चगताई वंश चिंगेज खाँ के द्वितीय पुत्र चगताई के नाम पर १३वीं १४वीं शताब्दी में मध्य एशिया के मंगोल शसक का एक वंश। इसका राजनीतिक इतिहास आरंभ होता है चिंगेज खाँ की मध्य एशिया (१२२० ई.) की विजय के पश्चात्, जब उसने चगताई को, जिसका शिविर उत्तर में ईला नदी के निकट कबायली प्रदेश में था, सिक्यांग ओर ट्रासोक्सियना की भूमि निर्दिष्ट की, चगताई की मृत्यु के पश्चात् (१२४२) उसके उत्तराधिकारी, खानों द्वारा (मंगोल शासक), इस खंड के अधीन शासक माने जाते रहे। मंगू (मोके) खान की मृत्यु के पश्चात् (१२५९) जब मंगोल साम्राज्य की एकता नष्ट हो गई, उकदई खाँ के पोते खैदू (कैदू) (१२६९-१३०१) ने मध्य एशिया में अपनी शक्ति स्थािपित की और चगताई शासक तुआ (दुआ) (१२८२-१३०६) ने, जो मुसलमान था, खैदू के पुत्र चाप्सू के आधिपत्य को सन् १३०५ में समाप्त कर दिया। तभी से चगताई शासक स्वतंत्र खान हो गए। शीघ्र ही अपने गृहसंघर्षों के कारण उनकी शक्ति क्षीण हो गई और तर्याशीरिन (१३२६-३४) की मृत्यु के पश्चात् उनका राज्य छिन्न भिन्न हो गया। महान् विजेता तैमूर (१३७०-१४०५) ने वस्तुत: इस वंश को हटा दिया, यद्यपि उसने और उसके प्रारंभिक उत्तराधिकारियों ने चगताई वंशजों को अपना खान बनाए रखा। परंतु तुगलक तैमूर (१३४२-६३) ने सिक्यांग में चगताई शासकों की एक नवीन शाखा स्थापित की जिसने १६वीं शताब्दी के अंत तक अपना शासन स्थापित रखा। बाबर (जो भारतीय मुगल वंश का संस्थापक था) की माँ, इसी वंश की राजकन्या थी। इसी कारण मुगल स्वयं को चगताई वंश से संबंधित बतलाते हैं।
सं.ग्रं.- वि. बर्टहोल्ड फोर : स्टडीज़ ऑन दि हिस्ट्री ऑव सेंट्रल ऐशिया, खं १, लाइडेन, १९५६। (इरफान हबीब)