चतुरंगिणी प्राचीन भारतीय संगठित सेना। सेना के चार अंग- हस्ती, अश्व, रथ, पदाति माने जाते हैं और जिस सेना में ये चारों हैं, वह चतुरंगिणी कहलाती है। चतुरंगबल शब्द भी इतिहासपुराणों में मिलता है। इस विषय में सामान्य नियम यह है कि प्रत्येक रथ के साथ १० गज, प्रत्येक गज के साथ १० अश्व, प्रत्येक अश्व के साथ १० पदाति रक्षक के रूप में रहते थे, इस प्रकार सेना प्राय: चतुरंगिणी ही होती थी।

सेना की सबसे छोटी टुकड़ी (इकाई) 'पत्ति' कहलाती है, जिसमें एक गज, एक रथ, तीन अश्व, पाँच पदाति होते थे। ऐसी तीन पत्तियाँ सेनामुख कहलाती थीं। इस प्रकार तीन तीन गुना कर यथाक्रम गुल्म, गण, वाहिनी, पृतना, चमू और अनीकिनी का संगठन किया जाता था। १० अनीकिनी एक अक्षौहिणी के बराबर होती थी। तदनुसार एक अक्षौहिणी में २१८७० गज, २१९७० रथ, ६५६१० अश्व और १०९३५० पदाति होते थे। कुल योग २१८७०० होता था। कहते हैं, कुरुक्षेत्र के युद्ध में ऐसी १८ अक्षौहिणी सेना लड़ी थी। अक्षौहिणी का यह परिमाण महाभारत (आदि पर्व २/१९-२७) उल्लिख्ति है। महाभारत में (उ. पर्व १५५/२४-२६) में सेना परिमाण की जो गणना है, उससे इस गणना में कुछ विलक्षणता है। शांतिपर्व ५९/४१-४२ में अष्टांग सेना का उल्लेख है, उसमें भी प्रथम चार यही चतुरंगिणी सेना है। (रामाश्कंर भट्टाचार्य)