चंद्रशेखर
आज़ाद
का जन्म अलीराजपुर
स्टेट के भावरा
नामक स्थान में
१९०८ के लगभग हुआ
था। पिता का नाम
पं. सीताराम
और माता का
नाम जगरानी
देवी था। सीताराम
डाक विभाग में
बहुत मामूली
नौकरी करते
थे, इसलिये चंद्रशेखर
संस्कृत पढ़ने
के लिये काशी
भेजे गए। ब्राह्मण
होने के नाते
मुफ्त छात्रनिवास
में रहते और
क्षेत्र में खाते।
कभी-कभी भक्तों
की ओर से संस्कृत
विद्यार्थियों को
लोटा, कंबल
और दक्षिणा भी
मिलती थी। १९२१ में
जब गाँधी जी
का पहला आंदोलन
चला, अन्य कई संस्कृत
विद्यार्थियों के
साथ चंद्रशेखर
भी आंदोलन
में कूद पड़े और
गिरफ्तार हो
गए। कम उम्र होने
के कारण उन्हें १५
बेंत की सजा दी
गई। जेल में बेंत
लगाए गए। एक एक बेंत
पड़ने के साथ वह
महात्मा गाँधी
की जय बोलते
जाते थे, जो उन
दिनों भारतीय
स्वातंत्र्य युद्ध का
नारा था।
आज़ाद बेंत खाकर जब जेल से निकले, काशी की जनता ने ज्ञानवापी में एक सभा करके उनका स्वागत किया। वह फिर आंदोलन के लिये तैयार होने लगे, पर गांधी जी ने चौरीचौरा कांड के कारण आंदोलन बंद कर दिया।
इन्हीं दिनों क्रांतिकारी फिर से कार्यक्षेत्र में आए। चंद्रशेखर आजाद अब विद्यापीठ के विद्यालय में भरती हुए थे। वहाँ उनका परिचय ऐसे साथियों से हुआ जो क्रांतिकारी बन चुके थे, इस प्रकार हर बेंत पर महात्मा गांधी की जय बोलनेवाले चंद्रशेखर आजाद असहयोगी से क्रांतिकारी बन गए। आज़ाद का नाम 'आजाद' असहयोग के युग में ही पड़ चुका था। उनसे मजिस्ट्रेट ने नाम आदि पूछा - बताया मेरा नाम आजाद है, मेरे बाप का नाम स्वाधीन है और घर जेलखाना है। क्रांतिकारी रूप में चंद्रशेखर आज़ाद ने सब तरह के जोखिम के कामों में हिस्सा लिया। लखनऊ में काकोरी के पास १९२५ के ९ अगस्त का जो ट्रेन डकैती हुई थी, उसमें उन्होंने पं. रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिस्सा लिया। बाद को गिरफ्तारियाँ हुई, षड्यंत्र का मुकदमा चला पर आजाद गिरफ्तार न किए जा सके। वह भागकर झाँसी आदि कई स्थानों पर रहे। काकोरी षड्यंत्र में चार क्रांतिकारियों - रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला, रोशनसिंह ओर राजेंद्र लाहिड़ी - को फाँसी हुई। चंद्रशेखर गिरफ्तार न किए जा सके।
चंद्रशेखर आज़ाद ने कुछ क्रांतिकारियों को जेल से भगाने की भी चेष्टा की, वह उसमें सफल न हुए, पर उन्होंने दल को भगतसिंह के साथ फिर से संगठित किया। इस संबंध में सबसे बड़ी बात यह है कि पहले भी दल का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना था जिसका उद्देश्य मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अंत करना था, पर अब दल का नाम बदलकर 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' कर दिया गया, और स्यह स्पष्ट घोषणा कर दी गई किं दल का लक्ष्य समाजवाद है।
यद्यपि चंद्रशेखर आज़ाद अब उत्तर भारत के क्रांतिकारियों में सबसे पुराने थे, पर उन्होंने बराबर सबसे अधिक जोखिम कामों में भाग लिया। उनका जीवन बहुत सादा था, यद्यपि क्रांतिकारी दल के हजारों रुपए उनके हाथ में रहते थे। सामाजिक विचारों में वह बहुत ही क्रांतिकारी थे। उनका सारा जीवन देश के ही लिये था।
आजाद के एक एक साथी गिरफ्तार होते चले गए, पर आजाद 'आजाद' ही बने रहे। भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त ने असेंबली में बम फेंका ओर उसी में वह गिरफ्तार हो गए। इसके बाद लाहौर षड््यत्रं चला, जिसमें कितने ही क्रांतिकारी गिरफ्तार हुए, पर आजाद गिरफ्तार नहीं हो सके। 'साइमन कमिशन' के 'बायकाट' के उपलक्ष्य में लाला लाजपतराय पर लाठियाँ पड़ीं। इसी चोट के कारण वह बाद को शहीद हो गए। देश के लोग इससे बहुत विचलित हुए, अब क्रांतिकारियों ने इसका बदला लेने का निश्चय किया और सैंडर्स नामक अंग्रेज पुलिस अफसर को मारा गया। चार क्रांतिकारियों ने इसमें भाग लिया था, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, जयगोपाल और राजगुरु। इनमें से जयगोपाल मुखबिर बन गया और लाहौर षड््यत्रं में यदि आजाद गिरफ्तार होते हो सबसे प्रमुख अभियुक्त होते पर वह फिर गिरफ्तार नहीं हो सके। लाहौर षड््यत्रं में तीन व्यक्तियों को फाँसी हुई, जिनके नाम थे : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव।
इस प्रकार आजाद को क्रियाशील क्रांतिकारी जीवन व्यतीत करते हुए आठ साल से ऊपर हो गए थे, जो भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन में एक रिकार्ड माना जा सकता है। स्मरण रहे कि इन वर्षों के दौरान वह अत्यंत खतरनाक कामों में भाग लेते रहे।
पुलिस बुरी तरह आजाद के पीछे पड़ी हुई थी पर आजाद उनकी आँखों में धूल डालकर बराबर भागते जा रहे थे। जब वह किसी जगह को छोड़ देते थे तभी पुलिस वहाँ पहुँच पाती थी। १९३१ की २७ फरवरी के दिन १० बजे चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रडे पार्क में पुलिस द्वारा घेर लिए गए। दोनों तरफ से गोलियाँ चलीं, आजाद का साथी पहले ही भाग निकला था, आजाद अकेले पुलिस टुकड़ी से लड़ते रहे और शहीद हो गए। कुछ जनश्रुति यह है, जिसका किसी प्रकार समर्थन नहीं हुआ है, जिसका किसी प्रकार समर्थन नहीं हुआ है, कि आजाद ने जब देखा कि वह घेर लिए गए हैं उन्होंने आत्महत्या कर ली।
सं.ग्रं.- मन्मथनाथ गुप्त; क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास; रामप्रसाद बिस्मिल : आत्मकथा (मन्मथ नाथ गुप्त)