चीनी भाषा और साहित्य संसार की भाषाओं का वर्गीकरण अफ्रीका खंड, यूरेशियाखंड, प्रशांत महासागरीयखंड और अमरीकाखंड नाम के चार विभागों में किया गया है। इनमें से यूरेशियाखंड में चीनी भाषा का अंतर्भाव होता है। इस खंड के अंतर्गत निम्नलिखित भाषापरिवार हैं : सेमेटिक, काकेशस, यूरालअल्ताइक, एकाक्षर, द्रविड, आग्नेय, भारोपीय और अनिश्चिम। इनमें चीनी एकाक्षर परिवार की भाषा गिनी जाती है। स्यामी, तिब्बती, बरमी, म्याओ, लोलो और मोन-ख्मेर समूह की भाषाएँ भी इसी परिवार में शामिल हैं।
चीनी लिपि तथा भाषा - चीनी लिपि, जो संसार की प्राचीनतम लिपियों में से है, चित्रलिपि का ही रूपांतर है। इसमें मानव जाति के मस्तिष्क के विकास की अद्भुत् कहानी मिलती है - मानव ने किस प्रकार मछली, वृक्ष, चंद्र, सूर्य आदि वसतुओं को देखकर उनके आधार पर अपने मनोभावों की व्यक्त करने के लिये एक विभिन्न चित्रलिपि ढूँढ़ निकाली। कितने परिवर्तनों के बाद इसका अंतिम रूप निश्चित हुआ होगा, यह जानने के साधन आज इतिहास में विलीन हैं लेकिन इस लिपि के अध्ययन से इसकी वैज्ञानिकता और व्यवस्था स्पष्ट है। ईसवी सन् के १७०० वर्ष पूर्व से लगाकर आजतक उपयोग में आनेवाले चीनी शब्दों की आकृतियों में जो क्रमिक विकास हुआ है उसका अध्ययन इस दृष्टि से बहुत रोचक है।
चीनी लिपि की विभिन्न शैलियाँ - हुनान प्रांत में अनयांग की खुदाई के समय कछुओं की अस्थियों पर शांगकालीन (१७६६-११२२ ई.पू.) जो लेख मिले हैं उनसे पता लगता है कि आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व चीन के लोग लिखने की कला से परिचित थे। इस प्रांत के निवासियों का विश्वास था कि इन अस्थियों में जादू है। इन्हें आग पर तपाने से इनपर जो दरारें पड़ जाती थीं उन्हें देखकर पंडित लोग भविष्य का बखान करते थे। कछुओं की अस्थियों के अतिरिक्त, पशुओं की टाँगों और कंधों की हड्डियों पर भी लेख लिखे जाते थे। 'चू' राजवंशों के काल में (११२२-२२१ ई.पू.) चीन निवासी काँसे के बर्तनों पर लिखने लगे थे। इस का में चीनी भाषा में बहुत से नए वर्णो का समावेश किया गया। अब बाँस या लकड़ी की नुकीली कलम की जगह बालों के बने ब्रुश से लोग लिखने लगे थे। क्रमश: उत्तर में चीन की बड़ी दीवार से लेकर दक्षिण की ओर ह्वाई नदी की घाटी तक चीनी लिपि का प्रचार बढ़ा। इसके पश्चात् 'छिन' राज्यकाल (२२१-२०६ ई.पू.) में सम्राट् शिह ह्वांग ने चीनी लिपि को एक रूप देने के लिय चीन भर में छिन लिपि का प्रचार किया। लेकिन इस लिपि के कठिन होने के कारण सरकारी फर्मानों के लिखने पढ़ने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिये इस समय 'लि' लिपि का प्रचार किया गया जिसमें मुड़ी हुई रेखाओं और गोलाकार कोणों के स्थान पर कोण की सीधी रेखाएँ बनाई जान लगी। इस समय काँसे की जगह बाँस की पट्टियों पर लिखने लगे। इस प्रकार चीनी लिपि को सुव्यवस्थित और एकरूप बनाने के लिये चीन के लोग लगातार परिश्रम करते रहे। 'हान' राजवंशों (२०६ ई.पू. से २२१ ई.) और छिन राजवंशों के काल (२६५-४२० ई.) में घसीट और शीघ्रलिपि शैली का प्रचार बढ़ा। ईसवी सन् की चौथी शताब्दी में सुलेखक वांग शिह-छि ने सुंदर अक्षरोंवाली एक आदर्श शैली को जन्म दिया जिससे अधिक व्यवस्थित, सुडौल और चौकोर अक्षर लिखे जाने लगे। आज भी लिखने की यही शैली चीन में प्रचलित है।
एकाक्षरप्रधान भाषा - चीनी एकाक्षरप्रधान भाषा मानी जाती है, यद्यपि ध्यान रखने की बात है कि उसके एक बार में बोले जानेवाले शब्द में एक या एक से अधिक वर्ण या अक्षर हो सकते हैं। हिंदी या अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति चीनी ध्वन्यात्मक भाषा नहीं है, अतएव इसमें एक एक शब्द या भाव के लिये अलग अलग संकेतात्मक आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
वर्णमाला के अभाव में इस भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये लिखा जानेवाला वर्ण या अक्षर अपने आप में पूर्ण होता है और विभिन्न उपसर्ग या प्रत्यय न लगने से इन वर्णों के मूल में परिवर्तन नहीं होता। हिंदी, अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति यहाँ विभिन्न प्रत्ययों या कारकचिह्नों की भरमार नहीं रहती जिससे संज्ञा सर्वनाम ओर विशेषणों मे विभक्ति प्रत्ययों के साथ परिवर्तन नहीं होता। उदाहरण के लिये लड़का लड़के और लड़कों- इन विभिन्न रूपों के लिये चीनी में एक ही वर्ण लिखा जाता है- हाय त्स। काल, वचन, पुरुष और स्त्रीलिंग पुंल्लिंग का भेद भी यहाँ नहीं है, इस दृष्टि से चीनी भाषा का बोलना अपेक्षाकृत सरल हैं। कुछ शब्दों का उच्चारण करते हुए ऊँचे नीचे सुरभेद (चीनी में इसे शंग कहते हैं) का ध्यान अवश्य रखना पड़ता है। जैसे, चीनी में चू शब्द से सूअर, बाँस, स्वामी और रहना, इन चार अर्थो का बोध होता है। लेकिन जब हम चू शब्द का इसके विशिष्ट सुरभेद के साथ उच्चारण करते हैं तभी हमें अपेक्षित अर्थ का ज्ञान होता है।
लिखावट की कठिनाइयाँ - ऊपर उल्लेख हो चुका है कि चीनी भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये अलग अलग आकृति बनानी पड़ती है। सन् १७१६ में प्रकाशित चीनी भाषा के सबसे बड़े कोश में इस प्रकार के ४० हजार वर्ण या शब्दचिह्न दिए गए हैं, यद्यपि इनमें से लगभग ६-७ हजार ही पिछले कई वर्षो से काम में आते रहे हैं। जिन वर्णो की आकृति बनाते समय ऊपर नीचे बहुत से रेखाचिह्न लगाने पड़ते हैं, उन वर्णो का लिखना कठिन होता है। एक वर्ण में एक बार में अधिक से अधिक लगभग ३३ रेखाचिह्न तक रहते हैं और यदि भूल से कोई चिह्न इधर उधर हो गया तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। चित्रलिपि के साथ चीनी लिपि का संबंध होने के कारण कोई अच्छा चित्रकार ही चीनी के सुंदर अक्षर लिख सकता है। इन अक्षरों को सीखने के लिए उसका उच्चारण, लिखावट और उनके अंर्थ का ध्यान रखना आवश्यक है, अतएव चीनी लिपि का सीखना काफी कठिन है।
कभी कभी एक वर्ण के स्थान पर दो वर्णो के संयोग से भी चीनी शब्द बनाए जाते हैं। जैसे, 'प्रकाश' के लिये सूर्य और चंद्रमा, 'अच्छा' के लिये स्त्री और पुत्र, 'पुरुष' के लिये खेत और ताकत, 'घर' के लिये सूअर और छत, 'शांति' के लिये घर में बैठी हुई स्त्री, 'मित्रता' के लिये दो हाथ, तथा 'वंश' के लिये स्त्री और जन्म का सांकेतिक चिह्न बनाया जाता है। कभी विभिन्न अर्थवाले दो वर्णो के संयोग से बननेवाले शब्दों का अर्थ ही बदल जाता है, यथा-
श्वे= अध्ययन, वन= लिखना, श्वेवन= साहित्य; छिंग= हरा, न्येन= वर्ष, छिंगन्येन= युवावस्था; मिंग= चमकीला, ट्येन= आकाश, मिंगट्येन= कल; शी= पश्चिम, हुंग= लाल, शिह= फल, शी हुंग शिह= टमाटर; त्स= अपने आप, लाय= आना, श्वे= पानी, पी= कलम, त्स लाय श्वे पी= फाउंटेन पेन;= चुंग= मध्य, ह्वा= फूल, रेन= आदमी, मिन= जनता, कुंग= साधारण, ह= एकता, का= देश, चुंग ह्वा रेन मिन कुंग ह को= चीनी लोक जनतंत्र।
भाषा को सरल बनाने के प्रयत्न - भावों को व्यक्त करने की सामर्थ्य, प्रवाहशीलता, व्याकरणपद्धति, और शब्दकोश की दृष्टि से चीनी भाषा संसार की समृद्ध भाषाओं में गिनी जाती है। लेकिन कंपोजिंग, टाइपिंग, तार भेजना, समाचारपत्रों को रिपोर्ट भेजना, कोशनिर्माण और प्रौढ़-शिक्षा-प्रचार आदि की दृष्टि से यह काफी क्लिष्ट है, इसलिये प्राचीन काल से ही इस भाषा के संबंध में संशोधन परिवर्तन होते रहे हैं।
ईसवी सन् की दूसरी शताब्दी के बाद चीन में भारतीय बौद्ध साहित्य का प्रवेश होने पर चीनी भाषा के वर्णोच्चारण के प्रामाणिक ज्ञान की आवश्यकता प्रतीत हुई। लेकिन बौद्ध धर्म संबंधी हजारों पारिभाषिक शब्दों का चीनी में अनुवाद करना संभव न था। अतएव इन शब्दों को चीनी चीनी में अक्षरांतरित किया जाने लगा। जैसे, बोधिसत्व को फूसा, अमिताभ को अमि तो फो, शाक्यमुनि को शिह जा मोनि, स्तूप को था, गंगा को हंङ् ह और जैन को चा एन लिखा जाने लगा।
चीनी को रोमन लिपि में लिखने के प्रयास का इतिहास भी काफी पुराना है। इसके अतिरिक्त पिछले ६० वर्षो से इस लिपि को ध्वन्यात्मक रूप देने के प्रयत्न भी होते रहे हैं। सन् १९११ में पीकिंग बोली के उच्चरण की आदर्श मानकर इस प्रकार का प्रयत्न किया गया। सन् १९१९ में ४ मई के साहित्यिक आंदोलन के पश्चात् दुरूह क्लासिकल भाषा (वन्येन) की जगह बोलचाल की भाषा (पाय् ह्वा) को प्रधानता दी जाने लगी।
सन् १९५१ में जनमुक्ति सेना के चीनी शिक्षक छी च्येन ह्वा ने अपढ़ मजदूरों, किसानों और सैनिकों को अल्प समय में चीनी सिखाने के लिये नई पद्धति का आविष्कार किया। लेकिन लिखने की कठिनाई इससे हल न हुई। इस कठिनाई को दूर करने के लिये नए चीन की केंद्रीय जन सरकार ने चीनी के २००० उपयोगी शब्द चुने और उनकी सहायता से पाठ्यपुस्तकें तैयार की गई। पहले किसी शब्द के उच्चारण से एक से अधिक अर्थो का बोध होता था, या बहुत से शब्द एक से अधिक प्रकार से लिखे जाते थे, लेकिन अब यह बात नहीं है। पुराने शब्दों को सरल बनाने के साथ कुछ नए शब्दों का भी आविष्कार किया गया है। चीन की सरकार ने पीकिंग बोली को आदर्श मानकर २६ अक्षरों की वर्णमाला तैयार कर चीनी लिपि को ध्वन्यात्मक रूप दिया है जिससे चीनी का सीखना सरल हो गया है। पहले यदि २००० शब्द सीखने में ४०० घंटे लगते थ तो अब केवल १०० घटों में इतने ही शब्दों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
चीनी साहित्य - चीनी साहित्य अपनी प्राचीनता, विविधता और ऐतिहासिक उललेखों के लिये प्रख्यात है। चीन का प्राचीन साहित्य 'पाँच क्लासिकल' के रूप में उपलब्ध होता है जिसके प्राचीनतम भाग का ईसा के पूर्व लगभग १५वीं शताब्दी माना जाता है। इसमें इतिहास (शू चिंग), प्रशस्तिगीत (शिह छिंग), परिवर्तन (ई चिंग), विधि विधान (लि चि) तथा कनफ्यूशियस (५५२-४७९ ई.पू.) द्वारा संग्रहित वसंत और शरद्विवरण (छुन छिउ) नामक तत्कालीन इतिहास शामिल हैं जो छिन राजवंशों के पूर्व का एकमात्र ऐतिहासिक संग्रह है। पूर्वकाल में शासनव्यवस्था चलाने के लिये राज्य के पदाधिकारियों को कनफ्यूशिअस धर्म में पारंगत होना आवश्यक था, इससे सरकारी परीक्षाओं के लिये इन ग्रंथों का अध्ययन अनिवार्य कर दिया गया था।
कनफ्यूशिअस के अतिरिक्त चीन में लाओत्स, चुआंगत्स और मेन्शियस आदि अनेक दार्शनिक हो गए हैं जिनके साहित्य ने चीनी जनजीवन को प्रभावित किया है।
जनकवि चू य्वान - चू य्वान् (३४०-२७८ ई.पू.) चीन के सर्वप्रथम जनकवि माने जाते हैं। वे चू राज्य के निवासी देशभक्त मंत्री थे। राज्यकर्मचारियों के षड्यंत्र के कारण दुश्चरित्रता का दोषारोपण कर उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया गया। कवि का निर्वासित जीवन अत्यंत कष्ट में बीता। इस समय अपनी आंतरिक वेदना को व्यक्त करने के लिये उन्होंने उपमा और रूपकों से अलंकृत 'शोक' (लि साव) नाम के गीतात्मक काव्य की रचना की। आखिर जब उनके कोमल हृदय को दुनिया की क्रूरता सहन न हुई तो एक बड़े पत्थर को छाती से बाँध वे मिली (हूनान प्रांत में) नदी में कूद पड़े। अपने इस महान् कवि की स्मृति में चीन में नागराज-नाव नाम का त्यौहार हर साल मनाया जाता है। इसका अर्थ है कि नावें आज भी कवि के शरीर की खोज में नदियों के चक्कर लगा रही हैं।
थांग कालीन कविता - थांग राजाओं का काल (६००-९०० ई.) चीन का स्वर्णयुग कहा जाता है। इस युग में काव्य, कथा, नाटक और चित्रकला आदि में उन्नति हुई। वास्तव में चीनी काव्यकला 'प्रशस्ति गीत' से आरंभ हुई, चू युवान् की कविताओं से उसे बल मिला और थांगयुग में उसने पूर्णता प्राप्त की। इस युग की ४८,९०० कविताओं का संग्रह सन् १९०७ में ३० भागों में प्रकाशित हुआ है। इस कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, विरह, राजप्रंशसा तथा बौद्ध और ताओ धर्म के वर्णनों की मुख्यता है। संक्षिप्तता चीनी काव्य का गुण माना जाता है, इसलिये लंबे ऐतिहासिक काव्य चीन में प्राय: नहीं लिखे गए। चित्रकला की भाँति सांकेतिकता इस कविता का दूसरा गुण रहा है। चीनी वाक्यावली में विभक्ति, प्रत्यय, काल और वचनभेद, आदि के अभाव में पूर्वोपर प्रसंग आदि से ही काव्यगत भावों को समझना पड़ता है, इसलिये चीनी कविता को हृदयंगम करने में कुछ अभ्यास की आवश्यकता है।
लि पो (७०५-७६२ ई.) इस काल के एक महान् कवि हो गए हैं। बहुत दिनों तक वे भ्रमण करते रहे, फिर कुछ कवियों के साथ हिमालय प्रस्थान कर गए। वहाँ से लौटकर राजदरबार में रहने लगे, लेकिन किसी षड्यंत्र के कारण उन्हें शीघ्र ही अपना पद छोड़ना पड़ा। अपनी आंतरिक व्यथा व्यक्त करते हुए कवि ने कहा है :
मेरे सफेद होते हुए वालों से एक लंबा, बहुत लंबा रस्सा बनेगा,
फिर भी उससे मेरे दु:ख की गहराई की थाह नहीं मापी जा सकती।
एक बार रात्रि के समय नौकाविहार करते हुए, खुमारी की हालत में, कवि ने जल में प्रतिबिंबित चंद्रमा को पकड़ना चाहा, लेकिन वे नदी में गिर पड़े ओर डूब कर मर गए।
तू फू (७१२-७७० ई.) इस काल के दूसरे उल्लेखनीय महान् कवि हैं। अपनी कविता पर उन्हें बड़ा गर्व था। युद्ध, मारकाट, सैनिक शिक्षा आदि का चित्रण तू फू ने बड़ी सशक्त शैली में किया है। उनके समय में चीन पतन की ओर जा रहा था जिससे सामाजिक जीवन अस्तव्यस्त हो गया था। विदेशी आक्रमण के कारण राजकरों में वृद्धि हो गई थी और सैनिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गई थी। तत्कालीन शासकों की दशा का चित्रण करते हुए कवि ने लिखा है :
'मैं अपने सम्राट् को याआ' और शुन के समान महान् बनाना चाहता हूँ, और अपने देश के रीतिरिवाज पुन: स्थापित करना चाहता हूँ, अहपने अंतिम दिनों में भयंकर बाढ़ आने पर तू फू दस दिन तक वृक्षों की जड़ें खाकर निर्वाह करते रहे। उसके बाद मांस मदिरा का अत्यधिक सेवन करने के कारण उन्हें अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।
पो छू यि (७७२-४८६ ई.) इस युग के दूसरे श्रेष्ठ कवि हैं। स्वभाव से वे बहुत रसिक थे। लाओत्स के 'ताओ ते चिंग' पर व्यंग्य करते हुए कवि ने कहा है : 'जो जानता है वह कहता नहीं, और जो कहता है वह जानता नहीं।'
ये लाओ त्स के वाक्य हैं।
लेकिन इस हालत में स्वयं लाओत्स के
'पाँच हजार से अधिक शब्दों का' क्या होगा?
पो छू यि की माँ फूलों का सौंदर्य निरीक्षण करते करते कुएँ में गिर पड़ी थी, इसपर सहृदय कवि की लेखनी द्वारा फूलों की प्रशंसा में और 'नया कूप' नाम की कविताएँ लिखी गईं। 'चिरस्थायी दोष' नाम की कविता में कवि ने सम्राट् मिंग ह्वांग (६८५-७६२ ई.) के अध:पतन का मार्मिक चित्र उपस्थित किया है। 'कोयला बेचनेवाला', 'राजनीतिज्ञ', 'टूटी बाँहवाला बूढ़ा' आदि व्यंग्यप्रधान कविताएँ भी कवि की लेखनी से उद्भूत हुई हैं। भाषा की सरलता के कारण उनकी कविताओं ने जनसाधारण में प्रसिद्ध पाई है।
आधुनिक काव्य - विषय, भाव और आकार प्रकार की दृष्टि से प्राचीन कविता का क्षेत्र बहुत सीमित था। एक कविता में प्राय: ४ या ८ पंक्तियाँ रहती थी जो अलग अलग नहीं लिखी जाती थी, विरामचिह्न भी इसमें नहीं रहते थे जिससे कविता समझने में कठिनाई होती थी। प्रथम श्वियुद्ध के बाद भारत की भाँति चीन में भी आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन हुए जिससे साहित्यिक क्षेत्र में जागृति दिखाई देने लगी। ४ मई, १९१९ के क्रांतिकारी आंदोलन के उपरांत चीनी कविता में जनसाधारण के संघषों के चित्रण का सूत्रपात हुआ।
चीनी कविता को नवीन रूप देनेवालों में को मो-रो का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने प्रकृति, धरती, समुद्र, सूर्य आदि की प्रशंसा में एक से एक सुंदर कविताओं की रचना कर चीनी साहित्य को आगे बढ़ाया है। सन् १९२१ में प्रकाशित 'देवियाँ' नाम के इनके कवितासंग्रह में विद्रोह के साथ साथ आशावाद स्पष्ट दिखाई देता है। इसी समय च्यांग क्वांग-त्स ने रूस की अक्टूबर क्रांति पर प्रेरणादायक कविताओं की रचना की। इन कविताओं में हाथ में बंदूक लेकर शत्रु से लड़ने के लिये कवि ने अपने देश के नौनिहालों को ललकारा है।
सन् १९३० में चीनी में वामपक्षीय लेखकसंघ की स्थापना हुई। इस समय कोमिंगतांग सरकार ने अनेक तरुण साहित्यिकों को गिरफ्तार करके मौत के घाट उतार दिया। इनमें ह् ये-फिंग (सुप्रसिद्ध लेखिका तिङ् लिङ् के पति) और यिन् फू नामक कवियों के नाम उल्लेखनीय हैं। सन् १९३१ में चीनी लेखकों का एक संघ बना जिससे प्रेरणा प्राप्त कर यू फेंग, त्सांग के- छिया, वांग या- फिंग और ट्येन छूयेन आदि कवियों ने अकाल, भुखमरी, किसानों और जमींदारों का संघर्ष, विद्रोह, हड़ताल आदि अनेक सामयिक विषयों पर रचनाएँ प्रस्तुत कीं।
आय छिंग आजकल के लोकप्रिय कवि माने जाते हैं। उन्होंने 'वह सोया है', 'काली लड़की गाती है', 'जहाँ काले आदमी रहते हैं' आदि भावपूर्ण कविताएँ लिखीं। 'वह दूसरी बार प्राणों की तिलांजलि देता है' नामक कविता में कवि न ए घायल किसान सिपाही का मार्मिक चित्र उपस्थित किया है जो नगर की सड़क पर बड़े गर्व से कदम उठाकर चलता है। युद्धोत्तरकालीन कवियों में य्वान् शुइ-पो, लि चि, हो छि-फांग आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। य्वान् शुइ-पो, लि चि, हो छि-फांग आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। य्वान् शुई पो ने लोकगीत की शैली में 'बिल्लियाँ' नामकी व्यंग्यात्मक कविता की रचना की। लिचि की 'अंग क्वेइ और लि श्यांग श्यांग' नामक कविता चीन में अत्यंत प्रसिद्ध है, यह भी गीत शैली में लिखी गई है। सन् १९५४ की भयंकर बाढ़ का सामना करने के लिये वू हान् की जनता को जोश दिलाते हुए हो छि-फांग ने एक भावपूर्ण कविता लिखी। इसी तरह आय छिंग, शिह फांग-यू और लि ट्येन-थिन् आदि प्रगतिशील कवियों ने शांतिरक्षा पर सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।
प्राचीन कथासाहित्य - सभ्यता के आदिम काल में ह्वांगहो नदी की उपत्यका में जीवनयापन करते हुए चीन के लोगों को प्राकृतिक शक्तियों के विरुद्ध जोरदार संघर्ष करना पड़ा जिससे इस देश के निवासियों का यथार्थवादी विश्वासों की ओर झुकाव हुआ; भारतवर्ष की भाँति आध्यात्मिक तत्वों और पौराणिककथाकहानियों का विकास यहाँ नहीं हो सका। प्राकृतिक देवी देवताआं के प्रति भय अथवा आदर की भावना से प्रेरित होकर आदिम मानव के मुख से जो स्वाभाविक संगीत प्रस्फुटित हुआ वही आदिम कविता कहलाई। शनै: शनै: मनुष्य ने प्राकृतिक शक्तियों पर विजय पाई, उसका संघर्ष कम होता गया और अवकाश मिलने पर कथा कहानियों की आर उसकी रुचि बढ़ती गई।
प्राचीन चीन में क्लासिकल साहित्य का इतना अधिक महत्व था कि उपन्यासों और नाटकों को साहित्य का अंग ही नहीं माना जाता था। चीनी का 'श्याओ श्वो' शब्द उपन्यास और कहानी दोनों अर्थो में प्रयुक्त होता है। इससे मालूम होता है कि आधुनिक कथा साहित्य का विकास बाद में हुआ।
थांगकालीन कथा साहित्य - थांगकालीन राजवंशों के पूर्व कहानी साहित्य केवल परियों और भूत प्रेत की कहानियों तक सीमित था उसके बाद 'अद्भुत कहानियाँ' (चीनी में छ्वान छि) लिखी जाने लगीं, लेकिन तत्कालीन विद्वानों के निबंधों की तुलना में ये निम्न कोटि की ही समझी जाती थीं। क्रमश: कहानी साहित्य में प्रगति हुई और थांगकाल में चरित्रप्रधान कहानियों की रचना होने लगी। कुछ कहानियाँ क्लासिकल लिखी गई तथा कुछ व्यंग, प्रेम और शौर्यप्रधान। छेन श्वान्-यु ने 'भटकती हुई आत्मा', लि छाओ-वेइ ने 'नागराज की कन्या' और य्वान् छेंग ने 'यिंग यिंग की कहानी' नामक भावपूर्ण प्रेम कहानियों की रचना की। इन दिनों पढ़े लिखे लोग सरकारी परीक्षाएँ पास करके उच्च पद पाने के स्वप्न देखा करते थे और अंत में असफल होने से जीवन से निराश हो बैठते थे- इसका मार्मिक चित्रण पाई शिंग-छ्येन की 'वेश्या की कहानी', लि कुंग-त्सो की 'दक्षिण के उपराज्य की राज्यपाल', शेंग या छिह की 'छिन का स्वप्न' और शेंग छें-त्सि की 'तकिए के नीचे' कहानियों में बड़ी कुशलतापूर्वक किया गया है।
मिंग और मंचू काल में भी कहानी साहित्य लिखा गया। ल्याओ छाई छिह इ (अद्भुत कहानियाँ) मंचू काल की प्रसिद्ध कहानियाँ हैं, लेखक का नाम है फू सुंग-लिंग।
उपन्यास - चीनी उपन्यासों का आरंभ मंगोल राजवंशों के काल से होता है। इस समय युद्ध, षड्यंत्र, प्रेम, अंधविश्वास और यात्रा आदि विषयों पर उपन्यासों की रचना हुई। ले क्वान् चिंग का लिख हुआ सान का चिह येन इ (तीन राजधानियों की प्रेमाख्यायिका) युद्ध प्रधान ऐतिहासिक उपन्यास है जिसमें युद्ध के दृश्य, चतुर सेनापतियों के षड्यंत्र ओर रणकौशल आदि का आकर्षक शैली में वर्णन किया गया है। इसी लेखक का दूसरा उपन्यास शुई हू (जल का तट) है। इसमें सुंगच्यांग और उसके साथियों के कृत्यों का वर्णन है। उस काल में प्रचलित कथा कहानियों के आधार पर लेखक ने बड़े परिश्रमपूर्वक यह रचना प्रस्तुत की है। 'अनिष्ट की पराजय' इस लेखक की तीसरी रचना है जिसमें पेइचाउ के नागरिक वांग त्स के कृत्यों का वर्णन है। वांग त्स ने किसी जादू के बल से विद्रोह किया था लेकिन वह सफल न हो सका।
मिंग काल में अनेक नए उपन्यासों की रचना हुई। छिन फिंग मेइ (सुवर्ण कमल) मिंग काल का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है जिसमें सुंगकालीन भ्रष्ट जीवन का प्रभावशाली चित्रण है। इसके लेखक वांग शिह-छेंग हैं जिनकी मृत्यु १५९३ में हुई। लेखक की मृत्यु के लगभग १०० वर्ष पश्चात् उपन्यास का प्रकाशन हुआ। मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक सामग्री का अध्ययन करने के लिये यह उपन्यास बहुत महत्व का है। सुप्रसिद्ध चीनी यात्री युवान् च्वांग की भारत यात्रा पर आधारित शी यू चि (पश्चिम की यात्रा) इस काल की दूसरी रचना है। इसके लेखक वू छेंग-येन माने जाते हैं; इन्होंने लोकप्रचलित कथाओं को बटोरकर १०० अध्यायों में यह सुंदर उपन्यास लिखा। सरल और लोकप्रिय शैली में लिखी गई इस रचना में सुन वू-कुंग नाम का बुद्धभक्त वानरराज, पश्चिम की ओर प्रयाण करते हुए चीनी यात्री की पद पद पर रक्षा करता है। यू छ्या ओ लि इस काल की एक दूसरी बृहत्काय रचना है; अनेक स्थलों पर इसमें पुनरावृत्ति भी हुई है। यह उपन्यास अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं। इसमें एक शिक्षित युवक की प्रेमकहानी है जो सुंदरियों से प्रेम करता है। पुनर्जन्म और कर्मफल को यहाँ मुख्य कहा गया है। लिएह को च्वान् उपन्यास के लेखक का नाम भी अज्ञात है। लेखक का दावा है कि उसकी इस असाधारण कृति की प्रत्येक घटना यथार्थता पर आधारित है, और इसे उपन्यास की अपेक्षा इतिहास कहना ही अधिक उपयुक्त है। इस काल का दूसरा प्रसिद्ध उपन्यास छिंग ह्वा य्वान् है। सम्राज्ञी वू के राज्य की घटनाओं का इसमें वर्णन है। यह सम्राज्ञी सन् ६८४ में राजसिंहासन पर बैठी और २० वर्ष तक राज्य करती रही। फिंग शान लेंग येन उच्च कोटि की साहित्यिक शैली में लिखा हुआ उपन्यास है। इसमें फिंग और येन नामक दो तरुण विद्यार्थियों की प्रेम कहानी है जो शान और लेंग नाम की कवयित्रियों की साहित्यिक प्रतिभा से आकृश्ट होकर उनसे प्रेम करने लगते हैं। अर तोउ मेइ उपन्यास में पितृभक्ति, मित्रता ओर पड़ोसियों के प्रति कर्तव्य को मुख्य बताया है।
हुंग लौ मंग (लाल भवन का स्वप्न) चीन का अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास है जो मंचू काल में ईसवी सन् की १७वीं शताब्दी में लिखा गया था। इसके लेखक का नाम है त्साओ श्यवे छिन (ई. १७२४-१७६४ ई.) इस उपन्यास का पुराना नाम 'चट्टान की कहानी' था। लेखक ने अनेक पांडुलिपियों के आधार पर बड़े परिश्रम से इसे लिपिबद्ध किया। उपन्यास की प्रेमकथा बोलचाल की सरल और आकर्षक शैली में लिखी गई है। सामंती समाज का सूक्ष्म चित्रण करते हुए यहाँ शासक वर्ग की बुराइयों का पर्दाफाश किया गया है। बीच बीच में हास्य और करुण रस के आख्यान हें जो उच्च कोटि की कविताओं से गुंफित हैं। यह कृति २४ भागों में और ४००० पृष्ठों में प्रकाशित हुई है; इसमें ९ लाख शब्द हैं और ४४८ पात्र। मंचू राजाओं ने इसे उच्छृंखलतापूर्ण और अनैतिक बताकर इसे नष्ट कर देने की षोघणा की थी। इस युग का दूसरा सुप्रसिद्ध उपन्यास है 'विद्वानों का जीवन'। इसके लेखक वू छिंग-त्स (ई. १७०१-१७५४) हैं। ये दोनों ही उपन्यास पिछलें २०० वर्षो से चीन में बड़े चाव से पढ़े जाते रहे हैं और दोनों ही जनतांत्रिक विचारधारा की प्रतिष्ठा में सहायक हुए हैं। मंचू राजाओं के काल में शासकों का भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था और उनमें छोटे छोटे स्वार्थो के लिये युद्ध हुआ करते थे। विद्वान् प्राय: शासकों के नियंत्रण में रहते और सहायता से शासक प्रजा पर मनमाना अत्याचार करते थे। विद्वानों का नैतिक अध:पतन अपनी सीमा को लाँघ गया था। सरकारी परीक्षाएँ पास करके धन और मान प्राप्त करना, बस यही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह गया था। इन्हीं सब बातों का चित्रण कुशल लेखक ने व्यंग्यपूर्ण शैली में किया है।
आधुनिक कथा साहित्य - आधुनिक चीनी साहित्य का आरंभ प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हुआ। युद्ध के कारण आ्थ्राक ओर राजनीतिक क्षेत्रों में जो परिवर्तन हुए उनसे नैतिकता के मापदंड ही बदल गए, जीवन की गति तीव्र हो गई और जीवन में अधिक पेचीदगी और जटिलता आ गई। इसी समय से चीनी साहितय में एक प्रगतिशील यथार्थवादी धारा का जन्म हुआ जिससे चीन के तरुण लेखकों को नया साहित्य सर्जन करने की प्रेरणा मिली।
चीन के गोर्की कहे जानेवाले लु शुन (१८८१-१९३६) आधुनिक चीनी साहित्य में मौलिक कहानियों के जन्मदाता कहे जाते हैं। अपनी लेखनी द्वारा उन्होंने सामंती समाज पर करारे प्रहार किए हैं। कला और जीवन का वे घनिष्ट संबंध स्वीकार करते हैं। लु शुन समाज के नग्न और वीभत्स चित्रण से ही संतोष नहीं कर लेते बल्कि समाजवादी यथार्थता के ऊपर आधारित जीवन के वास्तविक लेकिन आस्थापूर्ण चिद्ध भी उन्होंने प्रस्तुत किए हैं। 'साबुन की टिकिया' कहानी में पितृभक्ति की परंपरागत भावना पर तीव्र प्रहार किया गया है। 'आह क्यू की सच्ची कहानी' लु शुन की दूसरी श्रेष्ठ कृति है जिसमें अपनी 'लाज' को बचाने की हीन मनोवृत्ति पर करारा व्यंग्य है। 'मनुष्यद्वेषी' कहानी में बुद्धिजीवियों के स्वप्नों पर कठोर आघात है। 'मेरा पुराना घर' और 'नए वर्ष का बलिदान' कहानियों में ग्रामीण किसानों का हृदयद्रावक चित्रण है। अनेक महत्वपूर्ण आलोचनात्मक निबंध भी लु शुन ने लिखे हैं।
आधुनिक चीनी साहित्यिक आंदोलन के नेता माओ तुन (जन्म १८९६) अनेक यथार्थवादी उपन्यासों और कहानियों के सफल लेखक हैं। सन् १९२६ से लेकर १९३२ तक इन्होंने 'इंद्रधनुष', 'एक पंक्ति में तीन' और 'सड़क' आदि उपन्यासों की रचना की है। इनका 'मध्यरात्रि' उपन्यास चीनी साहित्य की श्रेष्ठतम कृति मानी जाती है। साम्राज्यवादी शोषण के कारण उद्योग धंधों की कमी से चीन किस संकटापन्न अवस्था से गुजर रहा था, इसका यहाँ मार्मिक चित्रण है। 'बसंत के रेशमी कीड़े' और 'लिन् परिवार की दूकान' नामक कहानियों से माओ तुन को ख्याति मिली है। लाओ श (जन्म १८९७) चीन के दूसरे सुप्रसिद्ध लेखक हैं। इनके 'रिक्शावाला' उपन्यास ने अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है। 'लाओ लि के प्रेम की खोज' और 'खिलाड़ियों का देश' आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। अभी हाल में लाओ श ने 'नामरहित पहाड़ी जिसका नाकरण अब हुआ है' नामक उपन्यास लिखा है। तिङ् लिङ् चीन की क्रांतिकारी महिला हैं। सन् १९२७ से ही इन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। कोमिंगतांग की पुलिस द्वारा अपने पति हू ये-फिंग की निर्मम हत्य कर दिए जाने पर ये कोमिंगतांग सरकार के विरुद्ध जोर से कमा करने लगीं। देशभक्ति के कारण तिङ् लिङ् को जल की यातनाएँ भी सहनी पड़ीं। इनकी 'जल' नामक कहानी में प्रलयकारी बाढ़ को रोकने के लिये किसानों के संघर्ष का सशक्त शैली में चित्रण किया गया है। 'जब मैं लाल आकाश गाँव में थी' नामक कहानी में जापानी सिपाहियों के बलात्कार का शिकार बनी एक नवयुवती का सहानुभूतिपूर्ण चित्र प्रस्तुत है। सन् १९५० में तिङ् लिङ् की उत्तर शान्सी पर 'वायु और सूर्य' नाम की रचना प्रकाशित हुई। 'सांगकान नदी पर सूर्य का प्रकाश' नामक उपन्यास पर इन्हें स्तालिन पुरस्कार दिया गया। इस उपन्यास का विषय भूमिसुधार है जो लेखिका के अनुभव के आधार पर लिखा गया है। पा छिन (जन्म १९०४) ने 'बसंत', 'शरत्' और 'दुर्दांत नदी' आदि सफल उपन्यासों की रचना की है। इन रचनाओं में नवयुवकों के विचारों में अंतविंरोधों के सुंदर चित्रण मिलते हैं। यहाँ जगह जगह सामंती व्यवस्था के प्रति घृणा और क्रांतिकारियों के प्रति आदर का भाव व्यक्त किया गया है। पा छिन की सर्वश्रेष्ठ रचना 'परिवार' है। यह उनकी बाल्यवस्था अनुभवों पर आधारित है। चाओ शु लि (जन्म १९०५) की रचनाओं में किसानों का संघर्ष तथा नए समाज में प्रेम का चित्रण प्रस्तुत है। लेखक ने गाँवों में किसानों की सहकारी संस्थाओं को संगठित करने का अनुभव प्राप्त किया है। चा ओ शु लि की 'श्याओ अ हइ का विवाह' और लि यू त्साय् की 'तुकांत कविताएँ' नाम की कहानियाँ काफी लोकप्रिय हुई हैं। 'लि के गाँव में परिवर्तन' इनका सफल उपन्यास है। अभी हाल में चाओ शु लि का 'सानलिवान गाँव' नाम का एक और सुंदर उपन्यास प्रकाशित हुआ है जिससे उन्हें साहित्यिक जगत् में विशेष ख्याति मिली है। चा ओ शु-लि भाषा के धनी हैं, इनकी भाषा सरल और प्रभावोत्पादक है।
अन्य अनेक उपन्यासकार और कहानी लेखक भी चीन में हुए हैं जिन्होंने जनवादी साहित्य का निर्माण कर मानवता के उत्थान में योग दिया है। चाओ मिंग सन् १९३२ से ही वामपक्षीय लेखकसंघ की सदस्या रही हैं। लेखिका का 'शक्ति का स्त्रोत' उपन्यास उनके कारखानों में काम करने के अनुभवों पर आधारित है। खुंग छ्वये और य्वान् छिंग पति पत्नी हैं, दोनों ने मिलकर 'पुत्रियाँ और पुत्र' नामक एक सशक्त उपन्यास लिखा है जिसमें जापानी सेना के खिलाफ किसान गोरिल्लों के युद्ध का प्रभावशाली वर्णन है। चौ लि-पो (जन्म १९०८) ने अपनी रचनाओं में भूमिसुधार के चित्र प्रस्तुत किए हैं। 'तूफान' नामक उपन्यास पर इन्हें स्तालिन पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है। पिघला हुआ इस्पात चौ लि-पो का एक और सुंदर उपन्यास है जो हाल में ही प्रकाशित हुआ है। का ओ यू-पाओ ने सेना में भर्ती होने के बाद अक्षरज्ञान प्राप्त किया था। उनकी आत्मकथा में उपन्यास जैसा आंनद मिलता है। यांग श्य्वो न 'पर्वत और नदियों के तीन हजार लि' नामक उपन्यास लिखा है जिसमें रेल मजदूरों का चित्रण है। लेइ छ्या ने 'यालु नदी पर वसंत' और आयु बू ने 'पर्वत और खेत' नामक उपन्यासों की रचना की है।
उपन्यासों के साथ आधुनिक कहानी साहित्य की भी यथेष्ट श्रीवृद्धि हुई। अभी हाल में चीनी कहानियों के अंग्रेजी अनुवादों के कुछ संग्रह प्रकाशित हुए हैं। 'घर की यात्रा तथा अन्य कहानियाँ' नामक संग्रह में आय बू, लि छुन्, छि श्यवे-पेइ, लि उ पाइ-यू, मा फंग, लिउ छेन, छुन् छिग, नान तिंग आदि लेखकों की रचनाएँ संमिलित हैं। 'नदी पर उषाकाल तथा अन्य कहानियाँ' और 'नवजीवन का निर्माण' नामक संग्रहों में भी चीन के तरुण लेखकों की रचनाएँ संग्रहीत हैं।
चीनी नाटक - चीनी नाटकों का इतिहास काफी पुराना है। भारतवर्ष की भाँति देवी देवता या राजाओं महाराजाओं के समक्ष किए जानेवाले प्राचीन नृत्य ही इन नाटकों के मूलआधार है। थांग राजवंशों के काल में मिंग ह्वांग नामक सम्राट् ने राजदरबारियों के मनोरंजन के लिये लड़के लड़कियों की नाट्यसंस्था खोली। आगे चलकर विलासप्रिय सुंग राजाओं के काल (९६०-१२७८ ई.) में नाट्यकला की उन्नति हुई, लेकिन इस कला का पूर्ण विकास हुआ मंगोल राजाओं के समय (१२००-१३६८ ई.)। इस युग में एक से एक सुंदर नाटकों की रचना हुई। छ्वान् छु श्यवान त्स छि के ८ भागों में १०० नाटकों का संग्रह छपा है। वांग शि-फू का लिखा हुआ शि श्यांग चि (पश्चिम भवन की कहानी) इस काल के सर्वश्रेष्ठ नाटकों में गिना जाता है। इसमें वायु, पुष्प, हिम और ज्योत्स्ना आदि संबंधी अनेक संवाद प्रस्तुत हैं जिनसे प्रेम और षड्यंत्र की सूचना मिलती है। नाटक की आख्यायिका अत्यंत साधारण होने पर भी बड़े कलात्मक ढंग से रंगमंच पर उपस्थित की जाती है। पात्रों की बोलचाल, उनका उठना बैठना और चलना फिरना आदि क्रियाएँ बड़ी मंद गति और कोमलता के साथ संपन्न होती हैं। छि छुन् श्यांग (चाओ परिवार का अनाथ) इस काल का दूसरा लोकप्रिय नाटक है जिसमें ईसा के पूर्व छठी शताब्दी के एक मंत्री की कहानी है जो अपने शत्रु की हत्या का षड्यंत्र रचता है।
मिंग काल (१३६८-१६४४ ई.) में शिल्प आदि की दृष्टि से नाट्य साहित्य में प्रगति हुई। इस युग की साहित्यिक भाषा में शब्द बहुल सैकड़ों नाटक प्रकाश में आए, कुछ में ४८ अंकों तक का समावेश किया गया। का ओत्स छेंग का लिखा हुआ फी या ची (सितार कहानी) इस काल का श्रेष्ठ नाटक माना जाता है। सन् १७०४ में यह पहली बार खेला गया था। इसके विभिन्न संस्करणों में २४ से लेकर ४२ दृश्य तक प्रकाशित हुए हैं। इसमें राजभक्ति, पितृभक्ति और पतिसेवा का सुंदर चित्रण प्रस्तुत हुआ है।
मंचू राजवंशों के काल (१६४४-१९०० ई.) में चीनी नाट्य साहित्य की लोकप्रियता में वृद्धि हुई। इस समय प्राय: युद्धसंबंधी नाटकों की रचना ही अधिक हुई। 'शाश्वत युवावस्था का प्रासाद' इस काल की एक श्रेष्ठ कृति है जिसे हुंग शेंग ने सन् १६८८ में प्रस्तुत किया। इस नाटक में सम्राट् मिंग ह्वांग और उसकी प्रेमिका यांग युह्वान् की करुण कहानी का सुंदर चित्रण है।
आधुनिक नाट्य साहित्य - नए चीन में जननाट्यों की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई है। वहाँ सैकड़ों तरह के नाटक खेले जाते हैं और नाटकघरों में दर्शकों की भीड़ लगी रहती है। सान छा खौ (तीन सड़कों का बड़ा रास्ता) नामक नाट्य में सुंगकाल की घटना पर आधारित एक षड्यंत्र की कहानी है। सुंग वू कुंग (जादूगर वानर) एक दूसरा लोकप्रिय नाटक है। इसमें रंगमंच पर भीषण युद्ध के साहसपूर्ण दृश्य प्रस्तुत किए गए हैं। अभिनीत होने पर इस नाटक में प्रसिद्ध अभिनेता लिन् शाओ छुन् ने वानर का अभिनय किया था। पीकिंग, उत्तर चीन, शेचुआन, शांसी आदि भिन्न भिन्न प्रांतों के गीतिनाट्य (आपेरा) भी चीन में अत्यंत प्रसिद्ध हैं। पीकिंग के गीतिनाट्य में चीन के सुप्रसिद्ध अभिनेता मे ला फांग ने स्त्रियों का अभिनय किया। इसमें 'मछुओं का प्रतिशोध', 'स्वर्ग में तूफान' 'ग्वाला और गांव की लड़की' आदि नाट्य प्रसिद्ध हैं। चेकियांग गीतिनाट्य शांघाई में बहुत लोकप्रिय है। इसमें स्त्रियाँ ही पुरुष और स्त्री दोनां का अभिनय करती हैं। 'ल्यांग शान पो और चू यिंग थाय' इसका सुप्रसिद्ध नाट्य है। कैंटन गीतिनाट्य कैंटन, हांगकांग, मलाया और इंडोनेशिया में लोकप्रिय हुए हैं।
जननाट्यों की माँग बढ़ जाने से आजकल चीन के तरुण लेखक नाटक लिखने में जुट गए हैं। को मो-रो ने महान् कवि चुयुवान् के चरित पर आधारित सुंदर नाटक की रचना की है। लाओ श ने 'हमारा राष्ट्र सर्वप्रथम है' और माओ तुन ने 'छिंगमिंग त्योहार के पूर्व और पश्चात्' नाटक लिखे हैं। त्साओ यू का 'गर्जन, वर्षा और सूर्योदय' तथा छेन पो छेन का 'लड़कों के लिये काम' नाटक सुप्रसिद्ध हैं। लि छि ह्वा ने 'संघर्ष और प्रतिसंघर्ष', तू इन ने 'नई वस्तुओं के आमने सामने', आन पो ने 'नोमिन नदी में बसंत की बहार', हू ति ने 'लाल खुफिया', शा क फू ने 'हथियारों से', छेन छि-तुंग ने 'दरिया और पहाड़ों के उस पार' तथा श्या येन ने 'परीक्षा' नामक सुंदर नाटकों की रचना कर चीनी साहित्य की समृद्ध बनाया है।
सं.ग्रं.- 'पीपुल्स चाइना', 'चाइना रिकन्स्ट्रक्ट्स', 'चाइनीज लिटरेचर;' एच.ए.गाइल्स : चाइनीज लिटरेचर; (जगदीश चंद्र जैन)