चैडविक, जेम्स इंग्लैंड के भौतिक वैज्ञानिक थे। इनका जन्म २० अक्टूबर, सन् १८९१ को मैंचेस्टर में हुआ। इन्होंने मैंचेस्टर विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई। सन् १९११ के बाद लगभग १० वर्ष तक इन्होंने देश विदेश की प्रयोगशालाओं में परमाणु विघटन संबंधी समस्याओं पर शोधकार्य किए। सन् १९२३ में ये कैवेंडिश प्रयोगशाला में सहायक डायरेक्टर और १९३५ में लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् १९२७ में ये रायल सोसाइटल के सदस्य चुने गए। सन् १९४५ में इन्हें 'सर' की उपाधि मिली। सन् १९४८ से ये मास्टर ऑव गोन्विल ऐंड केयस कालेज, केंब्रिज, के पद पर कार्य कर रहे हैं।

अनुसंधानकार्य- सन् १९३०-३२ में बोथे और बेकर ने बेरिलियम पर ऐल्फा कणों की बौछार फेंककर यह दिखलाया कि इनके आघात से बेरिलियम में से शक्तिशाली किरणें निकलती हैं। सन् १९३२ में चैडविक ने इन किरणों के गुणों की परख करके यह सिद्ध किया कि वास्तव में ये प्रकाशकिरण अथवा गामाकिरण की जाति की नहीं हैं, बल्कि ये नन्हें-नन्हें कणों की बौछार हैं, जिनमें किसी तरह का भी विद्युदावेश वर्तमान नहीं है। इन विद्युत्-रहित कणों का भारत प्रोटॉन के भार के बराबर होता है। चैडविक ने इन्हे 'न्यूट्रॉन' नाम दिया। न्यूट्रॉन की खोज ने परमाणु नाभिक की रचना का सही रूप भी प्रदान किया कि हीलियम के नाभिक में २ प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन हैं, तथा लीथियम के परमाणु नाभिक में ३ प्रोटॉन और ४ न्यूट्रॉन हैं। संक्षेप में, यदि तत्व की परमाणुसंख्या ८ और परमाणुभार, अ (A) है, तो उसके नाभिक में स (Z) प्रोटान होंगे और अ-स (A-Z) न्यूट्रॉन उपस्थित होंगे। परमाणु विघटन तथा परमाणु विखंडन (फिशन, Fission) के प्रयोगों के लिये न्यूट्रॉन विशेष महत्वपूर्ण साबित हुए क्योंकि विद्यतद्य-रहित होने के कारण ये परमाणु नाभिक में सहज ही प्रविष्ट कर जाते हैं। न्यूट्रॉन की खोज के उपलक्ष में चैडविक को सन् १९३५ में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। (भानु प्रताप सिंह)