चुटु सातवाहन साम्राज्य के छिन्न भिन्न हो जाने के पश्चात् जो राज्य बने उनमें चुटु उस समय सबसे अधिक शक्तिशाली थे। इनका राज्य कुंतल (दक्षिणी पठार के दक्षिण-पश्चिम) में था। इनका संबंध सातवाहनों के सामंत (महाभोजों) से था। कुछ विद्वान् इनकी ना उत्पत्ति बतलाते हैं और कुछ चुटुकुल को सातवाहन कुल की शाखा बतलाते हैं। किंतु इन मतों के लिये सुनिश्चित प्रमाण का अभाव है। प्रारंभ में ये सातवाहनों के सामंत के रूप में शासन करते रहे होंगे। चुटुकडानंद ने, जिसके सिक्के कारवार में उपलब्ध हुए हैं, यज्ञसातकर्णि के बाद सातवाहनों की शक्ति के ्ह्रास का लाभ उठाकर कुंतल में अपना राज्य स्थापित किया। इस वंश के हारीतिपुत्र विष्णुकड चुटुकुलानंद साकर्णि का वनवासि का अभिलेख तीसरी शताब्दी के पूर्वार्ध का है। कुछ विद्वान् कन्हेरी के एक अभिलेख में आए नामों के समीकरण के आधार पर, जो सर्वमान्य नहीं है, चुटु लोगों का अधिकार उत्तर में अपरांत तक मानते हैं। इसी प्रकार अनंतपुर और चुद्दपह से प्राप्त हारीति नाम के सिक्कों के आधार पर कुछ विद्वान् चुटु लोगों का अधिकार पूर्व की ओर फैला हुआ बतलाते हैं। चौथी शताब्दी के पूर्वार्ध में मलवल्लि के अभिलेख से इस वंश के श्विस्कंदवर्मन् और उनके पूर्ववर्ती (संभवत: पिता) विष्णुकंड्डचुटुसातकर्णि का नाम मिलता है। इस समय ये संभवत: पल्लवों के सामंत बन गए थे। चौथी शताब्दी के मध्य में कदंब नरेश मयूरशर्मन् ने कुंतल पर अधिकार कर चुटुवंश का अंत किया। चुटुकुल के राज्य में शासनव्यवस्था सातवाहनों की व्यवस्था से अभिन्न थी। करों के नाम वही हैं। इस वंश के नरेशों की उपाधि राजन् थी। राज्य आहारों में विभक्त था। हारीतिपुत्र नाम सातवाहनों के काल के सदृश ही मातृपरक सामाजिक व्यवस्था का परिचायक है। (लल्लन जी गोपाल)