छत्रसाल (मई, १६४९ - दिसंबर, १७३१) चंपतराय बुंदेला के चतुर्थ पुत्र। मुगलकालीन इतिहास के प्रसिद्ध बुंदले योद्धा और पन्ना राज्य (१६७५) के संस्थापक। विवादास्पद जन्मतिथियों में मान्य ४ मई, १६४९ को बुंदेलखंड के ककर कचनए ग्राम में आपका बचपन अस्त्रसंचालन, मल्लयुद्ध और घुड़सवारी सीखने में बीता। युवक होने पर पँवारवंशीय कन्या देवकुँअरि से आपका विवाह हुआ। उस समय जब मुगल सम्राट् के कोप से विचलित आपके पिता निर्वासित होकर शरण प्राप्त करने के लिये कई स्थानों पर सपरिवार अज्ञातवास का कठिन और अपमानित जीवन व्यतीत कर रहे थे और अंत में आत्महत्या कर ली (१६६१) तब छत्रसाल ने मुगलों का विरोधी बनने की अपेक्षा मुगलसेना में नौकरी करना ही उचित समझा।

सबसे पहले १६६५ में आप जयसिंह की सेना में भरती हुए और पुरंधर के घेरे में शिवाजी के विरुद्ध वीरता दिखाने के नाते जयसिंह की संस्तुति पर मुगल सम्राट् द्वारा ढाई सदी जात १०० सवार का मनसब प्राप्त किया। १६६६ में बीजापुर पर शाही आक्रमण में भाग लिया और देवगढ़ के राजा कोकसिंह के विरुद्ध दिलेरखाँ की चढ़ाई में सैनिक योग दिया।

१६६७ के अंत में छत्रसाल की भेंट शिवाजी से हुई। आप उनके साथ पूना में कुछ दिन रहे और १६६८ के आरंभ में बुंदेलखंड आकर शुभकरण बुंदेला से मिले। फिर औरंगजेब की हिंदूविरोधी नीति के अनुसार १६६९ में जब हिंदू मदिंरों को ध्वस्त करने का फर्मान जारी हुआ और १६७० में ओरछा के मंदिरों को तोड़ने के लिये आया हुआ फिदाई खां छत्रसाल के नेतृत्व में संगठित बुंदेलों से धूमधाट पर हारा, तब हिंदू जनता में व्याप्त असंतोष तथा मुगलशासन की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप बुंदेलखेड की हिंदू जनता छत्रसाल को हिंदू धर्म का रक्षक समझने लगी। इस समय यश के साथ अपनी शक्ति भी बढ़ने लगी। फिदाई खाँ से निबटकर १६७० के अंत में आप ओरछा के राजा सुजानसिंह के बुलावे पर दक्षिण गए जो चढ़ाई में मुगलसेना के साथ थे।

१६७१ में दक्षिण से लौटने पर छत्रसाल ने एक छोटी मोटी सेना संगठित की और बलदाऊ की सहायता से आसपास के प्रदेशों को लूटना और चौथ वसूलना आरंभ किया। शीघ्र ही १६७१-७२ में ३० घुड़सवारों और ३०० सैनिकों की सेना द्वारा मऊ के आसपास अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया, फिर धंधेरों को हराया, सिरोंज के फौजदार मुहम्मद हाशिम, अनांदराय बंका, धामोनी के फौजदार खालिक और बासा के जागीरदार केशवराय दागी को हराकर ओडर, पिपरहट सिरोंज, चंद्रापुर, मैहर, धामोनी और सागर आदि एक दर्जन से अधिक स्थानों तथा आसपास के क्षेत्रों को भरपूर लूटा। उस उपद्रव से बुंदेलखंड में मुगलसत्ता समाप्त सी हो गई। अनेक जमींदार और जागीरदार अब छत्रसाल के साथ हो गए। इस प्रकार आपकी सैन्य शक्ति भी बहुत बढ़ी। अब मुगल सम्राट् ने ध्यान दिया और विद्रोह का दमन करने के लिये रुहुल्ला खाँ ने एक शक्तिशाली सेना लेकर गढ़ाकोटा पर हमला कर दिया पर बुंदेलों के सामने टिक न सका और गहरी क्षति उठाकर लौट गया। अब तो छत्रसाल की हिम्मत और भी बढ़ी। फलत: नरवर, ओरछा के समीपस्थ क्षेत्र गारौन, जीरोन, जतारा, कचनए आदि को लूटा। १६७५ में गोंड राजा को हराया और पन्ना पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया। तत्पश्चात् रायसीन में उपद्रव कर ग्वालियर के इलाकों में धावे मारे, राठ तथा महोबे के फौजदार मुनव्वर खाँ की धूमघाट पर हराया और आसपास के कस्बों को लूटते हुए पथरिया और दमोह को भी लूटा।

अब छत्रसाल की ख्याति दूर दूर तक फैल चली थी। आपके आतंक से मुगलसेना के अजेय होने का भ्रम भी हटने लगा था। अत: छत्रसाल के भाई, अन्य संबंधी, जामशाह, पृथ्वीराज, अमरदीवान, कटेरा और शाहगढ़ के जमींदार सभी की शक्तियाँ छत्रसाल से मिलकर एकाकार हो गई। छत्रप्रकाश के अनुसार तो बुंदेलखंड के ७० सरदार और जमींदार आपके साथ हो गए। इस बीच युद्धों से विरत रहकर आपने सेना का नया संगठन किया।

किंतु छत्रसाल ने मुगल सेना की अपार शक्तिसंपन्नता को न भूलकर अपनी दूरदर्शिता से काम लिया। आपने १७६९ के प्रारंभ में शाहजादा मुअजम से अपने साम्राज्यविरोधी कार्यों के लिये क्षमा माँगी। इसी बीच छत्रसाल के दमन के लिये पूर्वनियुक्त तहव्वर खाँ ने छत्रसाल पर क्रमश: तीन चढ़ाइयाँ की और हर बार उसे मुँहकी खानी पड़ी। इससे उत्साहित होकर छत्रसाल ने पुन: लूटपाट शुरु कर दी और दर्जनों स्थानों को लूटा। अब औरंगजेब के क्रोध का ठिकाना न था। उसने छत्रसाल को मटियामेट कर डालने के उद्देश्य से अनेक लोगों को नियोजित किया। छत्रसाल इस घेरघार से चिंतित हो उठे फलत: तहव्वर खाँ द्वारा दुबारा सम्राट् से क्षमायाचना की। परंतु थोड़े समय बाद ही कालपी के समीप छत्रसाल से पुन: उपद्रव करना आरंभ किया और मुगसेनाधिकारियों- शेख अनवर, सदरुद्दीन , बहलोल खाँ आदि को लड़ाई में परास्त कर शाही ठिकानों, गावों, कस्बों आदि को लूटा। किंतु धामोनी के नए फौजदार इखलास खाँ ने छत्रसाल को मुगल अधीनता स्वीकार करने पर बाध्य कर दिया। तदनुसार अगस्त १७८१ में आप मुगलसेना में सम्मिलत होकर खाला नामक परगने के मुगल अधिकारी बने। लेकिन १८८२ में बुंदेलखंड आकर आपने पुन: लूटपाट की, कई स्थानों को लूटा, युद्ध किया और इलाकों पर अधिकार किया। लगातार कई युद्धों से छत्रसाल ऊब उठे थे इसलिये उन्होंने एक बार पुन: मुगलों की अधीनता स्वीकार कर खाँजहाँ के अधीन शाही फौज में मिल गए। इस बीच आपने शाही दरबार में उपस्थित होक मनसब प्राप्त किया जो क्रमश: बढ़कर ५ सदी जात ४५० सवारों का हो गया।

इधर अवसर पाकर धामोनी के फौजदार शमशेर खाँ ने बुंदेलों को परास्तकर गढ़ाकोटा और छतरपुर पर अधिकार कर लिया। लेकिन जब छत्रसाल बुंदेलखंड गए तो बुंदेलों ने दूने जोश में शाही ठिकानों पर धावे मारना, स्थानों को लूटना और चौथ वसूलना आरंभ किया१ आपने शेरअफगान और शाहुकुलीन खाँ को हराकर चौथ वसूला। इस प्रकार १६८४ से लेकर १७०७ में जब आपने फिरोजजंग के द्वारा सम्राट् से क्षमायाचना कर मुगल सेना में सम्मिलत होने की इच्छा प्रकट की तब उसने औरंगजेब से आग्रह कर छत्रसाल को राजा की उपाधि और चार हजार का मनसब दिलवा दिया। इसके अतिरिक्त आप सतारा के दुर्गाध्यक्ष भी बने। तदनंतर छत्रसाल स्वयं दक्षिण के शाही दरबार में उपस्थित हुए और सम्राट् की मृत्यु तक वहीं रहकर पुन: बुंदेलखंड लौट आए। ८ जून, १७०७ की जाजऊ की निर्णायक लड़ाई के बाद आपने नए सम्राट् बहादुरशाह की अधीनता स्वीकार की और क्षमा माँगी। १७१० में कामबख्श का दमन कर उत्तर भारत लौट रहे बहादुरशाह से आपने कालीसिंघ के पास भेंट की और खिलअत पाई। इस बीच छत्रसाल की कई भेंटों और उपहारों से सम्राट् बहुत प्रसन्नहुआ। उसने दो जोड़े कान की बालियाँ दीं। १७१० में सिख नेता बंदाबैरागी के विरुद्ध लोहागढ़ के घेरे में मुगलों की ओर से शौर्य दिखाने पर पुरस्कार स्वरूप आपको एक कलँगी मिली।

बहादुरशाह की मृत्यु के बाद जब फर्रुखसियर ने उत्तराधिकार सँभाला तब उसने १७१३-१४ में छत्रसाल को चार हजारी जात और चार हजार सवारों का मनसब प्रदान किया। अब आप मुगलों के प्रबल समर्थक होकर मराठों आदि के विरुद्ध उनकी कई चढ़ाइयों में सक्रिय योग देने लगे। १७१९ में मुहम्मद शाह ने सम्राट् बनने पर छत्रसाल की १७२० में एक जड़ाऊ कटार और हाथी प्रदान किया। किंतु आगे चलकर दोनों के संबंध कटु होते गए। उसी समय मुहम्मद खाँ बंगश इलाहाबाद का सूबेदार नियुक्त हुआ जिसमें बुंदेलखंड के अधिकांश क्षेत्र पड़ते थे और वे क्षेत्र फर्रुखसियर के समय से छत्रसाल के अधिकार में थे। इसे बंगश सहनकर सका। बंगश की ओर से एक बड़ी फौज लेकर दिलेर खाँ बुंदेलों की कुचलने चला। कई स्थानों पर लड़ाइयाँ हुई। अंत में १५ मई, १७२१ को 'ताराहवन' की लड़ाई में वह बुरी तरह पराजित हुआ। फिर १७२४ में बंगश स्वयं एक बड़ी सेना के साथ बुंदेलों से लड़ा पर उसे भी सफलता न मिली। दूसरी बार १७२६ में २० हजार सवार और एक लाख पैदल सेना लेकर चढ़ा और दर्जनों मोर्चों पर घमासान युद्ध कर बुंदेलों को खूब छकाया। यह लड़ाई तीन सालों तक चली जिसमें बंगश विजयी हुआ। लेकिन १७२९ में बाजीराव पेशवा (प्रथम) ने बुंदेलखंड पर हमलाकर बंगश की जीत हार में बदल दी। इधर निराश हो छत्रसाल बंगश की शरण में आए और संधिवार्ता के अनुसार आपने मुगलों की अधीनता स्वीकार की तथा बीमारी और अशक्तता का बहाना कर आदेशानुसार सूरजमऊ चले आए। उधर मराठे जोर मारने लगे थे पर बंगश को छत्रसाल से अब कोई आशंका थी नहीं इसलिये निश्चित हो गा। इधर अमझेरा के युद्ध के बाद छत्रसाल ने चिमाजी अप्पा और पेशवा बाजीराव प्रथम से बंगश के विरुद्ध सहायता माँगी। इसके अनुसार १७२९ में पेशवा एक बड़ी सेना लेकर बुंदेलखड पँहुचे। शीघ्र ही बुंदेलों और मराठों की सम्मिलत सेना ने बंगश तथा उसके सहायकों को हरा दिया। असहाय बंगश अब निराश था। जैतपुर में वह मराठों और बुंदेलों से घिरा था। इसी बीच महामारी फैलने से मराठे तो चले गए किंतु छत्रसाल घेरा डाले पड़े रहे। अंत में एक संधि के अनुसार बंगश ने अगस्त, १७२९ में जैतपुर के किले को खाली कर दिया और छत्रसाल के राज्य पर फिर कभी आक्रमण न करने का वचन दिया। छत्रसाल बंगश के विरुद्ध सहायता करने से पेशवा बाजीराव के कृतज्ञ थे, अत: उन्होंने बाजीराव को विजित प्रदेश का तिहाई भाग देने का वचन दिया था लेकिन यह कभी पूरा न हुआ। ४ दिसंबर, १७३१ को छत्रसाल स्वर्गवासी हो गए।

छत्रसाल कलम और तलवार दोनों के धनी थे। वे एक अच्छे कवि थे जिनकी भक्ति तथा नीति संबंधी कविताएँ ब्रजभाषा में प्राप्त होती हैं। इनके आश्रित दरबारी कवियों में भूषण, लालकवि, हरिकेश, निवाज, ब्रजभूषण आदि मुख्य हैं। भूषण ने आपकी प्रशंसा में जो कविताएँ लिखीं वे 'छत्रसाल दशक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। (दे. भूषण) छत्रप्रकाश जैसे चरितकाव्य के प्रणेता गोरेलाल उपनाम लाल कवि आपके ही दरबार में थे। यह ग्रंथ तत्कालीन ऐतिहासिक सूचनाओं से भरा है, साथ ही छत्रसाल की जीवनी के लिए उपयोगी है।

सं.ग्रं. - डॉ भगवानदास गुप्त : महाराजा छत्रसाल बुंदेला, आगरा १९५८; सर यदुनाथ सरकार : शार्ट हिस्ट्री ऑव औरंगजेब; डॉ. रघुबीर सिंह : मालवा इन ट्रांजीशन ; मआसिरुल उमरा; लालकवि : छत्रप्रकाश। (श्याम तिवारी)