घो वसा पदार्थ है, जो गाय भैंस आदि के दूध से बनाया जाता है। बकरी और भेड़ के दूध से भी घी बनाया जा सकता है, पर ऐसा दूध कम मिलता है। इस कारण इससे घी नहीं बनाया जाता। दूध से पहले मक्खन और फिर मक्खन से घी बनाया जाता है। घी बनाने की देशी रीति दूध का दही जमाकर, उसकी मलाई को मथकर घी निकालने की है। भारत, अन्य ऐशियाई देशों तथा मिस्र में केवल दो प्रति शत मक्खन मक्खन के रूप में व्यवहृत होता है। शेष ६८ प्रति शत मक्खन से घी बनाया जाता है।

घी का उपयोग भारत में वैदिक काल के पूर्व से होता आ रहा है। पूजा पाठ मे घी का उपयोग अनिवार्य है। अनेक ओषधियों के निर्माण में घी काम आता है। घी, विशेषत: पुराना घी, यहाँ आयुर्वेदिक चिकित्सा में दवा के रूप में भी व्यवहृत होता है। मक्खन और घी मानव आहार के अत्यावश्यक अंग हैं। इनसे आहार में पौष्टिकता और गरिष्ठता आती है ओर भार की दृष्टि से सर्वाधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।

संसार के प्राय: सभी देशों में मक्खन और घी उत्पन्न होते और व्यवहार में आते हैं। देश की समृद्धि वस्तुत: मक्खन और घी की खपत से आँकी जाती है। आजकल ऐसा कहा जाने लगा है कि मक्खन और घी के अत्यधिक उपयोग से हृदय के रोग होते हैं। ऐसे कथन का प्रमाण यह दिया जाता है कि जिस देश में मक्खन और घी का अधिक उपयोग होता है, वहीं के लोग हृदयरोग से अधिक संख्या में आक्रांत होते पाऐ गए हैं।

मक्खन बहुत दिनों तक नहीं टिकता। उसका किण्वन होकर वह पूतिगंधी हो जाता है; पर घी यदि पूर्णतया सूखा है तो बहुत दिनों तक टिकता है। घी के स्वाद और गंध ग्राह्य होते हैं। यह जल्द पचता भी है। घी में विटामिन 'ए', विटामिन 'डी' और विटामिन 'ई' रहते हैं। विटामिनों की मात्रा सब ऋतुओं में एक सी नहीं रहती। जब पशुओं को हरी घास अधिक मिलती है तब, अर्थात् बरसात और जाड़े के घी, में, विटामिन की मात्रा बढ़ जाती है।

घी के विशेष प्रकार की गंध होती है, जो दूध में नहीं होती। यह गंध किण्वन और अक्सीकरण के करण डाइऐसीटिल नामक कार्बानिक यौगिक बनने के कारण उत्पन्न होती है।

शुद्ध घी का मिलना आजकल कठिन हो गया है। सस्ते वनस्पति घी से मिलावट किया हुआ अधिकांश घी ही आजकल बाजारों में बिकता है। विश्लेषण के आंकड़ों से शुद्ध और अशुद्ध घी का बहुत कुछ पता लग सकता है। शुद्ध घी के विश्लेषण के आँकड़े इस प्रकार हैं :

घी के विश्लेषण के आँकड़े

 
गाय
भैंस
विशिष्ट घनत्व १५° सें. पर
०.९३५८-०.९४४३
०.९३४०-०.९४४४
वर्तनांक (ब्यूटिरो रफ्रैिक्टर द्वारा, ४०° सें. पर)

३७.५-४०.६

३१.५-४५ (गाडबोले)

४०-४३.५
रीचर्ट माइसल मान

२६-३३

२१-३४ (गाडबोले)

२४-३५.५
पोलेंसकी मान
०.७-१.७
०.८-२.२
साबुनीकरण मान
२१६-२३६
२२८-२३६
आयोडीन मान

२५-५०

३१.५-४५ (गाडबोले)

३६.५-४४

घी के संघटक अम्ल निम्नांकित सारणी में दिए जा रहे हैं:

घी के सघंटक अम्ल (भार प्रतिशत)

अम्लों के नाम
गाय
भैंस
ब्यूटिरिक
२.६-४.४
४.१-४.३
कैप्रॉइक
१.४-२.२
१.३-१.४
कैप्रिलिक
०.८-२.४
०.४-०.९
कैप्रिक
१.८-३.८
१.७
लौरिक
२.२-४.३
२.८-३.०
मिरिस्टिक
५.८-१२.९
७.३-१०.१
पामिटिक
२१.८-३१.३
२६.१-३१.१
स्टीएरिक
०.०-१.०
०.९-३.३
ओलिइक (और अन्य का१० से का१६ तक वाले)
२८.६-४१.३
३३-२.३५.८

लिनोलाइक

३.१-५.४

१.५-२.०

श्

घी की जांच एवं बिक्री के लिये भारतीय मानक संस्थान ने घी के मानक स्थिर किए हैं, जो ऊपर दिए मानकों के सदृश ही हैं। इन्हीं मानकों के आधार पर भारत सरकार घी पर अपने ऐगमार्क (Agmark) मुहर लगाकर उसे शुद्ध प्रमाणित करती है। (सहदेव प्रसाद पाठक)