चार्ल्स पंचम (स्पेन का) (१५००-१५५८) पावन रोमन सम्राट् (१५१९-५६) तथा स्पेन का शासक (१५१६-५६)। वह बरगंडी के फिलिप और जुआना का पुत्र था। १५१८ ई. में वह कैस्टिल और ऐरागोन क सार्वभौम शासक बना। १५१९ ई. में उसे हैम्सबर्ग घराने के प्रदेशों का उत्तराधिकार मिला। शीघ्र ही वह रोमन सम्राट् निर्वाचित हुआ। अब उसके अधिकार में एक बृहत् प्रदेश आ गया और उसका साम्राज्य विश्वव्यापी हो गया। इतने विशाल साम्राज्य में उसे केवल कठिनाइयों का ही सामना करना पड़ा। सुधार आंदोलन, फ्रांस के कुचक्र और तुर्कों के आक्रमण, सभी उसे अभिभूत किए हुए थे। धार्मिक जटिलता को दूर करने के लिये उसने १५२१ ई. में वर्म्स के डाइट (Diet-of-worms) को बुलाया और मार्टिन लूथर की उपस्थिति में उसने सभा का स्वयं सभापतित्व किया। आग्सबर्ग का डाइट (१५६०) धार्मिक मतभेदों को दूर करने में असफल रहा, यहाँ तक कि ट्रेंट की कौंसिल (१५४५-६३) भी कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों में मेल न करा सकी। अंतत: प्रोटेस्टेंटों के विरुद्ध श्मेल्काल्डिक युद्धों (१५४६-४७) में यह विजयी हुआ ओर उनके साथ आग्सबर्ग की संधि (१५५५) द्वारा प्रोटेस्टेंटों मत को वैधानिक मान्यता देने की बात स्वीकार की।

इसने फ्रांस के सम्राट् फ्रांसिस प्रथम से संघर्ष किया और उसे परास्तकर पेबिया में बंदी बनाया। १५२७ ई. में रोम को विध्वंस किया और पोप को बंदी बनाया। १५२९ ई. में इसने फ्रांसिस से संधि की और लोंबार्डी को अपने साम्राज्य में मिलाया। एक सुदृढ़ केंद्रीय व्यवस्था लाने के लिये चार्ल्स ने स्पेन की प्रादेशिक कोर्ट को दबाया और इसी वर्ष नेदरलैंड के उठते हुए विद्रोह का दमन किया। जब उसे यह सूचना मिली कि फ्रांसिस ने तुर्कों की सहायता से फिर से संघर्ष छेड़ दिया है तो उसने फ्रांसिस को परास्त कर क्रेयी की संधि करने के लिये विवश किया। इसने जर्मन की रियासतों को दबाया और उन्हें साम्राज्य के नियंत्रण में रखा। उसने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में नेदरलैंड और स्पेनिश उपनिवेशों को अपने पुत्र फिलिप तथा साम्राज्य को फर्डिनेंड को देकर राज्य त्याग दिया और एकांतवास के लिये निकल पड़ा। (गि. शं. मि.)

चार्ल्स षष्ठ पावन रोमन सम्राट् तथा लियोपोल्ड प्रथम का द्वितीय पुत्र। वह स्पेन की राजगद्दी के लिये आस्ट्रिया की ओर से उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। द्वितीय विभाजनसंधि द्वारा वह स्पेन का राजा होने की मान्यता प्राप्त कर सका था किंतु स्पेन के चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु पर लुई चतुर्दश ने विभाजनसंधि को ठुकरा दिया क्योंकि लुई समझता था कि चार्ल्स द्वितीय की अनुपस्थिति में संभवत: दूसरों कोई भी यूरोपीय शक्ति विभाजनसंधि को कार्यान्वित करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती। किंतु उसके अधिकारपद की मान्यता मित्रराष्ट्रों ने दी और जब स्पेनिश उत्तराधिकार युद्ध छिड़ा तो वह स्पेन गया और स्पेन में १७११ तक रहा। तभी उसे रोमन सम्राट् होने का गौरव प्राप्त हुआ। रोमन सम्राट् हो जाने के उपरांत आस्ट्रिया की गद्दी पर उसने अपनी पुत्री मेरिया थेरिसा को बिठाने का प्रयत्न किया। इस उद्देश्य को लेकर उसने यूरोपीय शक्तियों द्वारा प्रेगमैटिक सैंक्शन को मान्यता दिलानी चाही, यद्यपि उसक मृत्य के उपरांत ही प्रेगमैटिक सैंक्शन ठुकरा दी गई। उसके शासनकाल में पैसरोनिट्ज की संधि द्वारा तुर्की युद्धों को समाप्त किया गया।

चार्ल्स षष्ठ उस युग का प्रतिनिधान करता था जब राजवंशीय घराने ही यूरोप की कूटिनीति का संचालन करते थे और राज्य हड़प करने के लिय झूठे दावे खड़े किए जाते थे। चार्ल्स षष्ठ के लिय ऐसी चालें खेलना कोई अस्वाभाविक बात न थी। (गि. शं. मि.)

चार्ल्स सप्तम् (१६९७ से १७४५) होली रोमन सम्राट् और बवेरिया का इलेक्टर तथा बवेरिया के भूतपूर्व इलेक्टर का पुत्र। उसने १७२६ में बवेरिया के इलेक्टर का शासनसूत्र सँभाला। यद्यपि उसने प्रेगमैटिक सैंक्शन को मान्यता दे दी, फिर भी चार्ल्स षष्ठ की मृत्यु पर उसने आस्ट्रिया के साम्राज्यवादी मुकुट को हथिया लेने का कुचक्र किया। यद्यपि उसका अधिकार नाम मात्र का था तो भी १७४२ ई. में रोमन सम्राट् के रूप में उसका राज्याभिषेक एक भारी समारोह के साथ किया गया। उसके साम्राज्य पर दोनों दिशाओं से आक्रमण किया गया और युद्ध के बीच ही उसकी मृत्यु हुई।

चार्ल्स सप्तम षड्यंत्रों और कुचक्रों का मूर्तिमान् स्वरूप था। बवेरिया के इलेक्टर होने से लेकर मृत्यु तक वह उन्हीं कार्यों से संलग्न रहा जिनका उद्देश्य अवांछनीय ढंग से तृष्ण को शांति करना था प्रेगमैटिक सैंक्शन को ठुकराना तथा दूसरे प्रदेश पर लुब्धक दृष्टि डालना इत्यादि ऐसे कार्य थे जिन्होंने इसे यूरोपीय राजनीतिज्ञों के मूल्यांकन में नितांत गिरा दिया था और इसकी मृत्यु पर (२० जनवरी, १७४५) शोक, संवेदना, शिष्टाचार आदि का भी निर्वाह नहीं किया गया। (गि. शं. मि.)

चार्ल्स नवम् दस वर्ष की अवस्था में (१५६०-१५७५) फ्रांस के, सिंहासन पर बैठा। वयस्क होने तक उसकी माँ कैथरीन ही उसकी संरक्षिका बन राजकार्य संचालित करती रही। उसे शाक्ति का बड़ा लोभ था। फ्रांस में दो विरोधी थे- बूरबन और गीज। बूरबनों की सहानुभूति ह्यूगनाट्स (प्रोटेस्टेंट) के प्रति थी और गीजों की कैथोलिकों के प्रति। दोनो विरोधी दल कैथरीन के सारे कार्यों को शंका की दृष्टि से देखते थे। इस कारण कैथरीन को सावधानी बरतनी पड़ती थी। उसने दोनों दलों को प्रसन्न करने के लिये ह्यूगनाट्स को कुछ सुविधाएँ दे दी और उनके प्रति कुछ सहिष्णुता दिखाने का आश्वासन दिया। पर वे इतने से संतुष्ट नहीं हुए, तथा और माँगने लगे। कैथोलिक पहले से ही प्रोटेस्टेंटों से असंतुष्ट थे। उन्होंने वासी की प्रोटेस्टेंटों सभा पर वर्णनातीत अत्याचार किए। फलस्वरूप सन् १५६२ में गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके अंत सन् १५७० में सेंट जरमेन की संधि से हुआ।

चार्ल्स अब वयस्क हो गया था। वह चाहता था कि देश की शक्ति गृहयुद्ध में नष्ट न होकर विदेशों पर विजय प्राप्त करने में प्रयुक्त की जाय। चार्ल्स के दरबार में कॉलिनी के नेतृत्व में एक ऐसा दल बन गया था जो चाहता था कि दोनों विरोधी दल में मेल हो जाय। चार्ल्स ने इस विचार को बढ़ावा दिया। वह चाहता था कि फ्रांस स्पेन से युद्ध करे। इसके लिये देश में एकता को आवश्यकता थी। उसके लिये उसने बूरबन परिवार के प्रोटेस्टेंटों के नेता नेवार के हेनरी से अपनी बहिन मारगरेट का विवाह तय किया।

विवाहोत्सव में कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंटों सबको पेरिस में आमंत्रित किया गया। कैथरीन कालिनी के बढ़ते हुए प्रमाद से दग्ध हो रही थी। उसने चार्ल को राजी कर लिया और सभी एकत्रित हुए। अतिथियों में से हजारों प्रोटेस्टेंटों को मरवा डाला। इसमें कॉलिनी भी संमिलित था। यह घटना सन् १५७२ की है ओर इसे 'सेंट बारथोलोम्यू का हत्याकांड' कहते हैं। इस घटना का समाचार बिजली की तरह फैल गया और गृहयुद्ध पुन: आरंभ हो गया। अंत में प्रोटेस्टेंटों से संधि कर ली गई और उन्हें पूर्वाश्वासित सुविधाएँ पुन: प्रदान कर दी गईं। सन् १५७५ में चार्ल्स की मृत्यु हो गई। (मि. चं. पां.)

चार्ल्स नवम् (१५५०-१६११) स्विडेन का राजा तथा गुस्तावस वैसा का तृतीय पुत्र। यह प्रोटेस्टेंट मत का महान् सेनानी था। इसने स्विडेन को प्रोटेस्टेंट राज्य की मान्यता दिलाने का भरसक प्रयत्न किया। जान तृतीय से संघर्ष किया और जब जॉन तृतीय के पुत्र सिजिस्मंड नामक पोलैंड के कैथलिक शासक को स्विडेन की गद्दी पर बैठाया गया तब चार्ल्स को १५९५ ई. में रीजेंट नियुक्त किया गया। चार्ल्स के लिये यह स्थिति असहनीय थी और इस कैथोलिक शासक को समूल नष्ट कर देने का उसने संकल्प किया। उसने बड़ी ही कुशलता से सिजिस्मंड का निष्कासन कराया और १६०४ ई. में सत्तारूढ़ हुआ। शासन में आते ही इसने लूथरीय मत का स्विडे का राजकीय धर्म घोषित किया और रूस तथा डेनमार्क के विरुद्ध असफल युद्ध छेड़े।

चार्ल्स नवम् कुशल राजनीतज्ञ और महान् सेनानी था। उसकी युद्धसंचालन कला विलक्षण थी। उसकी धार्मिक धारणाएँ कट्टरता की ओर जा रही थीं। लूथरमत उसके धार्मिक विश्वास की अभिव्यक्ति मात्र था जिसे स्विडेन में पल्लवित कर देन के संकल्प को उसने पूर्णत: कार्यान्वित किया। (गि. शं. मि.)

चार्ल्स दशम् (फ्रांस का) १८वें लुई की मृत्यु होने पर सन् १८२४ में उसका भाई (आर्तोआ का काउंट) चार्ल्स दशम् के नाम से फ्रांस के राजसिंहासन पर बैठा। वह राजा की दैवी शक्ति के सिद्धांत का कट्टर पुजारी थी। चार्ल्स उसी देश को सभ्य समझता था जहाँ के अमीर लोग स्वेच्छाचारी हों तथा चर्च असहिष्णु। वह नेपोलियन तथा क्रांति का घोर विरोधी था। अपने जीवन का बड़ा भाग उसने क्रांति के विरुद्ध लड़ने में बिताया था। क्रांति से हुई हानि को पूरा करने के लिये उसने एक बड़ी धनराशि चर्च के पादरियों को दी जिससे उनकी स्थिति सुधर जाय। चर्च के विभिन्न श्रेणी के अधिकारियों के लिये उसने बहुत कुछ किया। इससे चर्च के अधिकारियों का ही सर्वत्र प्रसार हो गया। नई प्रवृत्तियों को दबाने में उसने कोई कसर नहीं उठा रखी। उस संबंध में मेटरनिक भी चार्ल्स से पिछड़ गया। चार्ल्स ने अपने भाई के समान दूरदर्शिता तथा समझदारी से काम नहीं लिया। यदि वह ऐसा करता तो कदाचित् फ्रांस में बोर्बनों का शासन स्थायी हो जाता।

चार्ल्स ने शक्तिशाली वैदेशिक नीति अपनाई। उसने यूनानियों को कुछ सहायता दी और अलजीरिया पर विजय प्राप्त कर ली। पर वह अपने अधिकार को स्थापित करने पर तुला हुआ था। उसने एक प्रतिक्रियात्मक मंत्रिमंडल नियुक्त किया तथा पालिगनेक को प्रधानमंत्री बनाया। फ्रांस की जनता चार्ल्स की स्वेच्छाचारिता से पहले से ही चिढ़ी हुई थी, अब और भी चिढ़ गई। प्रधान मंत्री की राय से चार्ल्स ने अपने विशेषाधिकार से अनेक अध्यादेश जारी किए जिनके द्वारा मतदाताओं की संख्या घटा दी, चुनाव प्रथा में परिवर्तन कर दिया, समाचारपत्रों की स्वंतत्रता छीन ली तथा लोकसभा को भंग क दिया और इस प्रकार जनता को संपूर्ण अधिकारों से वंचित करने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप २६ जुलाई, १८३० को फ्रांस में पुन: क्रांति हो गई। अपन पौत्र के पक्ष में राजपद त्याग कर चार्ल्स आस्ट्रिया भाग गया जहाँ सन् १८३६ में उसक मृत्यु हो गई। (मि. चं. पां.)

चार्ल्स दशम् (स्विडेन) यह वासा, राजवंश का सदस्य था १६वीं शताब्दी में इस वंश में गुस्तावस ने स्विडेन को डेनमार्क की पराधीनता से मुक्त कर उत्तरी यूरोप की एक मुख्य शक्ति बना दिया था। स्विडेन की यह प्रशंसनीय स्थिति पूरी १७वीं शताब्दी भर वनी रही सन् १६५४ में चार्ल्स स्विडेन के सिंहासन पर बैठा। इसने लगभग छह वर्ष शासन किया। इसके जीवन का मुख्य ध्येय था बाल्टिक तट का विजय को पूरा करना। इस संबंध में उसका पोलैंड, डेनमार्क, रूस आदि शक्तियों से टकराना स्वाभाविक ही था। पोलैंड के शासक कैजीमीर ने चार्ल्स का राज्यारोहण स्वीकार नहीं किया था। चार्ल्स ने उसके विरुद्ध दो छोटे छोटे युद्ध के कैजीमीर को परास्त कर दिया। पूर्वी प्रशा में अपना प्रभुत्व मनवाने के लिये चार्ल्स ने ब्रेडेनबर्ग के शासक का मजबूर किया। यज जानते हुए कि डेनमार्क ने रूस, पोलैंड, आस्ट्रिया आदि शक्तियों से मिलकर एक गुट बनाया है, चार्ल्स ने डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया और उससे स्कैंडोनेविया प्रायद्वीप का पूरा दक्षिण भाग छीनकर स्वीिडेन में मिला लिया। अपने जीवन के अंतिम दिनों में चार्ल्स का प्रभुत्व कुछ कम हो चला था। सन् १६६० में उसका मृत्यु हो गई। (मि. चं. पां.)

चार्ल्स एकादश (१६५५-९७) स्विडेन का राजा (१६६०-६७) दसवें चार्ल्स (गस्तावस) की मृत्यु के समय इसकी आयु केवल चार वर्ष की थी। अल्पायु में देश का शासन दरबार के अमीरों द्वारा रहा। ये अमीर बड़े स्वार्थी थे और धन के लोभ में विदेशी शक्तियों का साथ देते रहे। इसी लालच में स्विडेन फ्रांस के विरुद्ध इंग्लैंड के साथ हो गया। बाद में फ्रांस के १४वें लुई ने उत्कोच देकर विस्डेन को अपनी ओर मिला लिया और ११वें चार्ल्स को हालैंड पर आक्रमण करने के लिये उसकाया। डेनमार्क तथा ब्रैंडेनबर्ग हालैंड के साथ थे चार्ल्स ने हालैंड के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। युद्ध प्रारंभ होने पर स्विडेन ने डेनमार्क पर तो विजय प्राप्त कर ली पर ब्रैंडेनबर्ग के शासक ने फरबेलिन में स्विडेन को हरा दिया (१६७५-७६)। चूँकि स्विडेन और फ्रांस के संबंध स्विडेन के अमीरों द्वारा स्थापित किए गए थे इसलिये फरबेलिन की हार का दोष उन्हीं के मत्थे मढ़ा गया। इससे जनसाधारण का मत अमीरों के सर्वथा विरुद्ध हो गया। चार्ल्स ने इस स्थिति से लाभ उठाया और अमीरों की शक्ति को कुचल डाला। अब तक चार्ल्स वयस्क हो गया था। अमीरों की शक्ति नष्ट कर उसने स्वय शासनसूत्र सँभाला (१६८२)। अपने शासनकाल में उसने व्यापार तथा उद्योग धंधों की प्रोत्साहित किया और इस प्रकार अपने देश को समृद्ध बनाया। अमीरों ने चार्ल्स के शैशव काल में जो राजभूमि हड़प ली थी उसे चार्ल्स ने वापस ले लिया। उसने स्विडेन के शासक की वैयक्तिक शक्ति बढ़ा दी और लोग के हृदय में अपने शासन के प्रति आस्था उत्पन्न कर दी१ सन् १६९७ में उसकी मृत्यु हो गई। (मि. चं. पां.)

चार्ल्स द्वादश (१६८२-१७१८) स्विडेन का राजा (१६९७-१७१८) और वें ११वें चार्ल्स का पुत्र। अपने पिता की मृत्यु के समय इसकी अवस्था १५ वर्ष की थी। बचपन से ही चार्ल्स द्वादश का झुकाव सेना की ओर था। आरंभ से ही उसमें बड़े योद्धा के गुण विद्यमान थे। वह बड़ा ही निर्भय था और खतरनाक खेलों में विशेष रुचि रखता था। उसकी शिक्षा का विशेष प्रबंध किया गया। थोड़े ही समय में उसने अपनी योग्यता से सारे देश को मोह लिया। पर वह अच्छे शासक के गुण प्रदर्शित न कर सका। क्योंकि डेनमार्क, रूस, जर्मनी आदि जिन देशों पर विजय के कारण स्विडेन का विस्तार हुआ था उन सबने चार्ल्स के विरुद्ध एक गुट बना लिया था। इसलिये चार्ल्स का सारा जीवन युद्ध करते बीता।

योद्धा के रूप में चार्ल्स दूरदर्शी नहीं था और न ही वह रणक्षेत्र की अपनी विजयों को प्रशासनिक रूप से संगठित करता था। महान् सेनापति के समान वह किसी भी युद्ध में शत्रु से वीरतापूर्वक लड़कर विजय प्राप्त कर लेता था पर अपनी विजय का सदुपयोग करना नहीं जानता था। इसी कारण कुछ लोगों ने उसकी आलोचना भी की है। नार्वा में रूसी शासक पीटर पर विजय प्राप्त करने पर चार्ल्स इतना मंदाध हो गया कि वह रूस की वास्तविक शक्ति भूल गया और उसने अपनी सेना भी संगठित नहीं की। फ्रांस के शासक लुई ने उसकी सहायता करनी चाही, पर उसे भी उसने स्वीकार नहीं किया। इससे स्विडेन को कुछ भूमि छोड़ देनी पड़ी। सन् १७०९ में पीटर ने चार्ल्स को बुरी तरह हराया तो उसे भागकर तुर्की में शरण लेनी पड़ी। वहाँ से लौटकर चार्ल्स ने स्विडेन को चारों ओर से बड़ी शक्तियों से घिरा पाया। उसने इन शक्तियों का डटकर सामना किया। पर इस समय तक देश की शक्ति समाप्त हो चुकी थी और लोग चार्ल्स के विरुद्ध हो रहे थे। सन् १७१८ में वह युद्ध में मरा। (मि. चं. पां.)

चार्ल्स चतुर्दश (१७६३-१८४४) स्विडेन और नार्वे का राजा। (१८१८-४४)। इसे पहले जाँ बैपटिस्ट ज्यूल्स बर्नडॉट बर्नडॉट (Jean Baptist Jules Bernadotte) से संबोधित किया जाता था। तब यह पाख (Pau) के वकील का पुत्र था। इसने फ्रेंच सेना में समय से प्रवेश किया। पहले जर्मनी के विरुद्ध चढ़ाइयों में संमानित हुआ था। १७९८ ई. में वह विएना में राजदूत होकर गया। इसी वर्ष उसने डिशरी क्लेरी से विवाह किया और जोजेफ बोनापार्ट का बहनोई हुआ। १८०१ ई. में उसे सेना का अध्यक्ष बनाया गया। १८०४ ई. में वह फ्रांस का मार्शल बनाया गया और इसी वर्ष हनोवर का गवर्नर नियुक्त किया गया। अल्प और आस्टरवि के युद्धक्षेत्र में उसे विशेष ख्याति मिली। १८०६ ई. में प्रशा के विरुद्ध की गई चढ़ाई में उसे सैन्य अध्यक्षता दी गई। १८१० ई. में वह स्वेिडन का क्राउन प्रिंस निर्वाचित हुआ। अब शासनभार सँभालने के लिये वह स्विडेन आया जहाँ उसे चार्ल्स त्रयोदश द्वारा दत्तक पत्र होने की मान्यता प्राप्त हुई। जब नेपोलियन ने जर्मनी के विरुद्ध १८१२ और १३ को चढ़ाइयाँ की तो उसे नेपोलियन के विरुद्ध मोर्चा लेना पड़ा। १८१८ ई. में उसने चार्ल्स चतुर्दश के नाम से स्विडेन का शासन सँभाला और स्विडेन के वर्तमान राजकीय परिवार का आरंभयिता बना। सेनानी कूटनीतिज्ञ दोनों की सम्यक् अनुभूति होने के कारण उसे राज्यसंचालन में कोई विशेष कठिनाई प्रतीत नहीं हुई। चार्ल्स चतुर्दश को जीवन की विभिन्न हलचलों से गुजरने के कारण स्वेिडन के इतिहास में यथेष्ट गौरव प्राप्त है। ८ मार्च, १८४४ को उसक देहांत हुआ। (गिरजाशंकर मिश्र)