गैरिक, डेविड (१७१७-१७७९) अंग्रेज अभिनेता तथा मंच संचालक। फ्रेंच प्रोटेस्टेंट कुल में जन्म। पिता जहाज के कप्तान। परिवार लीचफील्ड में आकर बसा जहाँ के ग्रामर स्कूल में आरंभिक शिक्षा हुई। उच्च शिक्षा के लिये लंदन गए किंतु एक मास के भीतर ही पिता का सहसा देहावसान हो गया। इस बीच लिस्बन स्थित चाचा की १००० पौंड की संपत्ति उत्तराधिकार में मिली, फलस्वरूप भाई के सहयोग से लंदन और लीचफील्ड में शराब का व्यवसाय शुरू किया। आरंभ में मंच के आलोचक तथा नाटककार बनने की चेष्टा की। पहला नाटक 'ईसव इन द शेड्स' १५ अप्रैल, १७४० में 'डूरी लेन' में खेला गया और गैरिक प्रसिद्ध हो गए। मार्च, १७४१ में पहली बार अभिनेता के रूप में मंच पर उतरे। इस बीच लीडाल के नाम से अभिनय करते थे। सन् १७४१ में गुडमेंस फील्ड्स में तृतीय रिचर्ड के रूप में अत्यन्त प्रसिद्धि मिली। क्रमश: तत्कालीन अंग्रेजी मंच के सबसे बड़े अभिनेता माने जाने लगे। गंभीर से लेकर हास्य तक के प्रसंगों के अभिनय में अद्वितीय थे। इनका अभिनय देखने के लिये तत्कालीन श्रीमंतवर्ग तथा प्रसिद्ध व्यक्ति आते थे। आरंभ के छह मास में तो १८ प्रकार के विभिन्न चरित्रों का उन्होंने अविश्वसनीय रूप से सफल अभिनय किया। स्वयं रोम के पोप इनका अभिनय देखने तीन बार आए और कहा कि इनके बराबर दूसरा अभिनेता नहीं और न ही इनके समकक्ष कोई हो सकेगा। अब वह डब्लिन तक मंच संचालक तथा निर्देशक के रूप में जाने लगे। जब कुछ दिनों बाद डूरी लेन का मंच बिका तब उसे इन्होंने खरीद लिया और सितंबर, १७४७ में बड़े ही भव्य रूप में, मँजे हुए अभिनेताओं के दल के साथ अपना मंच आरंभ किया। इनकी महान् सफलता के दो कारण बताए जाते हैं। प्रथमत: फ्रांसीसी होकर भी अंग्रेजी में पारगंत होना दूसरे ऐसी पैनी दृष्टि जो जीवन और कला की विविधता को सहज ही ग्रहण कर लेती थी। त्रासदी (ट्रेजेडी) तथा कामदी (कामेडी) सभी प्रकार के नाटकों में पटु थे। शेक्सपियर के लगभग १७ चरित्रों के अभिनय के लिये विख्यात हुए। इन्होंने अंग्रेजी मंच के उन्नयन में बड़ा ही ऐतिहासिक कार्य किया। शेक्सपियर को लोकप्रिय बनाने में इनका बड़ा योग रहा है। इन्होंने शेक्सपियर के कामदी नाटकों के ओप्रा प्रस्तुत किए। पत्नी, इवा मारिया, जर्मन तथा अच्छी नर्तकी भी थी। अंतिम दिनों में अपना कारोबार भी बंद कर दिया। २० जनवरी, १७७९ को लंदन में इनकी मृत्यु हुई। वहाँ ये वेस्टमिनिस्टर एबे में शेक्सपियर की मूर्ति के पदतल में दफना दिए गए। (नरेश मेहता)