गोविंददास
बंगाली वैष्णव
साहित्य में गोविंददास
नाम के तीन विख्यात
कवि हुए हैं। एक गोविंददास
कविराज, दूसरे
गोविंददास चक्रवर्ती,
तीसरे गोविंददास
आचार्य।
- चैतन्यदेव के
परवर्ती कवियों
में गोविंददास
कविराज सर्वश्रेष्ठ
कवि हुए हैं। इन्होंने
केवल '्व्राजबुलि'
में पररचना
की है। समस्त पद
राधा-कृष्ण-लीला
संबंधी है। इन
पदों में समस्त
काव्यगुण बहुत
अधिक मात्रा में
पाए जाते हैं। छंद
में अत्यंत सुंदर
गति शब्दों के
चयन द्वारा प्रस्तुत
की गई है। अनुप्रासों
की छटा भी अनुपम
है। तत्सम एवं अर्धतत्सम
शब्दों के प्रयोग
से काव्य अत्यंत सुंदर
हो उठा है। प्रकृतिचित्रण,
नख-शिख-वर्णन
अत्यंत मनोमुग्धकारी
है। कहा जाता
है, कवि ने अपने
पदों का संग्रह
गीतामृत नाम
से स्वयं किया
था। गोविंददास
का उल्लेख प्रमुख
वैष्णव जीवनीग्रंथ
जैसे भक्तमाल,
भक्तिरत्नाकर,
और प्रेमविलास
में विस्तृत रूप
से है। इन सबके
अनुसार गोविंददास
का जन्म श्रीखंड
में हुआ था। इनका
ग्राम 'तेलियाबुधरी'
था। इनके पिता
का नाम चिरंजीव
सेन एवं माता
का नाम सुनंदा
था। इनके नाना
ने, जिनका नाम
दामोदर सेन
था अनाथ हो जाने
पर इनको और
इनके भाई रामचंद्र
को पाला था।
गोविंददास पहले
शाक्त थे फिर वैष्णव
हो गए। श्रीनिवास
आचार्य इनके गुरु
थे। इनके प्राप्त
पदों की संख्या
४५० से ऊपर है। इनका
जन्म १५३० ई. और मृत्यु
१६१३ ई. लगभग हुई।
- गोविंददास
चक्रवर्त्ती बोराकुली
ग्राम निवासी
भक्त और पदकर्ता
थे। ये श्रीनिवास
आचार्य के शिष्य
थे। गोविंददास
कविराज इनके
समसामयिक एवं
गुरुभाई थे। गोविंददास
चक्रवर्त्ती की निश्चित
जन्मतिथि अज्ञात
है। इनका रचनाकाल
गोविंददास
कविराज के ही
आसपास है। भक्ति
रत्नाकर ग्रंथ
में इनके बारे
में कहा गया है
कि ये श्रीनिवास
आचार्य के अतिप्रिय
शिष्य थे एवं गीतल-वाद्य-विद्या
में निपुण भक्तिमूर्ति
थे। वैष्णवदास
एवं उद्धवदास ने
अपने एक एक पद में
इनका उल्लेख किया
है। इनके कुछ ही
पद प्राप्त हैं।
- गोविंददास
आचार्य श्री चैतन्य
के शिष्य और
समसामयिक थे
तथा सन् १५३३ ई. के
लगभग उपस्थित
थे। 'वैष्णव' 'वंदना'
एवं 'गैर-गणोद्देश-दीपिका'
दोनों ग्रंथों
में इनका उल्लेख
है। 'वैष्णव वंदना'
के उल्लेखों से
ज्ञात होता है
कि इन्होंने राधा-कृष्ण-लीला
संबंधी रचनाएँ
'विचित्र घामाली'
की थीं। (रत्न कुमारी
(श्रीमति))