चंपतराय बुंदेला सरदार, वीरसिंह का मित्र और विद्रोह के समय जुझारसिंह का सहायक था। जुझारसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसके एक पुत्र पृथ्वीराज की सहायता करता रहा। १६३९ ई. में जब ओड़छा और झाँसी के बीच बुंदेला सेनाएँ हार गई और पृथ्वीराज ग्वालियर के किले में कैंद कर लिया त्रया चंपतराय राजकुमार दारा की सेवा में चला गया। बाद में अन्य बुंदेला सरदारों से ईर्षा के कारण वह औरंगजेब की सेना में सम्मिलित हुआ। सन् १६६१ में चंपतराय ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया किंतु बड़ी कठोरता से उसका दमन कर दिया गया।