गृध्रकूट राजगृह या गिरिव्रज (राजगिर, बिहार) की पाँच पहाड़ियों में से एक। इसका उल्लेख पालि ग्रंथों में हुआ है। वहाँ इसे गिज्झकूट कहा गया और यह वैपुल्य (एक अन्य पहाड़ी) के दक्षिण में स्थित बताया गया है। संभवत: इस शिखर का आकार गिद्ध के समान होने से यह नाम पड़ा है। चीनी यात्री फाह्यान के अनुसार गौतम बुद्ध ने इस स्थान पर अपने प्रिय शिष्य आनन्द की, गृध्र का रूप धारण करके डरा देनेवाले मार से रक्षा की थी और इसी कारण इसका नाम गृध्रकूट पड़ा। गौतम बुद्ध को यह पहाड़ी बहुत प्रिय थी और जब वे राजगृह में होते तो वर्षाकाल गृध्रकूट की एक गुफा में ही बिताते थे। उन्होंने राजगृह के जिन स्थानों को रुचिकर एवं सुखदायक बताया था उनमें गृध्रकूट भी है। फाह्यान ने लिखा है कि बुद्ध जिस गुफा में निवास करते थे वह पर्वतशिखर से तीन ली (१ मील) पर थी। युवानच्वांग ने इंदसिला गुहा नाम से जिस स्थान का उल्लेख किया है वह यही जान पड़ता है।

गृध्रकूट की पहाड़ी का अभिज्ञान राजगिर के निकट स्थित छठे गिरि से किया गया है। इस पहाड़ी में दो प्राकृतिक गुफाएँ आज भी वर्तमान हैं। गुफाओं के बाहर दो प्राचीन प्रस्तरभित्तियों के अवशेष भी मिले हैं। पास ही कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद एक चबूतरे पर अनेक छोटे छोटे बौद्ध मंदिर दिखाई देते हैं। इन बातों से इस स्थान का प्राचीन महत्व प्रमाणित होता है। दूसरी या तीसरी सदी ई. की एक मूर्तिकारी में भी गृध्रकूट की प्रसिद्ध गुफाओं का अंकन किया गया है। गृध्रकूट से प्राप्त कलावशेष नालंदा संग्रहालय में सुरक्षित हैं। (वीरेंद्रकुमार लारोया)