घ्राणहानि (Anosmia) इस अवस्था में गंध की अनुभूति में न्यूनता, अथवा पूर्ण रूप से अभाव, हो जाता है।
गंध का अनुभव मनुष्य नाक के द्वारा करता है। मस्तिष्क से आरंभ होकर नासास्नायु का जोड़ा नाक की श्लेष्मिक कला तथा घ्राणकोशिका में जाकर समाप्त होता है।
यह स्नायु संवेदनशील होती है। गंध से उत्तेजित होकर यह संवेदना को मस्तिष्क के केंद्रों तक पहुंचाती है। इस प्रकार हम सुगंध, या दुर्गधं, का अनुभव करते हैं।
घ्राणेंद्रियों में किसी प्रकार का दोष उत्पन्न हो जाने से घ्राणहानि का अनुभव होने लगता है।
नासागत श्लेष्मिक कला में परिवर्तन, नासानाड़ी में विकृति और मस्तिष्कगत विकृति आदि में घ्राणहानि पाई जाती है।
कुछ मनुष्यों में विशेष परिस्थितियों में, उदाहरणार्थ लड़ाई के मैदान में, अथवा अन्य किसी संकट के समय, मानसिक दुर्बलता के कारण घ्राणहानि देखी गई है।
उपचार - घ्राणहानि के कारण का पता लगाकर उसे यथोचित उपचार द्वारा दूर करना चाहिए। (कपिल देव मालवीय)