गेस्टापो जर्मनी के नाजी शासनकाल में एडाल्फ हिटलर को शक्तिसंपन्न बनाए रखने के लिए स्थापित खुफिया पुलिस। इसका विकास नाजी आंदोलन की प्रारंभिक आवश्यकताओं की पूर्ति के रूप में हुआ। १९२३ ई. में ‘म्यूनिख पुश’ के बाद ही हिटलर के निजी रक्षक के रूप में स्टाबवाख़ (Stabswache) की स्थापना की गई थी। बाद में शुट्ज़-स्टेफेन के रूप में उसका विकास हुआ। इसे सामान्यत डड कहा जाता था। १९२९ ई. में सभी स्थानीय डड का एक में गठित कर हेनरिख़ हिमलर को उसका प्रधान नियुक्त किया गया।
वीमर राजतंत्र के समय विभिन्न जर्मन राज्यों में राजनीतिक पुलिस स्थापित की गई थी। इसमें प्रशा का दल विशेष रूप में शक्तिशाली और महत्व का था। हरमन गोरिंग ने १९३३ ई. में उसे गेहीम सेटाट्स-पोलिजी (Geheime-staats Polize) अर्थात् राजकीय गुप्त पुलिस का नाम दिया। इसी का संक्षिप्त नाम गेस्टापो है। इस संगठन की विशेषता यह थी कि (१) यह सारे जर्मनी में फैला हुआ था (२) शीघ्र ही इसकी अपनी स्वतंत्र सत्ता बन गई। उसके अपने कानून थे जो सामान्य कानूनों का अतिक्रमण करने वाले थे। हिमलर ने डड के प्रधान के रूप में गुप्त पुलिस का संगठन हमबुर्ग, सैक्सनी आदि राज्यों में किया और गोरिंग उसे प्रशा में मजबूत करते रहे। १९३४ में हिमलर को गेस्टापो का पूर्ण रूप से प्रधान बना दिया। और १९३६ ई. के जून में हिटलर की एक विशेष आज्ञा से वह गेस्टापो सहित सारी पुलिस शक्ति का प्रधान बना इस प्रकार वह आंतरिक मंत्रिमंडल का सदस्य बन गया।
अक्टूबर, १९३६ में सरकारी तौर पर उसे नागरिक संस्था के स्थान पर राष्ट्रीय समाज की सेवा का सजग दल घोषित किया गया और गेस्टापो ने आक्रमक रुख अपनाया। उसका कार्य शत्रु का उन्मूलन करना बना। राष्ट्र के अधिकार की रक्षा के नाम पर कोई भी काम जिस रूप में चाहे करने का अधिकार रखता था। इस प्रकार गेस्टापो सर्वशक्तिमान संस्था बन गई।
गेस्टापो के किसी कार्य को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी इस कारण वह कुछ भी कर सकता था। किसी को भी गिरफ्तार कर लेना और कंसेंट्रेशन कैंपों में बंद कर देना आम बात थी। बिना मुकदमा चलाये ही सींकचों में लोग बंद किए जाते या मुकदमा चलाने का दिखावा किया जाता।
देश के भीतर गेस्टापो जो चाहता वह तो करता ही था, देश के बाहर भी वह जर्मनी की विदेश नीति का एक हथकंडा था। उसका कार्य विदेशों में सूचना एकत्र करना और अशांति फैलाना था। रिश्वत आदि नाना प्रकार से लोगों को फोड़कर पंचमांगी बनाना उसका काम था। विजित देश में सेना के साथ ही गेस्टापो जा पहुँचते और नाजी राज्य विरोधी तत्वों पर उनकी वक्र दृष्टि जम जाती।
नाजी जर्मनी के पतन के पश्चात् गेस्टापो का अंत हो गया। यह संसार में सबसे क्रूर शक्ति थी, ऐसा माना जाता है। (परमेश्न्न्वरीलाल गुप्त.)