गुलाबराय (१८८८-१९६३ ई.) प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। इनका जन्म इटावा में हुआ था। दर्शनशास्त्र में एम. ए. करने के बाद कानून का अध्ययन किया। तदनंतर अध्यापन कार्य किया। आगरा विश्वविद्यालय ने डी. लिट. की उपाधि प्रदान की।
आप हिंदी के एक प्रख्यात साहित्यकार थे। उनके कृतित्व के अनेक रूप हैं-काव्यशास्त्रकार, आलोचक, निबंधकार और दार्शनिक। आपकी प्रतिभा का विशिष्ट गुण था समन्वय। आपने आचार्य रामचंद्र शुक्ल की शैली में एक ऐसे काव्यशास्त्र को विकसित किया है जिसमें पौर्वात्य और पाश्चात्य, प्राचीन और नवीन विचारों तथा बुद्धि और राग का समन्वय देखने में आता है। इस विषय के आपके ग्रंथ हैं नवरस (१९२०) सिद्धांत और अध्ययन (१९४६), काव्य के रूप (१९४७)। आलोचना के क्षेत्र में आप प्रमुख रूप से व्याख्याकार हैं, दोषों को न देखकर गुणों पर ही विचार करते दिखाई पड़ते हैं। अध्ययन और आस्वाद तथा हिंदी काव्यविमर्श इनके आलोचना ग्रंथ हैं। आपके निबंध सहज व्यंग्य और कोमल हास्य के धरातल पर लिखे हैं। दार्शनिक के रूप में उन्होंने अध्ययन योग्य गंभीर सामग्री प्रस्तुत की है। पाश्चात्य दर्शन, बौद्ध धर्म, कर्तव्यशास्त्र आदि के मूल तत्वों को बोधगम्य रूप से आपने प्रस्तुत किया है।
आपका निधन १३ अप्रैल, १९६३ ई. को हुआ। (परमेश्वरीलाल गुप्त)