घरेलू सिलाई अधिकतर मरम्मत, रफू, कपड़ों का ठीक करना तथा बच्चों के कपड़ों से संबंधित होती है। इसके लिये उचित साधन, उचित कपड़े और उचित तरीके का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है।
उचित साधन - सिलाई के आवश्यक साधनों में सर्वप्रथम सूई का स्थान आता है। सूइयाँ कई प्रकार की होती हैं, कुछ मोटी, कुछ बारीक, इनकों नंबरों द्वारा विभाजित किया गया है। जितने अधिक नंबर की सूई होगी उतनी ही बारीक होगी। मोटे कपड़े के लिये मोटी सूई का प्रयोग होता है और बारीक कपड़े के लिये पतली सूई का। मोटे कपड़े को बारीक सूई से सीने से सूई टूटने का डर रहता है तथा मोटी सूई से बारीक कपड़े को सीने से कपड़े में मोटे मोटे छेद हो जाते हैं, जो बड़े भद्दे लगते हैं। अधिकतर पाँच नंबर से आठ नंबर तक की सूई का प्रयोग होता है।
साधन में दूसरा स्थान धागे का है। धागा कपड़े के रंग से मिलता हुआ होना चाहिए तथा कपड़े के हिसाब से ही मोटा या बारीक भी होना चाहिए। वैसे अधिकतर सिलाई के लिये ४० और ५० नंबर के धागे का ही प्रयोग किया जाता है।
तीसरा स्थान कैंची का है। कैंची न तो बहुत छोटी हो और न बड़ी। उसकी धार तेज होनी चाहिए, जिससे कपड़ा सफाई से कट सके।
चौथा स्थान इंची टेप का होता है, जो कपड़ा नापने के काम में आता है; फिर निशान लगाने के रंग या रंगीन पेंसिलों का प्रयोग होता है। सीधी लाइनों के लिये यदि स्केल भी पास हो तो बहुत अच्छा होता है। सिलाई के लिये अब अधिकतर मशीन का प्रयोग होता है। इससे सिलाई बहुत शीघ्र हो जाती है। सिलाई के लिये अंगुस्ताने की भी आवश्यकता होती है। इससे उंगलियों में सूई नहीं चुभने पाती।
सिलाई का ढंग - सिलाई करते समय हाथ से कपड़े को ठीक पकड़ना तथा सूई को ठीक स्थान पर रखना अत्यंत आवश्यक है। सिलाई करते समय आप दाहिने हाथ से बाएँ हाथ की ओर चलते हैं। कसीदे में इसके विपरीत बाएँ हाथ से दाएँ की ओर जाया जाता है।
सिलाई की तुरपन तीन प्रकार की होती है : धागा भरना, तुरपन और बाखिया करना।
धागा भरना - इसमें कपड़े को ठीक से पकड़ना अत्यंत आवश्यक है। यदि कपड़ा ठीक नहीं पकड़ा गया तो धागा भरने में काफी समय लग जाता है। चित्र १ की भाँति आप दोनों हाथों में कपड़ा पकड़ दाएँ हाथ के अँगूठे और प्रथम उँगली के बीच सूई रख, दाएँ से बाई ओर चलते हैं। यह कपड़ों को जोड़ने के काम में लाया जाता है।
चित्र
१. धागा भरना
(Running Stitch)
तुरपन - यह किनारे या सिलाई को मोड़कर सीने के काम आती है। इसकी तुरपन चित्र २ की तरह होती है।
चित्र २. तुरपन
(Hemming Stitch)
बखिया - यह भी दो कपड़ों को जोड़ने के काम में लाया जाता है। पर यह तुरपन धागा भरने से अधिक मजबूत होती है। इसका उधेड़ना अत्यंत कठिन होता है। इस तुरपन में चित्र ३. के अनुसार पहले सूई को पिछले छेद में डालकर दो स्थान आगे निकाला जाता है और इस प्रकार बखिया आगे बढ़ता जाता है।
चित्र ३. बखिया (Back
Stitch)
सिलाई के ये तीन प्रकार होते हैं। इनके अतिरिक्त गोट लगाना, दो कपड़ों को जोड़ने के विभिन्न तरीके, रफू करना, काज बनाना एवं बटन टाँकना घरेलू सिलाई के अंतर्गत आते हैं।
गोट लगाना - गोट लगाने के लिये कपड़े को तिरछा काटना अत्यंत आवश्यक है। गोट दो प्रकार से लगती है। एक तो दो कपड़ों के बीच से बाहर निकलती है। दूसरी एक कपड़े के किनारे पर उसको सुदंर बनाने के लिय लगती है। प्रथम प्रकार की अधिकतर रजाइयों इत्यादि में यहाँ जहाँ दोहरा कपड़ा हो वहीं, लग सकती है। गोट को दोहरा मोड़कर दो कपड़ों के बीच रखकर सी दिया जाता है। दूसरे प्रकार की गोट चित्र ४. की भाँति लगती है। पहले कपड़े पर गोट धागा भरकर टाँक दी जाती है। इसमें गोट को खींचकर तथा कपड़े को ढीला लेना होता है। फिर दूसरी ओर मोड़कर तुरपन कर दी जाती है।
चित्र
४. गोट लगाना
(Piping)
अ. प्रथम चरण; आ. द्वितीय चरण
दो कपड़ों को जोड़ने के लिये विभिन्न प्रकार की सिलाइयों का प्रयोग होता है।
(क) सीधी सिलाई - इनमें दो कपड़ों को एक दूसरे पर रख किनारे पर १/४ से १ इंच दूर तक सीधा धागा भर दिया जाता है, या बखिया लगा दी जाती है।
चित्र ५. सीधी सिलाई
(ख) चौरस सिलाई (Flat Fell Seam) - इसमें एक कपड़े को ज्यादा तथा दूसरे को उसने थोड़ा कम आगे निकाल कर धागा भर दिया जाता है। फिर इस सिलाई को मोड़ उसपर तुरप दिया जाता है।
चित्र ६. चौरस
सिलाई (Flat
Fell Seam)
(ग) दोहरी चौरस सिलाई (Stitehed Fell Seam) - इसमें चित्र की भाँति दो कपड़ों के किनारों को दूसरे के ऊपर रख दोनों ओर से तुरपन कर दी जाती है।
चित्र
७. दोहरी चौरस
सिलाई (Stitched
Fell Seam)
(घ) उलटकर सिलाई (French Seam) इसमें दो कपड़ों को मिलाकर बिलकुल किनारे पर धागा भर देते हैं और फिर उन्हें उलटकर एक और धागा भर देते हैं। इससे कपड़े के फुचड़े सब सिलाई के अंदर हो जाते हैं और सिलाई पीछे की ओर से भी अत्यंत साफ आती है।
चित्र ८. उलटकर सिलाई
(French Seam)
रफू करना (Mending) - रफू के लिये जहां तक संभव हो धागा उसी कपड़े में से निकालना चाहिए तथा कपड़े के धागों के रुख के अनुसार सूई को चलाना चाहिए, जैसा चित्र ९ में दिखाया है। इस प्रकार सीधे फटे में सीधी सीधी सिलाई की जाती है, पर यदि कपड़ा तिरछा फटा हो तो आड़ा सीधा दोनों और सीना होता है।
चित्र ९. रफू करना
(Mending)
पैवंद लगाना (Patching) - जहाँ पर आपको पैवंद लगाना हो वहाँ फटे स्थान से बड़ा एक अन्य चौकोर कपड़ा काटकर उसको फटे स्थान पर तुरपन से टाँक दीजिए। इसके पश्चात् उलटकर फटे स्थान को चौकोर काटकर किनारे मोड़कर तुरपन कर दीजिए।
चित्र १०. पैबंद लगाना
(Patching)
काज बनाना - आवश्यकता के अनुसार काज काटकर, काज के दोनों ओर धागा भरकर काज की तुरपन से उसे चित्र ११. की भांति जींद देते हैं। बटन का जोर जिस ओर पड़ता है उसके दूसरी ओर से काज प्रारंभ कर पुन: वहीं सिलाई समाप्त की जाति है। इस प्रकार यदि खड़ा काज है तो आरंभ नीचे किया जाता है, पर पड़े काज को किनारे के दूसरी ओर से आरंभ करते हैं।
चित्र ११. काज बनाना
(Button-hole)
अ. काज का प्रारंभ; आ. काज तैयार तथा
१. आरंभ करने के स्थान।
बटन टाँकना - बटन में सदैव दो या अधिक छेद बने होते हैं। उन छेदों में से सूई निकालनकर बटन को कपड़े पर सी देते हैं।
(स्वर्ण लता भूषण (श्रीमति))