जनमेजय वेद और पुराणेतिहास में अनेक जनमेजयों के उल्लेख मिलते हैं, जिनमें प्रमुख जनमेजय संज्ञक व्यक्ति निम्नांकित हैं। इनके अतिरिक्त जनमेजय नामक नाग भी हैं (सभा. ९/१०)।
एक जनमेय पुरु के पुत्र थे जिनका दूसरा नाम प्रवीर है (आदि.प. ९५/११-१२)। दूसरे जनमेजय अश्ववान् कुमार परीक्षित् के वंश में उत्पन्न हुए थे, जिनके पुत्र का नाम धृतराष्ट्र था (आदि., ९४/५३-५६)। उन्होंने इंद्रीत मुनि से ज्ञान प्राप्त किया था (शांति. १५०-१५२)।
तीसरे जनमेजय भरतवंशी महाराज कुरु के द्वारा वाहिनी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। (आदि. ९४/५१)।
इसके अतिरिक्त और भी जनमेजयों के उल्लेख हैं (आदि. ६७/६२, १/१२८)।
परीक्षित और भद्रावती के पुत्र पांडव जनमेजय पुराण में बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कुरुक्षेत्र में दीर्घकाल तक यज्ञ किया था। प्रसिद्ध सर्पयज्ञ उन्होंने ही किया था। इनकी प्रार्थना पर व्यास की आज्ञा से वैशंपायन से महाभारत युद्ध की कथा सुनाई थी।
इनके अतिरिक्त पुराणों में अन्य जनमेजयों के भी निर्देश (पुराण विषयानुक्रमणी पृ. १०७-१०९ में पाँच जनमेजयों के चरित दिए गए हैं।) हैं। यहाँ जनमेजय प्रथम को भल्लाट का पुत्र कहा गया है, जिन्होंने नीपों को यम से बचाया था। जनमेजय द्वितीय राजर्षि सोमदत्त के पुत्र थे। 'ऐंशेंट इंडियन हिस्टॉरिकल ट्रेडीशन' में भी तीन जनमेजयों पर विशद विवेचन मिलता है - पुरुपुत्र जनमेजय तथा दो परीक्षित-पुत्र जनमेजय। प्रसिद्ध परीक्षित जनमेजय के अतिरिक्त प्राचीनतर अन्य परीक्षित जनमेजय भी थे, महाभारत में भी इसका संकेत है।
'जनमेजय' वैदिक वाङ्मय में भी प्रसिद्ध थे। शतपथ ब्रा. (२३/५/४/१) में कहा गया है कि इंद्रीत ने परीक्षित जनमेजय के लिये यज्ञ किया था। उसी प्रकार ऐतरेय ब्राह्मण (९/२१) में कहा गया है कि तुर कावषेय ने पारीक्षित जनमेजय के लिए यज्ञ किया था। इन दोनों स्थलों में जनमेजय संबंधी गाथा भी है (लगभग एक ही शब्दानुपूर्वी में), जो जनमेजय की प्रसिद्धि का ज्ञापक है। अथर्ववेदीय गोपथ ब्राह्मण (२/५) में भी जनमेजय पारीक्षित वर्णित हुए हैं। (रामशंकर भट्टाचार्य.)