जनक, विदेह विदेह के राजा। पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकुपुत्र निमि ने विदेह के सूर्यवंशी राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी मिथिला हुई। मूल जनक के बाद मिथिला के उस राजवंश का ही नाम जनक हो गया जो उनकी प्रसिद्धि और शक्ति का द्योतक है। जनक नामक एक अथवा अनेक राजाओं के उल्लेख ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में हुए हैं। इतना निश्चित प्रतीत होता है कि जनक नाम के कम से कम दो प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए; एक तो वैदिक साहित्य के दार्शनिक और तत्वज्ञानी जनक विदेह और दूसरे दाशरथि राजा के ससुर जनक, जिन्हें वायु और पद्मपुराण में सीरध्वज कहा गया है (दे. जनक सीरध्वज)। असंभव नहीं, और भी जनक हुए हों और यही कारण है, कुछ विद्वान् वशिष्ठ और विश्वामित्र की भाँति जनक को भी कुलनाम मानते हैं। जनकविदेह के उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में चार भिन्न भिन्न स्थलों में हुए हैं और सभी में याज्ञवल्क्य भी साथ साथ आते हैं। वहाँ जनक विदेह याज्ञवल्क्य को शिक्षा देते हुए पाए जाते हैं। यह भी कहा गया है कि वे अंत में स्वयं ब्रह्मण्य (ब्रह्मा) पद प्राप्त कर लेते हैं। यों तो वैदिक युग में वर्णपरिवर्तन संभव ही नहीं अपितु प्रचलित भी था; यह कह सकना कठिन है कि यहाँ जनक द्वारा क्षत्रिय वर्ण छोड़कर ब्राह्मण वर्ण में प्रवेश कर जाने का उल्लेख है अथवा केवल ज्ञान और दर्शन क्षेत्र में ब्रह्मण्य प्राप्त कर लेने की ओर निर्देश है। यह भी कहा गया है कि अग्निहोत्र के बारे में उचित उत्तर पाकर जनक ने याज्ञवल्क्य को १०० गायों का दान दिया। एक दूसरे स्थल पर १००० गायों के दान देने की बात भी कही गई है। शाखायन श्रौतसूत्र में उन्हें सप्तरात्र नामक यज्ञ का कर्ता भी कहा गया है। जनक और याज्ञवल्क्य का बृहदारण्यक उपनिषद् में भी उल्लेख हुआ है, किंतु वहाँ याज्ञवल्क्य शिष्यत्व छोड़कर गुरु का स्थान प्राप्त कर लेते हैं और स्वयं जन उनसे परलोक, ब्रह्म और आत्मा के विषय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषदों तथा शांखायन आरण्यक से यह तो सिद्ध होता ही है कि जनक विदेह और याज्ञवल्क्य समकालीन थे, यह भी ज्ञात होता है कि श्वेतकेतु आरुणेय और काशी के प्रसिद्ध दार्शनिक राजा अजातशत्रु भी उन्हीं के समय में हुए थे। एक विद्वान् ने काशी के अजातशत्रु के मगध के अजातशत्रु से मिलाते हुए जनक का समय ई.पू. छठी शती में निश्चित करने का प्रयत्न किया है, जो स्पष्टत: अस्वीकार्य है। ब्राह्मणों और जनक का उल्लेख करनेवाले उन प्राचीन उपनिषदों का समय निश्चय ही बुद्ध युग के बहुत पूर्व था। अत: जनक को भी उस युग के पूर्व का ही मानना होगा, किंतु उनका ठीक समय सफलतापूर्वक निश्चित नहीं किया जा सकता। (विशुद्धानंद पाठक)