जंजीबार १. द्वीप, स्थिति : ६�०� द.अ. तथा ३९�२०� पू.दे.। इसका
क्षेत्रफल १,०२० वर्ग मील है। पूर्वी अफ्रीका में यह पेंबा तक विस्तृत
है। जंजीबार अफ्रीका महाद्वीप से
श्मील लंबे जलमार्ग द्वारा पृथक्
हो गया है। यह अफ्रीका के पूर्वी किनारे पर सबसे लंबा प्रवाल
द्वीप है।
यहाँ दिसंबर से मार्च तक गर्मी, अप्रैल से मई तक भारी वर्षा तथा जून से अक्टूबर तक सर्दी पड़ती है। औसत वार्षिक वर्षा ५८��, उच्चतम ताप २९�सें. तथा न्यूनतम ताप २५�सें. रहता है। धान यहाँ की प्रमुख उपज है। इसके अतिरिक्त मक्का, बाजरा तथा अन्य मोटे अनाज उपजाए जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से लौंग प्रमुख वस्तु है; ५,००० एकड़ जमीन पर इसकी खेती होती है और इसका निर्यात किया जाता है। यहाँ सेनारियल और उससे बनी वस्तुओं का भी निर्यात होता है। अनाज एवं रूई का आयात होता है। यहाँ के आदिवासी बंतू भाषाभाषी हैं। इनके अतिरिक्त भारतीय, अरब, यूरोपीय तथा गोआनी भी यहाँ के नागरिक हैं। द्वीप में रेलवे नहीं है। २०० मील लंबी सड़कों में से १५० मील डामर की बनी हुई हैं। इसका यूरोप तथा उत्तरी एवं दक्षिणी अफ्रीका से संबंध है। अमरीकी, ब्रिटिश एवं अन्य यूरोपीय जहाजरानी कंपनियों की सेवाएँ यहाँ प्राप्त हैं।
२. नगर, स्थिति : ६�२� द.अ. तथा ३९�२०� पू.दे.। जंजीबार द्वीप की राजधानी एवं प्रमुख बंदरगाह है। यह नगर त्रिभुजाकार द्वीप पर जंजीबार द्वीप के पश्चिम में स्थित है। यह सुरक्षित बंदरगाह है, जहाँ पानी की न्यूनतम गहराई ५ फैदम है। इसकी भौगोलिक स्थिति ने इसे ग्वारडाफूइ अंतरीप से डेलागोआ खाड़ी तक की कुंजी बना दिया है। (अ.ना.मे.)
जाति तथा भाषा - अफ्रीका के पूर्वी तट पर टाँगानिका से १२।। मील दूर जंजीबार और पेंबा द्वीपों से निर्मित राज्य। राजधानी जंजीबार है। इसमें अफ्रीकी अरबी और भारतीय तथा पाकिस्तानी भी रहते हैं यहाँ के निवासी मुख्यत: नीग्रो हैं। ७वीं शताब्दी ईसापूर्वं में अरब जाति के लोग यहाँ बसे।
जंजीबार में अधिकांश जन मुस्लिम हैं। कुछ ऐंग्लिकन और रोमन कैथोलिक ईसाई तथा हिंदू हैं।
किशवाहिली (Kishwahili) सर्वप्रचलित भाषा है। इसके अतिरिक्त स्थानीय बंटू, अंग्रेजी, अरबी तथा भारतीय भाषाओं में गुजराती का भी प्रयोग होता है।
इतिहास - अफ्रीका के पूर्वी तट के कुछ भाग तथा जंजीबार पर ७वीं शताब्दी ई.पू. तक अरबों तथा प्रथम शताब्दी तक हिमेराइयों (Himyarites) का आधिपत्य रहा। दक्षिणी अरब राज्यों का जंजीबार से प्रभाव उठाने के बाद हद्रमातों (Hadramawt) का संपर्क घनिष्ठ रहा।
यहाँ इस्लाम का प्रसार अरबों द्वारा ९वीं या १०वीं शताब्दी में आरंभ हुआ। निवासी प्राय: शफी संप्रदाय के सुन्नी हैं जिनकी स्थापना ८१३ई. में हुई थी। ९७५ में शिया आंदोलन से यह प्रदेश तीन भागोें-जंजीबार, तुंबातू और पेंबा में बँट गया। १५वीं शताब्दी के अंत में भारत की खोज में निकले यूरोपीयों ने जंजीबार से संपर्क स्थापित किया। यहाँ तक कि १६वीं शताब्दी में जंजीबार और पुर्तगाल में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो गया तथा पुर्तगाल ने जंजीबार की भूमि पर उद्योग के साथ चर्च की भी स्थापना की। लेकिन पेंबा ने पुर्तगालियों का शासन अधिक दिनों तक स्वीकार नहीं किया और १५८९ में वहाँ का पुर्तगाली सम्राट् पदच्युत कर दिया गया।
१५९३ में पुर्तगाल ने मोंबासा पर अधिकार कर लिया। इससे पूर्वी अफ्रीका में उसकी स्थिति सुदृढ़ हो गई। किंतु १६३१ में मालिंदी और मोंबासा के शासक ने विद्रोह कर पुर्तगालियों का जीजज फोर्ट छीन लिया। इस विद्रोह में मोंबासा के अनेक पुर्तगाली मारे गए। यद्यपि एक वर्ष के भीतर पुर्तगालियों ने पुन: द्वीप पर अधिकार कर लिया, तथापि वे मोंबासा और पेंबा में शांति स्थापित नहीं कर सके।
१६९८ में ओमन के आरूब इमाम सईफ-बिन-सुलतान ने पुर्तगालियों से पुन: फोर्ट जीजज छीन लिया और मोजांबीक के पुर्तगाली अधिकारियों को निष्कासित कर दिया। किंतु कुछ ही समय के पश्चात् १७२८-२९ में मोंबासा के अरब और जंजीबार के संघर्ष के कारण पुर्तगाली फोर्ट जीजज प्राप्त करने में सफल हो गए। ओमुंज के पतन के बाद हिंद महासागर पर उनका प्रभाव क्षीण होने लगा। पुर्तगालियों के ही काल में प्रथम अंग्रेजी जलयान जंजीबार के तट पर आया।
ओमन के इबालिदी (क्ष्डaथ्त्ड्डत्) अरब सईफ-बिन-सुलतान द्वारा पुर्तगालियों के निष्कासन के बाद से पूर्वी अफ्रीका के शासक रहे, किंतु १८वीं शती में ओमन यारूबियों की शक्ति क्षीण होने स मजरुई जाति ने मोंबासा में अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। ओमन का समुद्री तट भी फारसीयों के हाथ में चला गया।
ओमन के एक छोटे से नगर के अधिपति ने फारसीयों को अंत में निकाल बाहर किया। अहमद-बिन-सईद-अल सईदी व्यापारी था, किंतु अपनी राजनीतिक सूझबूझ से वह १७४१ में इबादी इमाम चुना गया। उसके पौत्र सईद-बिन-सुलतान को वर्तमान जंजीबार का संस्थापक कहा जाता है। १७७५ में अहमद की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सईद इमाम चुना गया, किंतु उसके पुत्र हमीद ने शासनसत्ता पर अधिकार कर लिया। १७९२ में उसकी मृत्यु के पश्चात् इमाम अहमद के पाचवें पुत्र सुलतान को शासनसत्ता हस्तांतरित हुई, यद्यपि उसका भाई ही जीवन पर्यंत इमाम रहा। सुल्तान की मृत्यु (१८०४) पर उसका पुत्र सईद उत्तराधिकारी हुआ। इस प्रकार इमाम का निर्वाचन धीरे धीरे समाप्त हो गया और एक वंश का राज्य स्थापित हो गया।
सइय सईद १७९१ में उत्पन्न हुआ। शासनारूढ़ होते समय वह अल्पवयस्क था। उसने अपना ध्यान केवल ओमन की ही समस्याओं पर केंद्रित रखा। इस प्रकार शेष पूर्वी अफ्रीका उपेक्षित रह गया। १८२१ में पेंबा में मजरूई अत्याचारों की शिकायत सुनकर उसने जंजीबार के शासक को मजरूइयों के निष्कासन का आदेश दिया। इसी प्रक्रिया में जंजीबार और पेंबा अलबू सईद के ध्वज के नीचे एक हुए। उसने जंजीबार और पेंबा अलबू सईद के ध्वज के नीचे एक हुए। उसने जंजीबार को १८३२ में अपनी राजधानी बनाया। अल-बू सईद व्यापारी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने अरबों का एकाधिकार समाप्त करके अन्य विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन दिया। उसने अपनी मृत्यु तक (१८५६) ओम, जंजीबार, पूर्वी तट, ग्रेट लेक्स, और कांगो को मिलाकर एकराज्य का निर्माण किया था।