गुप्त, शिवप्रसाद (१८८३-१९४४) ई. प्रख्यात देशभक्त और हिंदी प्रेमी। आपका जन्म काशी के अग्रवाल समाज के विख्यात अजमतगढ़ घराने में हुआ था। आपने बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त की किंतु परीक्षा में संमिमित नहीं हुए। ३० अप्रैल १९१४ को आप विश्वभ्रमण के लिये निकले और २१ मास तक घूमते रहे। लौटने के बाद १९१६ ई. में हिंदी लेखकों के प्रोत्साहनार्थ और हिंदी साहित्य की अभिवृद्धि के निमित्त ज्ञानमंडल नाम से एक प्रकाशन संस्था स्थापित की। साथ ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के उपक्रम में आपने महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के साथ सहयोग किया और उनके साथ बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान का भ्रमण किया।

आप हिंदी के कट्टर हिमायती होने के साथ साथ देशभक्त भी थे। १९०४ ई. में पहली बार आप कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए थे। १९०५ ई. में जब काशी में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तब आप लाल लाजपत राय, लोकमान्य तिलक, विपिनचंद्र पाल

आदि नेताओं के संपर्क में आए। शीघ्र ही महात्मा गांधी से परिचय हुआ और आप देश के राजनीतिक आंदोलनों में दिलचस्पी लेने लगे। शीघ्र ही उनकी गणना देश के मान्य नेताओं में होने लगी। अनेक बार राष्ट्रीय आंदोलन के प्रसंग में आप जेल भी गए।

१९२० में कांग्रेस की नीति के समर्थन में आज नाम से दैनिक पत्र प्रकाशित किया और शीघ्र ही देश के राष्ट्रीय पत्रों में उसकी गणना होने लगी।

आपकी एक बहुत बड़ी देन काशी विद्यापीठ है। जब गांधी जी ने अंग्रेजी स्कूलों और कालेजों के बहिष्कार की आवाज उठाई तथा स्वदेशी शिक्षा पर बल दिया तो उसकी पूर्ति के लिये आपने इस संस्था की स्थापना की। आपने भारतमाता के मंदिर की भी अनोखी कल्पना की और तदनुसार १९३६ ई. में उसे मूर्त रूप दिया।

सर्वोपरि दीन दुखियों का पालन और विद्यार्थियों की सहायता आपका विशिष्ट गुण था। आप लोगों को इस प्रकार सहायता करते रहे कि किसी को कानोंकान खबर न हो। अन्नदान, वस्त्रदान, द्रव्यदान उनका नित्य का नियम था जिसके कारण लोग आपको दानवीर कहा करते थे।

१९४४ ई. में आपकी मृत्यु हो गई। (परमेश्वरीलाल गुप्त)