चूना कैलसियम का ऑक्साइड है और प्रकृतिक में असंयुक्त नहीं पाया जाता। इसके लवण, कैलसियम कार्बोनेट और कैलसियम सल्फेट, प्रचुरता से पाए जाते हैं। गृहनिर्माण में जोड़ाई के लिये प्रयुक्त होनेवली वस्तुओं में यह प्राचीनतम है, किंतु अब इसका स्थान पोर्टलैंड सीमेंट लेता जा रहा है। चूने का निम्नलिखित दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है :
१. साधारण चूना या केवल चूना, २. जल चूना (Hydrauliclime)।
शुद्ध चूने के गारे में हवा का कार्बन डाइऑक्साइड संयुक्त होकर कैलसियम कार्बोनेट बनाता है, जिससे यह जमता और कठोर हो जाता है। मोटी दीवार बनाने में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि आंतरिक भागवाले चूने को कैलसियम कार्बोनेट में परिवर्तितहोने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं होता। इस कारण ऐसा गारा ईटों को ठीक से जोड़ता नहीं। भीतरी दीवारों पर पतला पलस्तर करने और पतली दीवारों की जुड़ाई के लिये ही यह उपयुक्त होता है।
चूने में दानेदार बालू मिला देने से इसके जोड़ने के गुण में वृद्धि हो जाती है। इससे वायु के प्रवेश के लिये पर्याप्त रिक्त स्थान प्राप्त होता है। सीमेंट और चूने का गारा भी काम में लाया जाता है। चूने से संकोचन और दरारें कम होती और चार भाग सीमेंट में एक भाग चूना मिलाने से बिना दृढ़ता कम किए व्यवहार्यता बढ़ जाती है। गारे में १ भाग सीमेंट, ३ भाग बालू के स्थान पर १ भाग सीमेंट १ भाग चूना ६ भाग बालू रहना अच्छा है। चूने में सूर्खी मिलाने और चक्की में पीसने के इसकी जलदृढ़ता (hydraulicity) बढ़ जाती है। ऐसा चूना उत्तर प्रदेश के देहरादून और मध्य प्रदेश के सतना में अधिकांश पाया जाता है।
जलाकर चूना बनाने के लिये आवश्यक कंकड़ उत्तर भारत के मैदानी भागों में सतह से कुछ फुट नीचे पाए जाते हैं। (जय कृन)