जगतसेठ जगत्श्रेष्ठी शब्द का अपभ्रंश है। जोधपुर राज्य के वणिकवंशी हीरानंद सा के सात पुत्र थे। सारे देश में इनकी हुंडी का व्यापार फैला था। इनके एक पुत्र माणिकचंद्र ने ढाका में एक कोठी बनाई तथा इन्हीं से इस वंश का नाम फैला। ये बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खाँ के कृपापात्र, मित्र एवं दाहिने हाथ थे।

सन् १७१५ में सम्राट् मुहम्मदशाह ने धनकुबेर फतेहचंद को जगतसेठ की उपाधि से विभूषित किया तथा एक मरकत मणि भी प्रदान की जिसपर 'जगतसेठ' अंकित था। आगे चलकर इन्होंने राजनीति में विशेष भाग लिया। ये नवाबों को बनाने और बिगाड़ने लगे। अलीवर्दी खाँ से मिलकर सरफराज खाँ का विनाश किया और पुन: सिराजुद्दौला को बंगाल से निकालने तथा मीरजाफर को भी हटाने में इनका हाथ था। अंत में मीर कासिम ने इनके पुत्रों को कैद करवा लिया और बाद में उनका वध भी करा दिया। तदुपरांत इनके वंशजों को बड़ी मुसीबत के दिन देखने पड़े। (जितेंद्रनाथ वाजपेयी)