जयद्रथ ये सिंधुदेश के राजा थे। महाभारत के वन पर्व में इनको 'सिंधुसौवीरपति' कहा गया है। इनके पिता का नाम वृद्धक्षत्र और पत्नी का नाम धृतराष्ट्रकन्या दु:शला था (म. भा., आ. प., ६७-१०९११०)। जब पांडवों के साथ द्रौपदी वन में रहती थी, तब जयद्रथ ने द्रौपदी के अपरहण की चेष्टा की थी, पर पांडवों के द्वारा ये स्वयं हो पराजित हुए (व. प., २६४ अ.- २७२)। बाद में इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने शिव की पूजा की और शिव से अर्जुनातिरिक्त अन्य पांडवों को जीतने के लिए (एक दिन के लिए ही) वर प्राप्त किया। कुरुक्षेत्र युद्ध में दुर्योधन के पक्ष में रहकर इन्होंने युद्ध किया। अर्जुन ने इनका वध किया था (द्रो. प., १४६)। इनके काटे हुए सिर को अर्जुन ने इनके तपस्वी पिता की गोद में गिराया था, जिससे उनके सिर के सौ टुकड़े हो गए थे। महाभारत में इनको अक्षौहिणीपति कहा गया है। इनका ध्वज वराहचिह्नयुक्त था (द्रो. प. ४३।३)।
पुराणों में भी जयद्रथ का प्रसंग है। उनमें उपर्युक्त जयद्रथ के अतिरिक्त और भी तीन जयद्रथों का उल्लेख है (पु. वि. पृ. १०९११०)। ऐंशेट इंडियन हिस्टॉरिकल ट्रैडिशन ग्रंथ में दो पुराणोक्त जयद्रथों पर विचार किया गया है। (रामांकर भट्टाचार्य)