च्यवन पिता भृगु और माता पुलोमा से उत्पन्न वेद प्रसिद्ध एक ऋषि। पौराणिक आख्यानों के अनुसार जब ये गर्भ में थे तब एक राक्षस इनकी माता का अपहरण करने आया। उसी समय माता का गर्भ गिर गया और उससे तेज से राक्षस भस्म हो गया। गर्भ से च्युत होने के कारण उस गर्भ से उत्पन्न बालक च्यवन कहलाता। दूसरी कथा के अनुसार ये तपस्या में इतने लीन हो गए कि इनके शरीर पर दीमकों ने बॉबी बना ली जिसमें से केवल इनकी आँखें चमकती थीं। शर्याति की पुत्री सुकन्या ने कौतूहलवश आंखों में काँटा चुभो दिया। क्रुद्ध ऋषि के प्रभाव से राजा के सिपाहियों का मलमूत्र अवरुद्ध हो गया। सुकन्या को पत्नी के रूप में देकर राजा ने उन्हें शांत किया। अश्विनीकुमारों ने सुकन्या के सतीत्व की परीक्षा लेकर वृद्ध च्यवन को पुन: युवा बना दिया। यह कथा ऋग्वेद में भी मिलती है। इस यौवनदान के प्रतिदान में च्यवन ने अश्विनियों को सोमरस का अधिकारी बनाया। (रामचंद्र पांडेय)