गोलीय प्रसंवादी (Spherical Harmomics) एक विशेष प्रकार के फलन होते हैं, जिनका प्रयोग गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत, विद्युत् सिद्धांत और गणितीय भौतिकी की अन्य शाखाओं में होता है।
मान लीजिए कुछ कण एक दूसरे को व्युत्क्रम वर्ग नियम के अनुसार आकृष्ट करते हैं। यदि इन कणों का द्रव्यमान (mass) द१, द२........दस (m1, m2... ... ... ...mn) हो और ये बिंदुओं का१, का२... ... कास (P1, P2,... ... ... ...Pn) पर स्थित हों, तो किसी बिंदु पा (P) पर इन कणों का विभव (potential)
होगा। या यों कहिए कि गुरुत्वाकर्षण को एक इकाई द्रव्यमान अनंत दूरी से पा (P) तक लाने में इतना कार्य करना होगा।
मान लीजिए आयताकार त्रिविस्तार अक्षों (Three dimensional rectangular axes) के अनुसार बिंदुओं
का१, का२, का३...................................कास (P1, P2, P3..............................Pn) पा (P) के निर्देशांक
(क१, ख१, ग१), (क२, ख२, ग२)... ...(कस, खस, गस), (य, र, ल)
(a1, b1, c1) (a2, b2, c2)... ...(an, bn, cn) (x, y, z)
हैं तो
का१ पा२= (य- क१)२+ (र- ख१)२+ (ल- ग१)२
P1 P2=(x- a1)२+ (y- b1)२+ (z- c1)२
और इसी प्रकार के सूत्र
का२ पा, का३ पा... ... ...
P2 P, P3 P... ... ...
के लिये उपलब्ध होंगे। यदि विभव को हम वि (p) से निरूपित करें तो हम आंशिक अवकलन द्वारा सरलता से सिद्ध कर सकते हैं कि
यह समीकरण न तो बिंदुओं की स्थिति पर आश्रित है, न उनके द्रव्यमानों पर। अत: यदि स्वच्छंद अवकाश (space) में कोई गुरुत्वाकर्षक संहति हो तो किसी भी बिंदु य, र, ल, (x, y, z) पर जनित विभव उपर्युक्त समीकरण को संतुष्ट करेगा। उक्त समीकरण को लाप्लास का समीकरण कहते हैं। यदि हम कारक
को ती२
(2)
से निरूपित करें
तो उक्त समीकरण
को इस प्रकार
ती२ वि=०
2
p=0
लिख सकते हैं।
यदि वि१, वि२, वि३............(P1, P2, P3............) लाप्लास समीकरण के भिन्न भिन्न हल हों तो हम सरलता से सिद्ध कर सकते हैं कि यदि
वि= वि१+ वि२+ वि३+ ...........
p=p1+p2+p3+........... तो
ता२ वि= ती२ वि१+ ती२ वि२+ ती२ वि३+ ..........= ०
D2 p=2
p1+
2
p2+
2
p3+.........=0
अत: यदि लाप्लास समीकरण के कुछ हल उपलब्ध हों तो उनका योग भी उक्त समीकरण का हल होगा।
अब मान लिजिए वि (P) कोई विभव फलन है जो य, र, ल (x, y, z) के धन पूर्णांक घातों की श्रेणी में
वि= क०+ क१ य+ ख१ र+ ग१ ल+ क२ य२+ ख२ र२+ ग२ ल२+ घ२ रल+ ङ२ लय+ च२ यर+ क३ य३+ ख३र३+ ..................
p=a0+a1 x+b1 y+c1 z+a2 x2+b2 y2+c2 z2+d2 yz+e2 zx+f2 xy+a3 x3+b3 y3+..................
इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।
यदि हम य, र, ल (x, y, z) के प्रथम घात के पदों को एक संघ में रखें, द्वितीय घात के पदों को दूसरे संघ में इत्यादि, तो उपरि लिखित समीकरण को हम इस प्रकार लिख सकते हैं :
वि= श० (य, र, ल)+ श१ (य, र, ल)+ श२ (य, र, ल)+ .........
p=f0 (x, y, z)+f1 (x, y, z)+f2 (x, y, z)+ ............
अथवा
वि= श१+ श२+ श३+ ....................
p=f1+f2+f3+.............
व्यंजक शस (य, र, ल) (fn (x, y, z)) को स वर्ण (nth order) का गोलीय प्रसंवादी कहते हैं।
हम सलरता से सिद्ध कर सकते हैं कि
ती२ श२+ ती२ श३+ ...........ती२ शस+ ...........ती२ वि= ०
2
f2+
2
f3+............
2
fn+............
2
p=0
यह एक एकात्म्य है। अत: इसके समस्त पद, जो पृथक् पृथक् घातों के हैं, अलग अलग शून्य हो जाते हैं, अर्थात् गोलीय प्रसंवादी स्वयं भी लाप्लास समीकरण को संतुष्ट करते हैं। यदि हम कोणीय नियामकों
य= त्र ज्या अ कोज्या इ, र= त्र ज्या अ ज्या इ, ल= त्र कोज्या अ
x=r sin a cos b , y=r sin a sin b , z=r cos a
का प्रयोग करें तो लाप्लास समीकरण का यह रूप हो जाता है :
और शस (य, र, ल) (fn (x, y, z)) का रूप त्रस फस (अ, इ) (rn f n (a , b )) हो जाता है, जिसमें फस (अ, इ) (f n (a , b )) त्र (r) से स्वतंत्र है। फलन फस (अ, इ) (f n (a , b )) को तल प्रसंवादी (Surface Harmonic) कहते हैं।
यह सिद्ध
किया जा सकता
है कि
सं.ग्रं.-टी.एम. मैक्रोबर्ट : स्फेरिकल हारमोनिक्स (१९२७); ए.ग्रे. ऐंड जी.बी.मैथ्यू : ए ट्रीटीज़ ऑन बेसल फंक्शन (१९२२); ई.टी. ह्विटेकर ऐड जी.एन. वाट्सन् : ए कोर्स ऑव माडर्न ऐनैलिसिस (केंब्रिज, १९२७)। (ब्रजमोहन)