चंद्रवल्ली मैसूर के चीतलद्रुग जिले में चित्रद्रुग पहाड़ी के पश्चिम में स्थित चंद्रवल्ली दीर्घकाल से किंवंदंतियों का विषय एवं सातवाहन (आंध्र) मुद्राओं का स्त्रोत रहा है।

पुरातत्ववेत्ताओं के उत्खनन से यहाँ दो सांस्कृतिक स्तर प्राप्त हुए हैं। प्रारंभिक स्तरों की संस्कृति मेगालिथ कब्रों की सभ्यता के निकट है। यह सभ्यता की प्रथम अवस्था है जिसमें सिक्के या चित्रित मृण्पात्र नहीं मिलते। उत्तर पाषाणकाल के प्रामाणिक अवशेषों का यहाँ अभाव है। इस संस्कृति के अंतिम दिनों में आंध्र सभ्यता के चिह्न मिलने लगते हैं। इसकी सूचना काँच की चूड़ियों, श्वेत या पीले रंग से चित्रित पात्रों एवं आंध्र सिक्कों से मिलती है। रोमन सम्राट् आगस्टस (२८ ई.पू.- १४ई.) और टाइबेरियस (१४ई.-३७ई.) के दीनार, यूनानी ऐंफोरा (amphora) एवं रुलेटेड (rouletted) मृद्भांड भी यहाँ मिले हैं, जिससे इनके भूमध्यसागरीय प्रदेशों से संबंध प्रमाणित होते हैं। स्पष्ट है, यह नगर आंध्र सभ्यता के प्रमुख केंद्रों एवं रोमन व्यापारिक क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता रहा होगा। चंद्रवल्ली की कहान समीपवर्ती ब्रह्मगिरि की संस्कृति से पर्याप्त साम्य रखती है। (रमेश चंद्र त्रिपाठी.)