घिरनी
(Pulleys)
एक गोल रंभ है,
जिससे मशीन
की शक्ति को एक
स्थान से दूसरे
स्थान तक ले जाया
जाता है। यदि
किसी खराद को
इंजन से चलाना
है, तो इंजन की
घिरनी और
खराद की घिरनी
पर पट्टा चढ़ाकर
इंजन की शक्ति से
खराद को चलाते
हैं। घिरनी के
व्यास से ही मशीनों
की गति को कम
या ज्यादा किया
जा सकता है। मशीनों
की शक्ति को बिना
किसी हानि के
तो दाँतोंवाले
चक्रों से ही एक
स्थान से दूसरे
स्थान पर ले जाया
जा सकता है, परंतु
जहाँ इन स्थानों
में दूरी अधिक
हो वहाँ इन चक्रों
का उपयोग नहीं
हो सकता। इन्हीं
स्थानों पर घिरनियों
का उपयोग होता
है। इनपर चमड़े
के पट्टों या
रस्सों को चढ़ाकर
एक घिरनी से दूसरी
घिरनी को शक्ति
दी जाती है। यदि
इंजन से किसी
दूसरी मशीन
को चलाया जा
रहा है, तो इंजन
की घिरनी चलानेवाली
घिरनी कहलाएगी
और मशीन की
घिरनी चलनेवाली
घिरनी होगी।
घिरनियाँ प्राय:
ढालवाँ लोहे
की होती हैं,
जिनमें बीच का
भाग घिरनी के
हाल से बाजुओं
द्वारा जुड़ा होता
है। ये बाजू संख्या
में चार से लेकर
छ: तक होते हैं।
घिरनी के बीचवाले
भाग के छेद में
धुरी को डालकर
कस दिया जाता
है। घिरनी के
हर भाग की नाप
ऐसी रखी जाती
है कि वह उसपर
पड़नेवाले हर
बल को सहन कर
सके। घिरनी के
हाल की चौड़ाई
पट्टे की चौड़ाई
से कुछ ही ज्यादा
रखी जाती है।
इसके हाल पर
दो प्रकर के
बल होंगे, एक तो
पट्टे के खिंचाव
के कारण और
दूसरा इसके
घूमने के कारण।
यह देखा गया
है कि एक वर्ग इंच
परिच्छेद के हाल
की घिरनी की
गति १०० फुट प्रति
सेकंड से अधिक
होनी चाहिए। इसलिये
ढलवाँ लोहे
की घिरनी को
इस गति से अधिक
तेज नहीं चलाया
जाता। जहाँ अधिक
गति की आवश्यकता
होती है वहाँ
कच्चे और ढलवाँ
लोहे को मिलाकर
घिरनी बनाई
जाती है। इसका
ध्यान रहे कि अधिक
गति से चलनेवाली
घिरनियों को
ढाला नहीं जाता,
बल्कि इसके विभिन्न
भागों को अलग
बनाकर पेचों
द्वारा जोड़ा जाता
है। इस प्रकार की
घिरनी का भार
भी प्राय: अधिक नहीं
होता और न
उसके टूटने का
इतना डर रहता
है।
घिरनी बनाने
में इसका भी ध्यान
रखा जाता है
कि उसका आकर्षणकेंद्र
ठीक बीच में हो।
यदि ऐसा न हुआ
तो धुरी के
घूमते ही उसमें
थरथराहट पैदा
होगी और धुरी
को तोलन खराब
हो जायगा। इसलिये
घिरनी को धुरी
पर चढ़ाकर इसका
तोलन जाँच लिया
जाता है। इसको
जाँचने के लिये
धुरी को दोनों
किनारों से
आधारों पर
रख दिया जाता
है। यदि धुरी
हर स्थान पर रुकी
रहे और घूमे
नहीं, तो इसका
तोलन ठीक होगा,
और अगर यह किसी
ओर घूम जाय
तो इससे पता
चलेगा कि घिरनी
एक ओर से भारी
है। घिरनी जिस
ओर भारी होती
है उसके दूसरी
ओर उतना ही वजन
बँाधकर इसका
तोलन ठीक कर
लिया जाता है।
भिन्न भिन्न प्रकार
की घिरनियों
का विवरण नीचे
दिया जा रहा
है:
- पद घिरनी -
यह घिरनी अलग
अलग व्यास की दो
या उससे ज्यादा
घिरनियों को
मिलाकर बनाई
जाती है। पद घिरनी
को एक ही भाग
में ढाला जाता
है। इनका उपयोग
उसी स्थान पर होता
है जहाँ चलाने
और चलनेवाली
दोनों घिरनियाँ
हों और चलनेवाली
मशीन की गति
को बदलने की
भी आवश्यकता हो।
इन घिरनियों
को इस प्रकार
लगाया जाता
है कि एक घिरनी
की छोटी घिरनी
दूसरे की बड़ी
घिरनी के सामने
हो। इससे पट्टे
को एक पद से दूसरे
पद पर बदलने
से पट्टे की
लंबाई में कोई
अंतर नहीं आता,
इसलिये पट्टे
को घिरनी पर
चढ़ाने से पहले
उसकी लंबाई
दोनों घिरनियों
के व्यासों का
लेकर निकाल
ली जाती है। घिरनी
पर जो पट्टा
चढ़ाया जाता
है, उससे चलनेवाली
मशीन की दिशा
भी बदली जाती
है। इससे लिये
यदि पट्टे के
दोनों बाजू
समांतर हैं,
तो चलनेवाली
घिरनी के घूमने
की दिशा वही
होगी जो चलानेवाली
घिरनी की है।
अगर इस दिशा को
बदलना है, तो
पट्टे के बाजुओं
को एक दूसरे
पर चढ़ाकर घिरनी
पर चढ़ाया जाता
है।
- सवार घिरनी
- यह घिरनी
प्राय: छोटे आकार
की होती है
और पट्टे का
तनाव ठीक बनाए
रखने के काम
आती है। इसकी
धुरी पर एक स्कंद
लगाकर पट्टे
पर छोड़ दिया
जाता है और
स्कंद के बल के
कारण यह घिरनी
पट्टे का दबाए
रखती है। चलते
चलते यदि पट्टे
का तनाव कम हो
जाए, तो स्कंद के
दबाव के कारण
सवार घिरनी
पट्टे पर और
दब जाती है, जिससे
तनाव में कमी
नहीं हो पाती।
इसलिये सवार
घिरनी लगभग
हर पट्टे पर
लगाई जाती
है।
- कसी हुई और
ढीली घिरनी
- ये दोनों
घिरनियाँ पास
पास चलानेवाली
धुरियाँ पर
लगाई जाती
हैं और इन दोनों
का व्यास बराबर
होता है। इनमें
पहली घिरनी
धुरी पर कसी
हुई होती है
और मशीनों
के चलाने के
काम आती है। दूसरी
ढीली घिरनी
न तो धुरी के
घूमने से घूमती
है और न इसके
घूमने से धुरी
घूमती है। ढीली
घिरनी लगाने
का मतलब केवल
यह होता है
कि जब चलनेवाली
घिरनी से पट्टे
को ढीली घिरनी
पर लाया जाता
है तो धुरी
तो घूमती रहती
है, मगर कसी हुई
चलनेवाली मशीन
रुक जाती है। इसलिये
जो मशीन इस
धुरी से चलाई
जा रही हो, वह
बिना धुरी के
रोके हुए रोकी
जा सकती है। जब
इस मशीन को
फिर चलाना
हो तो पट्टे
को स्थिर घिरनी
पर ले आया जाता
है।
- V
आकार की घिरनी
- इन घिरनियों
का आकार V
की शक्ल का होता
है और ये वहाँ
काम आती हैं जहाँ
रस्सों को शक्ति
ले जाने के काम
में लाया जाता
है। कुछ स्थानों
पर शक्ति इतनी
ज्यादा होती
है कि उसे चमड़े
के पट्टों से
नहीं ले जाया
जा सकता। इसलिये
कई कई रस्सों
को मिलाकर
इस प्रकार की घिरनियों
पर चढ़ा दिया
जाता है। ये रस्से
सूत के भी होते
हैं और लोहे
के तारों के
भी। दूसरा लाभ
इन रस्सों से यह
होता है कि
चलते समय ये
घिरनियों पर
उतना नही फिसलते
जितना चमड़े का
पट्टा फिसलता
है। इससे शक्ति की
हानि नहीं होती।
- मार्ग घिरनी
- यदि चलने
और चलानेवाली
धुरियाँ समांतर
नहीं है, तो पट्टा
घिरनियों पर
से फिसल जाएगा।
इसको रोकने
के लिये मार्ग
घिरनी का उपयोग
होता है। इस घिरनी
को इस प्रकार
लगाया जाता
है कि चलानेवाली
घिरनी और
मार्ग घिरनी
की धुरियाँ
एक समतल में हों
और मार्ग घिरनी
तथा चलनेवाली
घिरनी की धुरी
एक समतल में हो।
इससे घिरनियों
पर चढ़ा हुआ
पट्टा नहीं उतरेगा। (गफ्रुान
बे)