चंदावरकर, नारायण गणेश इनका जन्म गौड़ सारस्वतों में हुआ। बचपन में पढ़ने के लिये बंबई भेजे गए ओर वहीं के निवासी बन गए। सन् १८७९ में एल-एल.बी. हुए। उसके बाद उन्होंने बंबई में सफलतापूर्वक वकालत करना आरंभ किया और बंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने। वे विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय चांसलर थे। इस सेवानिवृत्ति के बार राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष इंदौर के प्रधानमंत्री और अंत में, बंबई व्यवस्थापिका सभा के अध्यक्ष नियुक्त हुए। अंग्रेज सरकार का इनपर पूर्ण विश्वास था और सरकारी क्षेत्र में इनका बड़ा वजन भी था। रोलेट कमेटी के बाद जो कमेटियाँ हुईं उनमें भी सरकार ने इनसे काफी लाभ उठाया। बचपन से ही इन्हें समाचारपत्रों में लेख लिखने का चाव था। सन् १८९९ तक इन्होंने फिरोज़शाह मेहता के सहकारी की स्थिति से राजनीति में हाथ बँटाया। किंतु न्यायाधीश होने पर राजनीति से विमुख ही रहे। सामाजिक सुधार के लिये ये पाश्चात्य मतों को ही प्रधानता देते थे किंतु उनको व्यवहार में नहीं लाते थे। वे प्रार्थनासमाज के संस्थापकों में थे और भक्तिसंप्रदाय पर उनका बड़ा विश्वास था। (भी.गो.दे.)