चरबी को वसा भी कहते हैं। उस जांतव और वानस्पतिक उत्पादों को चरबी कहते हैं जो सामान्य ताप पर तैलीय ठोस होते हैं। रसायनत: तेलों की भाँति चरबी भी वसाम्लों और ग्लिसरीन का एस्टर नामक यौगिक है। यह जांतव वसा ऊतकों, बीजों, फलों और कभी कभी कंदों या जड़ों में पाई जाती है। ऊतक की कोशिकाओं में यह रहती है। कुछ कोशिकाएँ ग्लिसराइड रूप में ही इसे ग्रहण करती हैं और कुछ कार्बोहाइड्रेटों से इसका सृजन करतीं हैं। शरीर में चरबी इकट्ठी होने से अंगों या ऊतकों के कार्यसंचालन में कोई बाधा नहीं पहुँचती। पर शरीर में अत्यधिक चरबी से स्वास्थ्य अच्छा नहीं रखा जा सकता।
मानव शरीर का मोटापन चरबी के संचय से ही होता है। सबसे मोटा मनुष्य डैनियल लैंबर्ट था, जिसकी तौल ७२७ पाउंड थी। ४० वर्ष की उम्र में ही वह मर गया : अधिक खाने, अधिक सोने, कोई व्यायाम न करने और बहुत अधिक सुरा या बीयर पीने से मोटापा बढ़ता है। मोटापा कम करने के लिये आहार पर नियंत्रण और नियमित रूप से व्यायाम करना आत्यावश्यक है। चरबी का अवशोषण आँतों में होता है। यहाँ चरबी का पहले अम्लों और ग्लिसरीन में विघटन होता है, फिर उनसे मानव चरबी का संश्लेषण। मानव चरबी अन्य चरबियों से भिन्न होती है। वस्तुत: कोई भी दो स्त्रोतों की चरबी बिलकुल एक तरह की नहीं होती। एक स्त्रोत से प्राप्त चरबी भी सदा एक सी नहीं रहती, पशुओं के आहार आदि का चरबी की प्रकृति पर प्रभाव पड़ता है (देंखें तेज, वसा और मोम)। (सत्येंद्र वर्मा)