जयकर, मुकुंदराव आनंदराव का जन्म नासिक में हुआ था। आपकी शिक्षा बंबई के एलफिंस्टन हाई स्कूल और कालेज तथा सरकारी लॉ स्कूल में हुई थी। १९०५ में आपने हाईकोर्ट में वकालत शुरु की। १९३७ में फेडरल कोर्ट ऑव इंडिया में न्यायाधीश के रूप में आपकी नियुक्ति हुई। प्रीवी काउन्सिल की ज्युडीशियल कमिटी के भी आप सदस्य थे पर १९४२ में आपने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। कॉन्सिटट्युएंट एसेंबली के लिए सदस्य के रूप में आपका निर्वाचन हुआ था पर १९४७ में इस पद से भी अप ने त्यागपत्र दे दिया।

१९०७ से १९१२ तक लॉ स्कूल में आप कानून के प्राध्यापक थे। आपके आत्मसम्मान की भावना का इसी समय साक्षात्कार होता है जब अपने से निम्न स्तर के यूरोपीय अध्यापक की आपसे उच्चपद पर नियुक्ति पर आपने त्यागपत्र दे दिया। फर्ग्युसन कॉलेज में 'प्लेज ऑव इंग्लिश लिटरेचर' पर आपका भाषण शिक्षा संबंधी आपके गंभीर अध्ययन क परिचायक है। बंबई विश्वविद्यालय की रिफॉर्म कमेटी के आप १९२४-२५ में सदस्य थे। शिक्षा सुधार की योजना आपने इसी समय प्रस्तुत की थी। सरकार की डेक्कन कॉलेज को बंद करने की नीति के विरुद्ध आपने संघर्ष किया जो बंबई विश्वविद्यालय के इतिहास में चिरस्मरणीय है। १९४१ में महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी के संबंध में आपकी अध्यक्षता में एक कमिटी कायम हुई थी। शिक्षा और साहित्य के साथ संगीत और कला में भी आपकी रुचि थी। इनके उत्थान के लिए भी आप चिंतित थे।

शिक्षाशास्त्री के रूप में आप सर्वत्र विख्यात थे। नागपुर, लखनऊ, पटना, आदि अनेक विश्वविद्यालयों में हुए आपके दीक्षांत भाषण अमर हैं। १९१७, १९१८, १९२० तथा १९२५ के कांग्रेस के अधिवेशनों में 'स्वराज्य' तथा दूसरे राजनीतिक विषयों पर आपके भाषण और प्रस्ताव बहुत ही महत्वपूर्ण रहे हैं। बंबई की स्वराज पार्टी लेजिस्लेटिव काउंसिल में आप विरोध पक्ष के नेता रहे। १९२६ में इंडियन लेजिस्लेटिव एर्सेबली के लिए सदस्य के रूप में आप निर्वाचित किए गए। यहाँ पर आप नेशनलिस्ट पार्टी के उपनेता के रूप में कार्य करते रहे। राउंड टेबुल कॉन्फरेंस में प्रतिनिधि के रूप में आप उपस्थित थे। फेडरल सट्रक्चर कमिटी के भी आप सदस्य रहे। गांधी ईविन पैक्ट के लिए सर सप्रू के साथ शांतिदूत के रूप में आपने कार्य किया। पूना पैक्ट के लिए भी आप प्रयत्नशील रहे।

आप पर सभी का समान रूप से विश्वास होने के कारण मध्यस्थ के रूप में आपकी योग्यता महनीय थी। सरकार ने आपको के. सी. एस. आई. बनाना चाहा पर आप मिस्टर जयकर ही बने रहे। १९१९ में जलियांवाला हत्याकांड से संबंधित आपकी रिपोर्ट इतिहास में अमर है। १९४० में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने डी. सी. एल. पदवी से आपको विभूषित किया।

१९१७ के बाद हिंदुस्तान का ऐसा कोई भी आंदोलन नहीं जिससे आपका संबंध न रहा हो। १९४८ से पूना के कुलपति के रूप में रहे। आपका व्यक्तित्व अत्यंत व्यापक रहा है। प्रख्यात विधि विशारद्, संविधानशास्त्रज्ञ, न्यायाधीश तथा प्रसिद्ध वक्ता, शिक्षाशास्त्री एवं समाजसेवक के रूप में आपकी सेवाएँ चिरस्मरणीय हैं। आपके सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी कार्यों का मूल्यांकन किए बिना भारत का आधुनिक इतिहास अधूरा रहेगा। इस दृष्टि से आपके भाषणों, पत्रों तथा लेखों का अध्ययन आवश्यक है। (हरिअनंत फड़के)