गेंस्बरो, टामस (१७२७-८८) आकृति एवं प्रकृति का अँगरेज चित्रकार। इसका जन्म सड्बरी (रूफोक) में हुआ था। १४ साल की उम्र में वह चित्रकारी के लिए लंदन भेजा गया। किंतु पाँच साल रहने के बाद जब वह कुछ विशेष न कर सका तो उसे घर लौटना पड़ा। कुछ दिनों बाद गेंस्बरो (इप्सविच) में घर लेकर रहने लगा जहाँ वह श्रीमानों के चित्र बनाने और अपनी खुशी के लिए भूचित्रण करने लगा। अब तक उसने विवाह कर लिया था और उसकी पत्नी की संपत्ति की आय से दोनों का खर्च चल जाता था। १७५९ में उसने बाथ नगर में डेरा डाला जहाँ चित्रों से उसे कुछ आय होने लगी। बाथ में उसका रूबेंस आदि के चित्रों से संपर्क हुआ और उसके तथा वान डाइक के चित्रों से उसने वर्ण तथा प्रकाश का भेद सीखा और चित्रगत छायाओं को अभिवयक्त करने में उसे कुशलता प्राप्त हुई। उसकी ख्याति बढ़ चली और उसके चित्र लंदन तक जाने लगे। १७७४ में गेंस्बरो लंदन लौटा और शीघ्र उस प्रसिद्ध चित्रकार सर जोशुआ रेनाल्ड्स का प्रतिद्वंद्वी बन गया जो अपनी समृद्धि की चोटी पर था। शीघ्र ही उसकी चित्रकारिता ने लंदन के राजदरबार को आकृष्ट किया और वह दरबारियों का स्नेहपात्र बन गया। उसकी सफलता और उसके चित्रों के कौशल से रेनाल्ड्स उसका शत्रु बन गया। पर उसकी शत्रुता के बावजूद गेंस्बरो की ख्याति बढ़ती गई।

लंदन निवास के समय गेंस्बरो ने नीले रंगों के अपने प्रसिद्ध प्रयोग चित्रों में प्रारंभ किए। मास्टर जोनथान बुट्टल की प्रतिकृति द ब्ल्यू ब्वाय के नाम से इसी काल में प्रस्तुत हुई। आर्ट अकादमी का प्रारंभ (१७६८) उन्हीं दिनों हुआ और गेंस्बरों भी अकादमी के विधायक सदस्यों में से था, यद्यपि १७८४ में चित्र टाँगने की पद्धति के संबंध में उसका मतविरोध हो जाने के कारण वह अकादमी से अलग हो गया। रेनाल्ड्स और गेंस्बरो के झगड़े गेंस्बरो के मरणपर्यंत चलते रहे। गेंस्बरो के चित्रों में स्वयं चित्रकार की गहरी अभिव्यक्ति थी जो अक्सर चित्रित व्यक्तित्व से ऊपर उठ जाती थी। उसके भूचित्रों में तो अद्भुत आकर्षण था और जिस वर्णविधान का उसने अपने चित्रों में उपयोग किया वह रूबेंस, वात्तों से रन्वा तक स्वयं उसके माध्यम से एक परंपरा बन गई। यद्यपि सांस्कृतिक लक्षणों में भूचित्रण में वह अन्य अंग्रेज चित्रकारों से बहुत भिन्न न था। वातावरण के सौदर्य तथा छदस् में वह नि:संदेह उनसे सर्वथा परे था। गेंस्बरो का स्थान संसार के भूचित्रकारों और रंगों तथा वातावरण के असाधारण उपयोग में अन्यतम है। (पद्मा उपाध्याय)