चश्मा (Spectacles) दृष्टि संबंधी दोषों का परिहार करने अथवा तीव्र एवं अरुचिकर प्रकाश से नेत्रों की रक्षा करने के लिये प्रयुक्त लेंसों को चश्मे के फ्रेम में धारण करने का प्रयोग बहुत प्राचीन काल से ही संसार के प्राय: सभी सभ्य देशों में चला आ रहा है। मुद्रण कला का विकास हाने पर जब अत्यंत छोटे एवं सघन अक्षरों में छपी पुस्तकों का बाहुल्य हुआ, तो उन्हें पढ़ने के लिये चश्मे की आवश्यकता का विशेष अनुभव होने लगा। फलस्वरूप १७वीं शताब्दी में चश्मानिर्माण उद्योग बड़ी तेजी से बढ़ा और आज तो संसार के विभिन्न देशों में ३५ से लेकर ५० प्रतिशत तक लोग किसी न किसी प्रकार के चश्मे का प्रयोग करते हैं।
दृष्टिदोषों के परिहार के लिये प्रयुक्त चश्मों में प्राय: तीन प्रकार के लेंस प्रयुक्त होते हैं। ये दृष्टिदोष की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। सामान्यतया चार प्रकार के दोष आँखों में ऐसे पाए जाते हैं जिनसे चश्मों की सहायता से त्राण हो सकता है :
दृष्टिदोष के निवारण के अतिरिक्त आपाती प्रकाश के अवांछनीय अंश को नेत्रों तक पहूँचने से रोकना भी चश्मे का एक मुख्य कार्य है। रंगीन शीशों के बने हुए लेंसों से युक्त चश्मे धूप या तीव्र प्रकाश के कुप्रभावों से नत्रों की रक्षा करते हैं। सूर्य की किरणों से आनेवाली पराबैंगनी (ultraviolet) किरणों से नेत्रों की रक्षा करने के लिये वायुयानों के पाइलट विशेष चश्मों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार तेज आँच के सामने कार्य करनेवाले संधायक (welders), धातुशोधक (metal processors) तथा भट्ठियों के कारीगर (furnace workers) आदि ऐसे लेंसों के चश्मों का व्यवहार करते हैं जो अवरक्त (infra-red) प्रकाश के लिये अपारदर्शी होते हैं। इनके अतिरिक्त अनेक विभिन्न प्रयोजनों के लिय भिन्न भिन्न प्रकार के चश्मों का प्रयोग किया जाता है।
ऊपर अबिंदुकता (astigmatism) दोष के निवारणार्थ प्रयुक्त होनेवाले द्वि-फोकसी (bifocal) लेंस का उल्लेख किया जा चुका है। इनमें एक ही फ्रेम के अंदर दो भिन्न भिन्न संगमांतरवाले लेंस लगे होते हैं। इसी प्रकार ऐसे भी चश्मे बनाए जाते हैं जिनके अंदर तीन भिन्न भिन्न संगमांतर (focal length) वाले लेंस एक साथ लगे होते हैं। इनमें से एक लेंस दूर देखने के लिये, दूसरा मध्यवर्ती दृष्टि के लिये तथा तीसरा निकट की वस्तुओं को देखने के लिये होता है। इन्हें त्रिफकसी (trifocal) लेंस कहते हैं।
लेंस की शक्ति (power) - चश्मे में प्रयुक्त होनेवाले लेंस की शक्ति को डायोप्टर (dioptre) कहते हैं। लेंस की फोकस दूरी का १०० में भाग देने पर उस लेंस की शक्ति डायोप्टरों में ज्ञात होती है। लेंस का प्रकार व्यक्त करने के लिय शक्ति की संख्या के पहले + या - चिह्न लिखा जाता है। + चिह्न उत्तर लेंस तथा - चिह्न अवतल लेंस का द्योतक है। उदाहरणार्थ + ५D से अभिप्राय है ५ डायोप्टर शक्तिवाला (अर्थात् २० सेंमी. संगमांतरवाला) उत्ताल लेंस।
(सुरेश चंद गौड़)