गेलेन ग्रीस देश का एक आयुर्वैज्ञानिक। वह एशिया माइनर के माइसिया प्रांत की राजधानी परगेमम नगर में सन् १३० में उत्पन्न हुआ था। ७० वर्ष की आयु में, सन् २०० में, उसकी मृत्यु हुई। बाल्यकाल से ही यह बड़ा होनहार तथा प्रभावशाली था। छोटी अवस्था में इसने न्याय, धर्म, दर्शनशास्त्र तथा विज्ञान के उन अनेक मतों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था जो उस समय प्रचलित थे। १६ वर्ष की आयु से इसने चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन आरंभ किया और उसके लिए अनेक देशों-ग्रीस, सिसिली, फ़िनीशिया, क्रीट, साइप्रस, आदि-में भ्रमण किया। उसने ऐलेग्जैंड्रिया के आयुर्विज्ञान विद्यालय में भी कुछ समय तक अध्ययन किया। अंत में सन् १६४ में वह रोम में बस गया और वहाँ अनेक प्रधान राजकर्मचारियों से उसकी मैत्री हो गई। उनमें सेवेरस (Severus) भी एक था, जो आगे चलकर रोम का सम्राट हुआ। कुछ समय पश्चात गेलेन रोम छोड़कर परगेमम चला गया, किंतु सम्राट मार्कस ऑरेलियस के बुलाने पर उसके उत्तराधिकारी कामोडियस का स्वास्थ्य अभिभावक बनकर रोम लौट आया। सन् १९१ में रोम के अग्निकांड में उसकी लिखी अनेक पुस्तकें भस्म हो गई। सम्राट पर्टिनैक्स के समय में भी वह वहीं अध्यापन कार्य करता था।

गेलेन ने अपने जीवनकाल में छोटी बड़ी लगभग ५०० पुस्तकें तथा निबंध लिखे, जिनमें से १२४ ग्रंथ केवल दर्शन पर थे। ये सब ग्रीक भाषा में लिखे गए थे। चिकित्सा संबंधी उस समय तक प्रचलित मतों का इसने प्रबल खंडन किया, जिससे उस समय का चिकित्सक वर्ग इसके विरुद्ध हो गया। ४०० वर्षों से अरस्तू (Aristotle) के मतों का ही अध्ययन अध्यापन तथा अनुसरण किया जाता था। गेलेन ने इन मतों के विरोध में अपनी प्रबल लेखन का प्रयोग किया।

गेलेन प्रयोगात्मक शरीर-क्रिया-विज्ञान का प्रणेता माना जाता है। प्राचीन समय में हिपॉक्राटीज़ के पश्चात् चिकित्सा शास्त्र का यह प्रथम विख्यात विद्वान था। चिकित्सा विज्ञान की प्राय: प्रत्येक शाखा में इसने खोजें की और नवीन पथप्रदर्शन किए। इन आविष्कारों का यहां संक्षिप्त विवरण दिया जाता है:

शरीररचना (Anatomy)-इसने अनेक जंतुओं, वानरों आदि के शवों का व्यवच्छेदन किया और मनुष्य के शरीर की कितनी ही संरचनाओं का वर्णन किया। पायसिकाओं (Lacteals) को उसने पहचाना तथा मुख की लालाग्रंथियों की रसवाहिनियों का उसने वर्णन किया। अन्य अनेक ऐसे अन्वेषण हैं, जिनका श्रेय गेलेन को दिया जाता है।

शरीर-क्रिया-विज्ञान-इसने अज्ञात स्वेदन (insensible perspiration) को पहचाना तथा कंठ-आवर्तक-तंत्रिका (recurrent laryngeal) का बंधन करके उसका प्रभाव देखा। मेरूरज्जु (spinal chord) को कई स्थानों पर काटकर संवेदन (sensory) और संचालन (motor) परिवर्तनों का उसने अध्ययन किया। हृदय के संबंध में भी उसने महत्वपूर्ण खोज की। हृदय की क्रिया का तंत्रिकाओं से स्वतंत्र होने का उसने प्रतिपादन किया। उसने हृत्पेशी अन्य पेशियों से भिन्न होना माना। हृत्पेशी में स्वयं संकोच की शक्ति है इसको उसने समझा। उसका यह भी कहना है कि हृदय के विभाजक फलक (septum) में अतिसूक्ष्म छिद्र होते हैं, जिनके द्वारा रक्त का स्रवन दाहिने और बाएँ कोष्ठों में हो सकता है। इससे दोनों ओर के रक्तों का मिलना संभव है।

धर्म और दर्शन-गेलेन एकेश्वरवाद का दृढ़ अनुयायी था और उसने धर्म संबंधी अनेक निबंध लिखे हें। वह ईश्वर को संसार का एक मात्र विधाता मानता है और संसार की रचना से उसकी महत्ता को समझने का प्रयत्न करता है। इसका मत है कि ईश्वरीय नियमों के अनुसार संसार संचालन में उस महान् शक्ति का प्रदर्शन होता है। मनुष्य के शारीरिक अंगों की प्रयोजनयुक्त रचना का कौशल इसके मतानुसार ईश्वर की महत्ता का सबसे बड़ा समर्थक और उदाहरण है। अपनी पुस्तक मानव शरीर के अंगों के कार्य (On the uses of the parts of the body of man) में उसने इस मत का जोरदार समर्थन किया है। तर्कशास्त्र (Logic) पर भी उसने कई निबंध लिखे हैं, जिनमें यद्यपि उस समय प्रचलित एतत्संबंधी मतों का ही प्रतिपादन है, फिर भी उसका इस शास्त्र पर प्रभाव पड़ा है।

विज्ञान के इतिहास में गेलेन अपने समय का विशिष्ट व्यक्ति हुआ है, जिसने अपनी विद्वत्ता, विचारप्रखरता तथा वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि से विज्ञान की प्रगति को प्रभावित किया है। (मुकुंदस्वरूप वर्मा)