गोगोल,
निकोलाई वसील्येविच
(२०.३.१८०९- २१.२.१८५२)-
सुप्रसिद्ध रूसी लेखक।
साधारण उक्रेनी
ज़मींदार के परिवार
में जन्म। पोलतावा
और नेज़िन नगरों
में शिक्षा मिली।
१८२८ से पेतेरबुर्ग
में रहने लगे।
१८२९ से साहित्यिक
कार्यों का आरंभ
किया। अनेक लघु
उपन्यासों में गोगोल
ने उक्रेनी जनता
के जीवन, उक्रेनी
प्रकृति का काव्यमय
सा सजीव वर्णन
दिया है। इन कृतियों
के दो मुख्य संग्रह
हैं : 'दिकंका के
समीपवाले छाटे
गांव की संध्याएं'
(१८३१-३२) और 'मिरगोरोद'
(१८३५)। इन रचनाओं
के लिये रूसी समालोचक
बेलिंस्की ने गोगोल
को 'साहित्य के
नेता, कवियों
के नेता' का नाम
दिया। गोगोल
ने कई प्रहसन भी
लिखे, जैसे 'विवाह'
(१८४३), 'निरीक्षक' (१८३९) जिनमें
तत्कालीन रूसी
समाज की कुरीतियों
की कड़ी आलोचना
की गई। प्रतिक्रियावादियों
की कार्रवाइयों
के फलस्वरूप गोगोल
को विदेश जाना
पड़ा। गोगोल
की मुख्य कृति
'मृत रियाया'
है। इसमें जागीरदारी
रूप का संपूर्ण
आलोचनात्मक
वर्णन दिया गया
है। बेलिंस्की के
मतानुसार यह
तत्कालीन सबसे
महत्त्वपूर्ण साहित्यिक
कृति है। 'ग्रेटकोट'
(१८४२) लघु उपन्यास में
उस छोटे आदमी
के कष्टमय जीवन
का प्रतिबिंब मिलता
है जो तत्कालीन
रूस की राजधानी
में रहता था। 'मित्रों
से पत्रव्यवहार
के चुने हुए अंश'
(१८४७) नामक कृति
में गोगोल ने
प्रतिक्रियावादी
विचारों का
प्रचार किया जिसके
फलस्वरूप बेलिंस्की
ने इस रचना की
कड़ी आलोचना
की थी। गोगोल
की कृतियों का
गहरा प्रभाव रूसी
सहित्य, थियेटर,
चित्रकला और
संगीत पर हुआ।
गोगोल ने रूसी
साहित्य में आलोचनात्मक
यथार्थवाद की
नींव डाली। गोगोल
की रचनाएँ विश्व
की अनेक भाषाओं
में जिनमें हिंदी
भी सम्मिलित है,
अनूदित हुईं। (प्यौत्र
कलेक्सीविच
बाराकिन्नकोव)