जगदीशचंद्र बसु, सर (सन् १८५८-१९३७) भारत के प्रसिद्ध भौतिकविद् तथा पादपक्रिया वैज्ञानिक का जन्म ३० नवंबर, १८२८, को हुआ था। इन्होंने कलकत्ता के सेंट ज़ेवियर कालेज तथा इंग्लैंड के क्रेब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई तथा उच्च सम्मान प्राप्त किए। प्रेसिडेंसी कालेज, कलकत्ता, में ये सन् १८८५ में भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हुए तथा इस पद पर सन् १९१५ तक रहे। सन् १८९६ में केंब्रिज विश्वविद्यालय न आपको डी. एस-सी. की उपाधि प्रदान की। प्रेसिडेंसी कालेज से सेवानिवृत्त होने पर सन् १९१७ में आपने बोस रिसर्च इंस्टिट्यूट, कलकत्ता, की स्थापना की और सन् १९३७ तक इसके निदेशक रहे।
सर जगदीशचंद्र ने भौतिकी विज्ञान में वैद्युत विकिरण से संबंधित महत्व के आविष्कार किए तथा विद्युत्तरंगों के परावर्तन, वर्तन और ध्रुवण के नियमों को स्थापित किया। बेतार संबंधी क्रियाओं में काम आनेवाले तथा बाद में आविष्कृत कोहियरर (Coherer) के सदृश एक उपकरण का इन्होंने आविष्कार किया था, जिससे पूर्वोक्त नियमों संबंधी खोजों में इन्हें विशेष सहायता मिली।
जंतुओं के, तथा विशेषकर वनस्पतियों के, क्रियाविज्ञान में इनके आविष्कार आश्चर्यजनक और इतने प्रगत थे कि उनका मूल्य सर बसु की मृत्यु के दीर्घकाल पश्चात् तक पूर्णत: नहीं आँका जा सका। इन्होंने अपने प्रयोगों के लिए नई नई रीतियों को अपनाया तथा अनेक नए एवं अद्भुत यंत्रों और उपकरणों का आविष्कार किया। इन यंत्रों में पौधों की वृद्धि नापने के लिए क्रेस्कोग्राफ नामक एक यंत्र भी था, जो इस वृद्धि को एक करोड़ गुना संवर्धित कर प्रदर्शित करता था। इन्होंने ऐसे उपकरण भी बनाए जिनसे पौधों पर निद्रा, वायु, भोजन और औषधियों इत्यादि के प्रभाव भी देखें जा सकते थे। इनकी सहायता से इन्होंने वानस्पत्य तथा जांतव ऊतकों की क्रियाओं में सादृश्य प्रदर्शित किया।
सन् १९१७ में इन्हें अंग्रेज सरकार ने सर की उपाधि दी तथा सन् १९२० में ये रॉयल सोसायटी (इंग्लैंड) के फेलो निर्वाचित हुए। सर जगदीशचंद्र ने कई महान् ग्रंथ भी लिखे हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित विषयों पर हैं। सजीव तथा निर्जीव की अभिक्रियाएँ (१९०२), वनस्पतियों की अभिक्रिया (सन् १९०६), पौधों की प्रेरक यांत्रिकी (सन् १९२८) इत्यादि।
सन् १९३७ के २३ नवंबर को बंगाल के गिरिडीह नगर में आपकी मृत्यु हुई। (भगवान दास)