ग्रंथिमूल कुल स्क्रॉफुलैरिएसिई (Scrophulariaceae), टेट्रासाइक्लिसिई (Tatracycliceae), सिमपेटैलि (Sympetalae), द्विबीजपत्री के २०५ वंश, २,६०० जातियाँ, विश्वव्यापी, अधिकांश पौधे शाकी का क्षुपा एक आध वृक्ष, जैसे पाउलोनिया; कुछ लताएँ, जैसे माउरैंडिया, यफ्रूैजिया आदि, दलदली स्थानों में भी पाए जाते हैं। इनकी जड़ें जमीन के भीतर ही भीतर घास की जड़ों पर अवलंबित होती हैं।
पुष्पक्रम एक अथवा बहुवर्धक्षीय। पुष्प द्विलिंगी, यद्यपि आकार तथा बनावट में पर्याप्त भिन्नता। एक युग्मी, प्राय: द्विओष्ठित, द्विदीर्घक (Didynamous), दललग्न अंडाशय के नीचे मधुसर्जी बिंब, द्विकोष्ठी, जरायु अक्षवर्ती फल स्फोटशीलक, जो विभिन्न प्रकार से फटता है।
अधिकतर पुष्प कीट पतिंगों द्वारा परागित होते हैं। मूलर ने परागण विधि के अनुसार चार वर्ग किए हैं; (१) वरबैस्कम (Verbascum) प्रकार खुले फूल, छोटा ट्यूब; (२) स्क्राफुलैरिया प्रकार; (३) डिजिटैलिस प्रकार : लंबे और चौड़े ट्यूबवाले, मक्खियों द्वारा परागित, तथा (४) यफ्रूैजिया प्रकार : ढीले परागकणवाले। उपयोगिता की दृष्टि से अनेक ओषधियों में काम आनेवाले, कई जहरीले। प्रमुख भारतीय वंश : वरबैस्कम, लाइनेरिया, ऐंटीराइनम (बगीचे का पौधा), लिमनोफिला, बोनाया, ग्लासोस्टिगमा, स्कोपैरिया, स्ट्राइगा, सुपूबिया, लिंडेनवर्जिया आदि। (विद्याभास्कर शुक्ल)