छिंदवाड़ा १. जिला यह मध्यप्रदेश में है। इसका क्षेत्रफल ४,५६५ वर्ग मील, तथा जनसंख्या का प्रति वर्ग मील घनत्व १७२ व्यक्ति हैं। यह सतपुड़ा पठार पर स्थित है। सोंसर तहसील से उत्तर-पूर्व की ओर ऊँचाई बढ़ती है। कुछ चोटियाँ ३,६०० फुट ऊँची हैं। कन्हान और पेंच प्रमुख नदियाँ हैं। मिट्टी काली दोमट, लाल और पीली है। कपास एवं ज्वार सोंसर तहसील में होते हैं। पूर्व की ओर धान होता है। गेहूँ, ज्वार, कोदो, तिल, सनई अन्य कृषिपदार्थ हैं। पातन एवं सोंगी नरगधान यहाँ के प्रसिद्ध किले हैं। पातन एवं सोंगी नगरधान यहाँ के प्रसिद्ध किले हैं। देवगढ़ में तालाबों और इमारतों के अवशेष हैं। कपास और टसर रेशम बुनना, यांत्रिक और धातु उद्योग, तेल मिल, आरा मशीन आदि प्रमुख उद्योग हैं। पेंच घाटी में कोयले का क्षेत्र है। यहाँ कुछ महाविद्यालय तथा कई स्कूल हैं।

२. तहसील, मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के उत्तरी भाग में स्थित है, जिसका क्षेत्रफल ३,५२८ वर्ग मील है। तहसील में १,३६८ गाँव तथा छिंदवाड़ा नामक एक शहर है। भूरचना पठारी है और कहीं-कहीं पहाड़ियाँ भी हैं। ज्वार और गेहूँ प्रमुख कृषिपदार्थ हैं। छिंदवाड़ा नगर में कुछ महाविद्यालय हैं।

३. नगर, स्थिति : २४°¢ उ.अ तथा ७८° ५७¢ पू.दे.। यह मध्यप्रदेश का एक नगर, तहसील एवं जिला है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई २,२०० फुट है। यह सतपुड़ा पठार पर स्थित, दक्षिण-पूर्व रेलवे की शाखा पर एक रेलवे स्टेशन है। बरतन बनाना, कपास तथा टसर रेशम बुनना, तेल की मिलें आदि यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं। यहाँ महाविद्यालय तथा स्कूल भी है।

४. स्थिति : २३°¢ उ.अ. तथा ७९° २८¢ पू.दे.। यह मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले का नगर है, यह मध्य रेलवे पर बंबई से ५८३ मील दूर है। यह नगर सन् १८२४ में सर डब्ल्यू. स्लीमन द्वारा स्थापित किया गया था। प्रति सप्ताह यहाँ पशुओं का बाजार लगता है। यहाँ सूत कातने की एक फैक्टरी भी है। (सै.मु.अ.)

इतिहास - प्राचीन इतिहास अंधकारपूर्ण होने के कारण १७वीं शताब्दी तक प्राय: अज्ञात रहा है। किंवदंतियों के अनुसार कुमारीपुत्र जाटवा ने अपने वीरतापूर्ण साहस से गावली राज्य का अंत कर गोंड राज्य की स्थापना की और कुछ किले बनाए थे। १७वीं शताब्दी के अंत में देवगढ़ के राजा बख्तबुलंद ने, जो अपने पराक्रम से दिल्ली का कृपापात्र था, छिंदवाड़ा पर शासन किया। इसके पश्चात् रघुजी भोंसले ने इसपर अधिकार कर लिया। आगे मराठी सत्ता के दुर्बल होने पर गोंडों ने इसे कई बार लूटा। १८वीं शताब्दी के अंत तक मराठी राजा अप्पा साहब को हटाकर इसपर ईस्ट इंडिया कंपनी ने अधिकार किया और १८५३ में यह अंग्रेजी राज्य का अंग हो गया :