चैथम, विलियम पिट १७०८-१७७८ : चैथम के प्रथम अर्ल, इंग्लैंड के महान् राजनीतिज्ञ और प्रसिद्ध वक्ता विलियम पिट का जन्म वेस्टमिंस्टर के गोल्डेन स्क्कायर में संपन्न परिवार में १५ नवंबर, १७०८ को हुआ। पिता राबर्ट पिट आरंभ में कार्नवाल की एक बस्ती बौकनौक में रहते थे१ ग्रामीण क्षेत्र के भद्र समाज में इस परिवार की गणना थी। बाबा टामस पिट १६८७ से १७०९ तक मद्रास में ईस्टइंडिया कंपनी के गवर्नर रहे। स्वदेश में कुछ जागीरों और बस्तियों का स्वामित्व प्राप्त कर उन्होंने समाज में ऊँचा स्थान बना लिया था। अपनी एक भ्रष्ट बस्ती ओल्ड सैरम के प्रतिनिधि के रूप में, वह कुछ समय पार्लमेंट के सदस्य भी रहे। १७०९ में उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र विलियम पिट के पिता एबर्ट पिट उनकी संपत्ति और जायदाद के स्वामी हुए। ओल्ड सैरम के प्रतिनिधि के रूप में वह भी पार्लमेंट में पहुँच गए थे। राबर्ट पिट का विवाह संभ्रांत कुल की कन्या से हुआ था। कुछ समय से यह परिवार देश की राजधानी लंदन नगर में रहने लगा था। पिट छ: भाई बहिनों के बीच माता पिता क चौथी संतान और दूसरे पुत्र थे। बचपन में उनकी देखरेख घर पर ही हुई। ११ वर्ष के की आयु में विद्याध्ययन के निमित्त ईटन के प्रसिद्धस्कूल में उनका प्रवेश हुआ। स्कूल का अध्ययन समाप्त कर उच्च शिक्षाप्राप्ति के लिये पिट १९वें वर्ष में ऑक्सफोर्ड में प्राचीन ग्रीक और लैटिन विद्याओं का उन्होंने मननपूर्वक अध्ययन किया पर दोनों ही विद्यालयों में उनकी भावी प्रतिभा का कोई लक्षण व्यक्त नहीं हुआ। उनकी गणना असाधारण छात्रों में नही होती थी। पिट गठिया के रोग से त्रस्त थे। इस रोग ने उनको जीवन भर कष्ट दिया। रोग के कारण उनका अध्ययन कठिन हो गया। स्नातक की पदवी प्राप्त किए बिना ही वर्ष भर बाद उनको ऑक्सफोर्ड छोड़ना पड़ा। कुछ समय तक उन्होंने योरोप में भ्रमण किया। कुछ मास हालैंड के उट्रेक्ट विश्वविद्यालय में कानून के अध्ययन में बिताए। योरोप प्रवास की अवधि में उनके पिता की मृत्यु हो गई। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पिट के सम्मुख आजीविका की समस्या थी। वह स्वदेश लौट आए और शीघ्र ही दो सौ पौंड वार्षिक वेतन पर अश्वसेना में कौर्नेट के पद पर नियुक्त हो गए। उन्होंने उत्साहपूर्वक सैनिक शिक्षा प्राप्त की कार्य में कभी शिथिलता न आने दी। सैनिक सेवा की अवधि में उन्होंने एक बार फिर योरोप की यात्रा की और अपने देश के कई राजनीतिज्ञों के संपर्क में आए। तत्कालीन सरकार की नीति और भ्रष्टाचार ने उनका ध्यान आकर्षित किया।

१७३५ के ओल्ड सैरम के प्रतिनिधि के रूप में पार्लियामेंट में पहुँचने पर पिट ने विरोधी दल का साथ दिया। अगले वर्ष देश के भावी शासक वेल्स के राजकुमार फ्रेडरिक के विवाह के अवसर पर अपने पहले ही भाषण में उन्होंने सरकार की पत्नी की इतनी तीव्र आलोचना की कि तत्कालीन प्रधान मंत्री वालपोल ने उनको तुरंत सैनिक सेवा से निवृत्त कर दिया। वालपोल ने कहा था : 'अश्व सेना के इस कौर्नेट का मुँह हमें बंद करना चाहिए।' राजकुमार ने पिट को अपनी गृहसेवा में स्थान देकर आजीविका की समस्या से उसको मुक्त कर दिया। पार्लमेंट में सरकार की खरी टीका करने के प्रत्येक अवसर का पिट ने उपयोग किया। सरकार की शांतिवादी नीति का वह परम विरोधी था। पिट की साहसपूर्ण स्पष्टवादिता से वालपोल के पुराने विरोधियों को बल मिला। नए समवयस्क सदस्यों में भी कई ने उसका साथ दिया। वालपोल के समर्थकों की संख्या कम होती गई। एक बस्ती के सदस्य के निर्वाचन के मामले में पार्लियामेंट में केवल एक अधिक मत प्राप्त होने पर १७४२ में वालपोल प्रधान मंत्री के पद से हट गए। कार्टरैट के नए मंत्रिमंडल का कार्य सँभालने के बाद पिट ने पार्लियामेंट में वालपोल के कार्यों की अत्यंत कटु शब्दों में आलोचना की और उसपर अभियोग लगाकर कठोर दंड देने का प्रस्ताव किया। इस बीच राजा जार्ज द्वितीय ने वालपोल को अर्ल की पदवी देकर लार्ड सभा का सदस्य बना दिया। पिट का प्रस्ताव कार्यान्वित न हो सकता किंतु ब्रंजविक के राजवंश की क्षुद्र जर्मन रियासतों के हित में, इंग्लैंड के धन के अव्यय ही सरकारी नीति का उसने तीव्र विरोध किया।

इंग्लैंड की मर्यादा की रक्षा और देश को विनाश से बचाने के उद्देश्य से पार्लियामेंट में व्यक्त पिट के दृढ़ विचारों से मार्लबरों के ड्यूक की वृद्धा पत्नी इतनी प्रसन्न और प्रभावित हुई कि उसने १७४४ में मृत्यु से पूर्व अपनी वसीयत में दस हजार पौड की रकम पिट के नाम कर दी थी। पिट को धन का विशेष मोह न था१ राजनीतिक कार्यों में उसकी अधिक रुचि थी। राजकुमार की सेवा से मुक्त होकर पिट ने अब राजनीतिक क्षेत्र में देश की सेवा को अपने जीवन का प्रमुख उद्देश्य बना लिया। १७४४ में कार्टरैट-मंत्रिमंडल भंग हो गया। नए प्रधान मंत्री हैनरी पैलहम ने १७४६ में पिट को भी मंत्रिमंडल में स्थान देना चाहा। राजा पिट से अप्रसन्न था। उसने स्वीकृति नहीं दी। पिट के बिना कार्य जारी रखने के लिए पैलहम मंत्रिमंडल सहमत नहीं हुआ और किसी को मंत्रिमंडल बनाने में असमर्थ पाकर राजा को पैलहम का प्रस्ताव मानना पड़ा। पिट सेना के वेतनवितरक के पद पर नियुक्त हुए। इस पद के अधिकारी को परंपरागत प्रथमानुसार वेतन पानेवालों से तथा अन्य प्रकार से पर्याप्त धनराशि प्राप्त होती थी१ पिट की आर्थिक स्थिति, अच्छी न थीं। किंतु इस पद की आठ वर्ष की अवधि में उसने कभी भी किसी से धन नहीं लिया। वह इस प्रथा को दोषपूर्ण मानता था और इसकी समाप्ति का समर्थक था। इस उत्तम आचरण से प्रजा के बीच उसकी लोकप्रियता और सम्मान में वृद्धि हुई। १७५४ के नवंबर मास में अपने गैनविल मित्रों की एकमात्र बहिन हैस्टर से लंदन में पिट क विवाह हुआ। उसका वैवाहिक जीवन सुखमय रहा। वह अपनी पत्नी में अनुरक्त था पत्नी का विश्वास, स्नेह और सहानुभूति उसे सदा मिलती रही। इंग्लैंड का एक और महान् राजनीतिज्ञ छोटा पिट इन दोनों का पुत्र था। इसी वर्ष हैनरी पैलहम की मृत्यु के बाद उसका भाई न्यूकासिल का ड्यूक टॉमस पैलहम प्रधान मंत्री नियुक्त हुआ। उसने मंत्रिमंडल में पिट को राज्यसचिव का पद दिया। अगले ही वर्ष हनोचर की रक्षा के लिये रूस और जर्मनी की रियासत हैस से संधि करने के सरकारी प्रस्ताव का पिट ने विरोध किया। उनकी दृष्टि में यह कार्य इंग्लैंड के हित में उचित नहीं था। विरोध के कारण उनको मंत्रिमंडल से हटा दिया गया। पिट अब कामन्स सभा में विरोधी पक्ष के नेता बन गए। १७५६ में इंग्लैंड का फ्रांस से सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ गया। प्रधानमंत्री युद्ध का सफलतापूर्वक संचालन न कर सके। मंत्रिमंडल के पूर्ण सहयोग के अभाव में उन्होंने वर्ष के अंत में पदत्याग कर दिया। डेवनशायर के ड्यूक के नए मंत्रिमंडल में पिट को फिर राज्यसचिव का पद दिया गया। पिट उत्साहपूर्वक कार्य में जुट गए। युद्ध की स्थिति में अनुकूलता लाना उनका मुख्य उद्देश्य था। स्कॉटलैंड के पहाड़ी इलाके की असंतुष्ट प्रजा को देशरक्षार्थ, इंग्लैंड की सेना में नियोजित कर इस अवधि में उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके वेतनभोगी जर्मन सैनिक विदा कर दिए गए।

पिट का मंत्रिमंडल और पार्लियामेंट दोनों ही पर सर्वाधिक प्रभाव था। राजा को यह स्थिति पसंद न थी। उन्होंने वर्ष का अंत होने से पूर्व ही पिट को राज्यसचिवके पद से हटा दिया। पिट प्रजा की दृष्टि में ऊँचा उठ गया। लंदन और अन्य नगरों की कार्पोरेशनों ने पिट को अपने अपने नगरों की स्वतंत्रता प्रदान की। पिट के बिना डेवनशायर मंत्रिमंडल का कार्य ठप हो गया। राजा ने न्यूकासिल के ड्यूक को नया मंत्रिमंडल बनाने का कार्य सौंपा। पिट के बिना युद्धसंचालन में वह भी असमर्थ थे। राजा मंत्रिमंडल में पिट के सम्मिलित होने के अब भी विरोधी थे। पर उस समय की स्थिति से पिट के बिना मंत्रिमंडल बनाने के लिए कोई तैयार न था। राजा को झुकाना पड़ा। न्यूकासिल के मंत्रिमंडल में पिट ने राज्यसचिव का पद ग्रहण किया। कामन्स सभा में राजकीय पक्ष के नेतृत्व का भार भी उनको सौंपा गया। युद्ध में इंग्लैंड को विजयी बनाने की अपनी योग्यता और क्षमता में पिट को पूर्ण विश्वास था। इस संबंध में उन्होंने डेवनशायर के ड्यूक से कहा था कि केवल वही इस संकट से दश की रक्षा कर सकते हैं, और कोई नहीं। युद्ध में इंग्लैंड की स्थिति डावांडोल थी। केवल योरोप में ही नहीं, भारत और उत्तरी अमरीका में भी, जहाँ फ्रांस और इंग्लैंड दोनों देशों की व्यापारी कोठियाँ और उपनिवेश थे, युद्ध की ज्वाला सुलगी हुई थी। व्यापार और साम्राज्य की रक्षा और सर्वत्र फ्रांस की पराजय पिट की युद्धनीति का लक्ष्य था। पिट ने इंग्लैंड की समुद्र शक्ति का विस्तार किया। योग्य सेनापति और सेनाएँ भारत और उत्तरी अमरीका भेजीं। योरोप में अपने एकमात्र मित्र और सहायक प्रशा के राजा फ्रेडरिक को आर्थिक और सैनिक सहायता देकर फ्रांस को योरोप में ही फंसाए रखा।

पहले वर्ष पिट की योजनाएँ सफल नहीं हुई, पर १७५९ और १७६० में इंग्लैंड को सभी स्थानों पर शानदार सफलता मिली। फ्रांस के जहाजी बेड़े की काफी क्षति हुई। योरोप में मिंडेन (१७५९) उत्तरी अमरीका में अब्राहम की पहाड़ी (१७५९) और भारतवर्ष में बांडीवाश (१६६०) के निर्णायक युद्धों, ने फ्रांस को क्षीण कर दिया। पिट की स्फूर्ति, अथक परिश्रम और कार्यक्षमता ने इंग्लैंड को सफल बनाया। प्रधान मंत्री और राजा का पूर्ण समर्थन पिट को प्राप्त था। १७६० में जार्ज द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पौत्र जार्ज तृतीय इंग्लैंड का राजा हुआ। वह व्यक्तिगत शासन चलाना चाहता था। मंत्रियों पर राजा का नियंत्रण उसको अभीष्ट था। वह पिट की युद्धनीति का विरोध था। उसने कुछ मंत्रियों को अपने पक्ष में कर लिया और फ्रांस के सहायक स्पेन के विरुद्ध युद्ध घोषित करने के पिट के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया। १७६१ में पिट ने अपना पद प्रधान मंत्री न्यूकासिल को सौंप दिया।

न्यूकासिल भी प्रधान मंत्री के पद से हट गए। राजा के मनोनुकूल नए मंत्रिमंडल ने कार्यभार सँभाला। पार्लियामेंट ने पिट को तीन हजार पौंड की वार्षिक पेंशन प्रदान की और उनकी पत्नी को शेष जीवन के लिए चैथम की 'बैरोनेस' की पदवी दी। अगले पाँच वर्ष पिट कामंस सभा में विरोधी दल के साथ रहे। व्यक्ति और वस्तु के नाम बिना तलाशी, गिरफ्तारी और जब्ती के लिए नियमत: प्राप्त सुविधा के साधारण वारंट के उपयोग का उसने १७६३ में विरोध किया। ऐसे ही वारंट के आधार पर विल्कीज और उसके कुछ साथियों पर एक प्रकाशन के सबंध में राजाज्ञा से मुकदमा चलाया गया था। अमरीका के उपनिवेशों की स्वीकृति के बिना उनपर कर लगाने के प्रस्तावित स्टांप ऐक्ट का भी उन्होंने १७६५ में विरोध किया। इस बीच दो बार राजा ने मंत्रिमंडल बनाने के लिए पिट से कहा किंतु कुछ प्रमुख व्यक्तियों को मंत्रिमंडल में स्थान देने में राजा की अस्वीकृति के कारण दोनों ही अवसरों पर उसने राजा का प्रस्ताव नहीं माना। बीमारी के कारण इस अवधि में पिट कुछ समय तक सोमरसेटशायर के अपने गाँव के मकान में रहा। १७६६ में स्टांप ऐक्ट के रद किए जाने पर पिट ने प्रसन्नता व्यक्त की किंतु भविष्य में कर लगाने के अधिकार को अक्षुणण रखने के घोषणात्मक कानून का उन्होंने समर्थन नही किया। राजा के तीसरी बार कहने पर इस वर्ष उन्होंने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण कर लिया किंतु अब उनका स्थान लार्ड सभा में था। राजा ने उनको चैथम के अर्ल की पदवी देकर लार्ड सभा का सदस्य बना दिया था। उनको लार्ड प्रीवीसील का पद भी दिया गया। पिट अब भी इंग्लैंड के प्रभाव के विस्तार क नीति के सर्थक थे पर लार्ड सभा में जाने से कामंस सभा में उनकी प्रतिष्ठा कम हो गई। उनकी बातों का पहले जैसा प्रभाव उस सभा में नहीं रहा। गिरते स्वास्थ्य और रोग के कारण पिट को शीघ्र ही कार्य से हटना पड़। राजनीति की हलचलों से दूर रहकर दो वर्ष तक उन्होंने हेज में कष्ट का जीवन बिताया। स्वास्थ्य में सुधार की संभावना न देखकर पिट ने १७६८ में लार्ड प्रीवीसील का पद त्याग दिया। उनके मंत्रिमंडल का अंत हो गया। अपनी दुर्बल स्थिति में भी पिट पार्लियामेंट के कामों में रुचि लेते रहे। १७६६ और १७७० के बीच पार्लमेंट की निर्वाचन प्रणाली में सुधार के उन्होंने प्रस्ताव किए। इस प्रसंग में उन्होंने कहा था कि शताब्दी का अंत होते होते या तो पार्लियामेंट स्वयं सुधार कर लेगी या बाहरी शक्तियाँ उससे यह सुधार करा लेंगी। मिडिलसेक्स से विल्कीज का बार बार निर्वाचन होने पर उसके निर्वाचन को रद्द करने की निर्वाचकों की स्वतंत्रता की विषयक कामंस सभा के घातक कार्य का १७६९ में पिट ने दृढ़तापूर्वक प्रतिवाद किया। उन्होंने भारतवर्ष के शासन की समस्या पर भी विचार किया और १७७३ में य स्पष्ट मत व्यक्त किया कि उस देश पर शासनभार इंग्लैंड की सरकार के स्वयं संभालने पर ही असंगतियाँ दूर हो सकेंगी। अमरीका के मामले में वह शांति और समझौते की नीति के समर्थक थे। अमरीका के विरोधी और हिंसात्मक कार्यों के कारण बोस्टन बंदरगह को बंद करने के सरकारी प्रस्ताव का १७७४ में पिट ने विरोध किया। अमरीकावासियों को संतुष्ट करने की दृष्टि से अगले वर्ष पिट ने पार्लियामेंट में यह प्रस्ताव रखा कि अमरीका पर लगाए कर रद्द कर दिए जाए और उपनिवेशों की धारासभाओं के हाथ में ही कर लगाने के निर्णय का अधिकार रहे। किंतु राजा के हठ के कारण उनकी कोई भी बात नहीं मानी गई। पिट अमरीका से संबंधविच्छेद और साम्राज्य के विघटन के विरोधी थे। १७७७ में अमरीका में अंग्रेज सेनाध्यक्ष बर्गोयन क पराजय और अमरीका तथा फ्रांस की संधि के बाद इस संबंध में ७ अप्रैल, १७७८ को उन्होंने अपने विचार अत्यंत प्रभावशाली शब्दों में लार्डसभा में व्यक्त किए। दुर्बल तो थे ही वे भाषण के बीच में ही बेहोश हो गए। उपचार के लिये उन्हें हेज ले जाया गया। पर वे फिर उठ न सके। अपने ही मकान में ७० वर्ष की आयु में ११ मई, १७७८ को उनकी मृत्यु हो गई। वेस्टमिंस्टर के गिरजाघर में सार्वजनिक रूप में उनका अंतिम संस्कार हुआ। उनके ऋण के भुगतान के लिए पार्लियामेंट ने बीस हजार पौंड प्रदान किए और उनके उत्तराधिकारियों को चार हजार पौंड की वार्षिक पेंशन दी। पिट महान् देशभक्त थे। इंग्लैंड की कीर्ति और सम्मान की वृद्धि में वह सतत प्रयत्नशील रहे। भ्रष्टाचार के वे परम विरोधी थे। उनका सार्वजनिक जीवन निष्कलंक रहा। उनकी नीयत और ईमानदारी में संदेह करनेवाले व्यक्ति कम ही थे। पिट में कुछ दोष भी थे। उनमें अहं की भावना प्रबल थी। तड़क-भड़क और दिखावा उनको पसंद था। सादगी से वह दूर ही रहते थे। उसके भाषणों और वार्तालाप में नाटकीय कृत्रिमता रहती थी। अपने कटु व्यवहार से वे कभी-कभी सहयोगियों को रुष्ट कर देते थे। किंतु उनके ये दोष उनकी देशसेवा में कभी बाधक नहीं हुए। अपनी योग्यता और दूरदर्शिता से उन्होंने देश को महान् संकट से उबारा। उनकी सफलताएँ भी महान् थीं। नि:संदेह अपने समय में पिट इग्लैंड के सर्वश्रेष्ठ देशभक्त, वक्ता और राजनीतिज्ञ थे। (त्रिलोचन पंत).

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