलन होता है और दूसरे पर निहाई। इस यंत्र को जंजीरों द्वारा लटकाकर क्रेन द्वारा काम करने की जगह ले जा सकते हैं। लीवरयुक्त यंत्र की बनावट संड़सी जैसी होती है, जिसमें हाथ से पकड़नेवाले सिरे को चौड़ा करने से पकड़नेवाले जबड़े बन जाते हैं। इस यंत्र के लीवर ग आलंब पर घूमते हैं। सिलिंडर घ में जब उसका बेलन दाबयुक्त पानी के जोर से लीवरों के सिरे च और छ को फैलाता है तब रिवट की डाइयाँ क और ख बड़ी शक्ति के साथ प्लेट और रिवेट को दबाती हैं। यंत्र को जंजीर द्वारा लटकाकर जहाँ चाहें ले जा सकते हैं।
छेद करने (punching) और प्लेट मोड़ने के जलचालित यंत्र - छेद करने के यंत्र थोड़े हेर फेर के साथ रिवेट लगाने के यंत्रों के समान ही होते हैं और प्लेट मोड़ने के यंत्र ब्रामा प्रेस से मिलते जुलते होते हैं, अत: वर्णन अनावश्यक है। लेकिन जहाँ इनका तथा अन्य उपर्युक्त यंत्रों का प्रयोग होता हे, वहाँ के संपीडित जल के मुख्य नलों में पानी की दाब १,५०० पाउंड से लेकर १,७०० पाउंड प्रति वर्ग इंच तक होना आवश्यक है।
परीक्षण यंत्र (Testing machines) - विभिन्न धातुओं के तनाव, संपीडन और विरूपण सामर्थ्य जानने के लिये उन धातुओं के परीक्षण नमूने (test pieces) बनाकर, जिन यंत्रों में खींचे, दबाए या काटे जाते हैं उनमें भी अधिकतर जल अथवा तेल को संपीडित करके ही परीक्षण के लिये शक्ति प्राप्त की जाती है।
चित्र.
७. विविध रिवेट
(Rivet)
प्रेस
ऊपर : द्रव-चालित स्थायी रिवेट प्रेस; क. प्रेस का सिलिंडर युक्त स्थायी अंग, ख. प्रेस का निहाई युक्त स्थायी अंग, ग. क और ख अंगों को बाँधनेवाली दृढ़ चटखनी; घ. पनी की टंकी, च. सिलिंडर का तल, ज. सिलिंडर तथा बेलन, झ. रिवेट का माथा दबाने की, बेलन में कसी हुई डाइ (die); प्रेस चालक वाल्व का ट. प्रथम हत्या, ठ. द्वितीय हत्था, ङ. तृतीय हत्या तथा थ. रिवेट दबाने की निहाई। नीचे बाएँ: द्रवचालित, लीवरयुक्त, सुवाह्य रिवेट प्रेस क. रिवेट का माथा दबाने की डाइ (die), ख. रिवेट दबाने की निहाई, ग. लीवरों के घूमने का चूलयुक्त आलंब, घ. प्रेस का सिलिंडर और बेलन, च. ऊपरवाला लीवर तथा छ. निचला लीवर। नीचे दाएँ : द्रवचालित, ''प्रत्यक्ष क्रियात्मक'', सुबाह्य रिवेट प्रेस।
प्रोफेसर वर्डर (Werder) ने सर्वप्रथम इस प्रकार यंत्र बनवाया जिसका १९वीं सदी में जर्मनी में खूब प्रचार हुआ। इसके पहले तुलायुक्त यंत्रों का प्रयोग हुआ करता था। पश्चात् केनेडी (Kennedy) और विकस्टीड (Wicksteed) ने वर्डर के यंत्र में सुधार कर कई मशीनें बनवाई, जिनमें जल-संपीडन-केंद्र से प्राप्त उच्च दाब के जल का प्रयोग न कर प्रयोगशाला में ही लगभग ४० फुट ऊँचाई पर टंकी लगाकर और एक छोटे से तीव्रक तथा पेंचों की सहायता से १०० टन प्रति वर्ग इंच तक का दबाव प्राप्त किया। आधुनिक यंत्रों में पानी की जगह तेल का भी प्रयोग किया जाता है।
जहाजी यंत्र - जहाजों के भारी भारी लंगरों और उनकी भारी जंजीरों को समेटते समय उन्हें चर्खियों पर लपेटा जाता है। पुराने जमाने के हल्के जहाजों की चर्खियाँ तो कई आदमी मिलकर हाथ से ही चला लेते थे, किंतु आधुनिक जहाजों पर ऐसा करना संभव नहीं है अत: इन कामों तथा जहाजों के पतवारों को चलाने में भी अब जलशक्तिचालित यंत्रों का ही प्रयोग किया जाता है। इस काम के लिए सन् १७३८ ई. में सर आर्मस्ट्रांग ने जल-शक्ति-चालित पिस्टन तथा सिलिंडर युक्त इंजन बनाया था, जिससे बंदरगाह में जहाजों को घुमाना, लंगर की चर्खी घुमाना, पुलों को ऊपर उठाना और फिर वापस बंद कर देना आदि कार्य किए जाते थे। इस इंजन में तीन झूमनेवाले सिलिंडर होते थे, जिनसे धुरे पर लगे तीन क्रैंक चलाए जाते थे, किंतु इसके पिस्ट्नदंडों में से पानी के चूने की कठिनाई इतनी बढ़ जाती थी कि उसका प्रयोग बंद करना पड़ा। इसके कुछ दिनों बाद ब्रदरहुड हेस्टी (Brotherhood Hastie) ने एक सिलिंडर और बेलन युक्त इंजन बनाया, जो ७५० पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब और धीमी गति से उत्तम कार्य करता है।
चित्र
८. संपीडित द्रवचालित
इंजन
जल शक्ति चालित
इतस्ततोगामी
इंजन - चित्र
८ में ब्रदरहुड हेस्टी
के इंजन की बनावट
दिखाई गई है।
इसका बेलन अंतदंह
इंजन के पिस्टन
से बहुत साम्य
रखता है। इस इंजन
में संपीडित जल
क मार्ग से ख
नल में होकर
सिलिंडर में ऊपर
की तरफ से प्रवेश
करता है और
निस्सरण के समय
ख में से ही होकर
वाल्व ग के द्वारा
निष्कासन मार्ग
घ में चला जाता
है। जलमार्ग क
और घ की गति
पलटने के वाल्व
से संबंधित कर
देते हैं तब इंजन
उलटा चलने लगता
है। उस समय पानी
घ में से प्रविष्ट
होकर मार्ग
क में से निकल
जाता है। इस इंजन
में क्रैंक पिन च
की बनावट ऐसी
है कि वह अपने
स्थान पर उस प्रकार
स्थिर नहीं रहता
जैसा वाष्प और
अंतर्दह इंजनों
में स्थिर रहता
है, क्योंकि जितना
क्रैंक प्लेट छ में
गुंजाइश रखी
गई है उतना ही
वह आड़ा सरक जाता
है। किंतु पिन को
सीधा रखने के
लिये उसे प्लेट में
ज पेंच द्वारा
कस दिया गया
है। अत: क्रैंक प्लेट
को सिलिंडर से
दाब के रूप में
जो शक्ति मिलती
है उससे पोला
धुरा झ घूम
जाता है। इसपर
बहुत ही शक्तिशाली
कुंतल कमानियाँ
ट चारों तरु
कस दी गई हैं,
जिनके दूसरे
सिरे पर घिरनी
ठ से संबंधित
यंत्र चल पड़ते हैं।
साथ ही यह घिरनी,
पोले धुरे झ
के भीतर लगे
एक ठोस धुरे
ड पर चाबी द्वारा
पक्की कसी रहती
है, अत: घिरनी
पर जब मरोड़
बल पड़ता है तब
कमानियाँ ट
भी ऐठती हैं और
उस समय धुरा
ड क्रैंक प्लेट पर
लगे क्लच के ढ
कांटे की सीध
से उतना ही सरकता
है जितना उसपर
ऐंठन घूर्ण पड़ता
है। (देखें क्लच का
परिवर्धित चित्र
९) इस कारण ड, कैम
ण को इस प्रकार
से घुमा देता
है जिससे क्रैंक
पिन धुरे के
केंद्र से सरक जाता
है और क्रैंक की
चाल बढ़ जाती
है। जब धुरे पर
कम भार पड़ता
है तब क्रैंक की
चाल स्वत: ही कम
हो जाती है।
इंजनों से कम
या अधिक काम लेने
के दो उपाय हैं
: पहला तरल पदार्थ
को दाब में परिवर्तन,
दूसरा पिस्टन
की दौड़ में परिवर्तन।
लेकिन पानी
की दाब सदैव
स्थिर रहती है,
अत: इस इंजन में उपर्युक्त
प्रकार से दौड़
को ही कम किया
गया है। चित्र ९ में
काँटा ढ चिन्हित
स्थान पर, जहाँ
सबसे लंबी दौड़
हाती है, दिखाया
है। यह कैम ण
के चक्कर
पार करने पर
प्राप्त होती है।
जब काँटा चिन्हित
स्थान पर आता
है तब सबसे छोटी
दौड़ होती है।
चित्र ९. संपीडित द्रवचालित इंजन का क्रैंक प्लेट
क. क्रैंक प्लेट; ढ. सीधी चाल का क्लच; ण. कैम तथा त. उलटी चाल का क्लच
जलचालित अन्य यंत्र - बंदरगाह में समुद्री पानी के कई टन भारवाले दरवाजों को, जिनपर समुद्री पानी का भी अमित दबाव पड़ता है, खोलने और बंद करने के लिये पिस्टन बेलन युक्त यंत्रों का प्रयोग होता है। इन बेलनों की चाल १२-१३ फुट तक होती है। समुद्री पानी और बड़े बड़े बाँधों के स्लूइस वाल्व (sluice valve) भी, जिनका व्यास लगभग ६० इंच तक होता है, इन्हीं यंत्रों द्वारा खोले तथा बंद किए जाते हैं। इन यंत्रों की बनावट क्रेन यंत्रों के सिलिंडर और बेलनों से बहुत साम्य रखती है। स्टेशनों पर रेलगाड़ियों को प्लैटफार्मों के अंत में टक्कर लगाने से रोकने के बफर (buffer), रेल के इंजनों की मरम्मत करते समय उनके चक्वों को उतारने और चढ़ाने के लिये तथा कई प्रकार के ब्रेक भी इन्हीं सिद्धांतों पर बने होते हैं। इंजनों का परिक्षण करने के लिये डाइनेमोमीटर के कुछ यंत्र भी जल या तेल की दाब शक्ति से अपना काम करते हैं, जिससे पता चलता रहता है कि किसी विशेष समय पर इंजन कितना खिंचाव प्रस्तुत कर रहा है। इंजनों ओर रेलगाड़ियों के चक्कों में, उनके धुरों को मजबूती से दबाकर बैठाने के लिये भी, जलशक्ति-चालित प्रेसों का प्रयोग किया जाता है। (ओंकार नाथ शर्मा)